ढीली पड़ रही योगी की कमान: वजह, कमजोर राजनीति और प्रशासनिक अनुभवहीनता या कुछ और

Update:2017-07-07 15:29 IST

Vijay Shankar Pankaj

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की कमान संभालते ही युवा सीएम योगी आदित्यनाथ ने पीएम नरेंद्र मोदी की तर्ज पर मंत्रिमंडल एवं राज्य प्रशासन पर एकाधिकार करने की कोशिश की तो थी लेकिन अब मंत्रिमंडल सहयोगियों पर उनकी कमान धीरे-धीरे कमजोर होती नजर आ रही है। प्रशासनिक मशीनरी पर भी उनकी पकड़ निष्प्रभावी दिखाई देती है।

राजनीतिक हलकों में इसकी वजह, कमजोर राजनीति और प्रशासनिक अनुभवहीनता बतायी जा रही है। जुलाई माह में बजट पारित होने के बाद योगी आदित्यनाथ की मुख्यमंत्री के रूप में इन दोनों ही मोर्चों पर कसौटी शुरू होगी।

डेढ़ दर्जन मंत्री असंतुष्ट!

वैसे तो सरकार बनने और विभाग बंटवारे के बाद ही विधायकों एवं मंत्रियों की नाराजगी की बातें उभरने लगी थी परन्तु उस समय कोई भी खुलकर बोलने को तैयार नहीं था। प्रदेश में मंत्रियों के विभागों का बंटवारा इस प्रकार है कि कैबिनेट और राज्यमंत्री तक नहीं समझ पा रहे हैं कि उन्हें क्या और किस प्रकार का काम करना है। बताया जाता है, कि करीब डेढ़ दर्जन मंत्री इन्हीं कारणों से असंतुष्ट हैं।

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मौर्या से भी बढ़ी खाई

सबसे बड़ा मुद्दा तो उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या का है जो योगी से पहले ही मुख्यमंत्री की रेस में थे। सरकार बनने के बाद दो-तीन घटनाओं ने योगी तथा मौर्या के बीच खाई को बढ़ाया है। इसमें एनेक्सी सचिवालय में केशव मौर्या द्वारा मुख्यमंत्री कार्यालय पर जबरन कब्जा करना, दिल्ली के यूपी सदन में मुख्यमंत्री के सूइट को रात में दबाव डालकर खुलवाने की कोशिश से लेकर मुख्यमंत्री की तर्ज पर कई मंत्रियों के विभागों में हस्तक्षेप की घटनाओं ने सरकार की भद्द करायी है। इसी प्रकार वरिष्ठ मंत्री सुरेश खन्ना को भी उपमुख्यमंत्री न होने का गम साल रहा है। खन्ना की अब कार्यकर्ताओं से मुलाकात तक नहीं होती। गोमती रिवर फ्रंट की जांच को आगे बढ़ाने का दायित्व सुरेश खन्ना पर ही था, परन्तु किसी प्रभाव में आकर वह इस घोटाले के आरोपियों को बचाने में ही जुट गये। इस मुद्दे पर सिंचाई मंत्री धर्मपाल से विवाद होने पर अन्त में मुख्यमंत्री योगी को दखल देना पड़ा।

नाराजगी विभागों से

योगी मंत्रिमंडल में सहयोगी दलों के ज्यादातर मंत्री अपने विभागों को लेकर नाराज हैं। स्वामी प्रसाद मौर्या, एसपी सिंह बघेल, ओम प्रकाश राजभर, बृजेश पाठक, चौधरी लक्ष्मी नारायण अपने विभागों को लेकर खुश नहीं हैं। ओम प्रकाश राजभर ने एक लेखपाल के खेत की पैमाइश न करने की बात को लेकर गाजीपुर से लेकर लखनऊ तक ऐसा बावेला खड़ा किया कि मुख्यमंत्री को गाजीपुर के जिलाधिकारी से यह कहना पड़ा कि जरा मंत्री जी की बातों का ख्याल रखें। ओम प्रकाश राजभर का दर्द है कि वह भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष हैं और उन्हीं के पड़ोस की सीट से जीते दारा सिंह चौहान को वन जैसा बड़ा विभाग मिला, जबकि उन्हें कैबिनेट मंत्री होते हुए भी पिछड़ा वर्ग कल्याण मिला। ओम प्रकाश ने योगी की सहानुभूति लेने के लिए गाजीपुर के मसले में केन्द्रीय संचार मंत्री मनोज सिन्हा को भी घसीटने की कोशिश की। इसी प्रकार अन्य सहयोगी दलों के मंत्री भी विभागों को लेकर सरकार के साथ असहयोग अभियान चला रहे हैं। इन सहयोगी दलों के कार्यकर्ताओं तथा बीजेपी कार्यकर्ताओं में क्षेत्रों में टकराव की स्थिति बनी हुई है।

विभागों को लेकर अपने भी नाराज

वैसे, विभागों को लेकर नाराज चल रहे बीजेपी के अपने कई मंत्रियों में से कुछ को आश्वासन मिला है कि अगले विस्तार के बाद उनके विभागों में फेरबदल किया जाएगा। बीजेपी के वरिष्ठ नेता राजेन्द्र प्रताप सिंह उर्फ मोती सिंह को कैबिनेट मंत्री के रूप में ग्रामीण अभियन्त्रण सेवा (आर.ई.एस.)की जिम्मेदारी दी गयी है जबकि यह कोई विभाग नहीं बल्कि एक कार्यदायी संस्था है। अपनी नाराजगी तथा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का मामला मोती सिंह ने पिछले दिनों प्रतापगढ़ की एक जनसभा में उठाया। मोती सिंह ने कहा, कि कार्यकर्ताओं का काम न हो तो बीजेपी एवं सहयोगी दलों के विधायकों एवं सांसद के मुंह पर कालिख दें।

असंतुष्टि की वजह भी तरह-तरह के

सतीश महाना, सत्यदेव पचौरी, रमापति शास्त्री इस बात को लेकर असंतुष्ट है कि पार्टी में उनके कद को देखते हुए समुचित विभाग नहीं दिये गये जबकि उनसे जूनियर को ज्यादा महत्व दिया गया। इनके अलावा कई राज्यमंत्री भी संतुष्ट नहीं है। महेन्द्र सिंह इस बात से नाराज हैं कि उनके पास ग्राम विकास जैसा विभाग है जिसके पास गांवों के विकास काम करने के लिये पैसा ही नहीं है। ग्राम विकास का पैसा पंचायती राज के पास है जो भूपेन्द्र सिंह चौधरी के पास है। महेन्द्र सिंह के पास राज्यमंत्री के रूप में स्वास्थ्य विभाग भी है परन्तु कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह के समक्ष उनकी चलती नहीं है। इसी तरह स्वतंत्रदेव सिंह परिवहन विभाग की कार्यशैली से खुश नहीं हैं। राज्यमंत्री के रूप में ऊर्जा विभाग में श्रीकांत शर्मा के समक्ष उनकी चलती नहीं है। धर्म सिंह सैनी, उपेन्द्र तिवारी तथा अनिल राजभर भी विभागीय बंटवारे तथा कार्य प्रभार से खुश नहीं हैं। मंत्रिमंडल के विभागीय बंटवारे में सबसे ज्यादा विवादास्पद विभाग अनुपमा जायसवाल तथा अर्चना पाण्डेय को दिये गये हैं। इन विभागों की कार्यशैली पर भी सवाल उठने लगे हैं।

श्रीकांत शर्मा और सिद्धार्थनाथ से नाराजगी

बीजेपी नेताओं में सबसे ज्यादा नाराजगी श्रीकांत शर्मा एवं सिद्धार्थ नाथ सिंह को लेकर है। आरोप है कि ये दोनों मंत्री बीजेपी के नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को पहचानते ही नहीं हैं और उनकी सुनवाई नहीं होती है। यह दोनों ही पहली बार विधायक बने है और सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी इनको दी गयी है।

प्रशासनिक मशीनरी पर पकड़ ढीली

प्रशासनिक मशीनरी पर पकड़ को लेकर भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली पर पार्टी में ही सवाल उठने लगे हैं। मुख्यमंत्री को अपने स्टाफ की नियुक्ति करने में ही लगभग दो माह का समय लग गया। नये मुख्यसचिव की नियुक्ति तीन माह बाद हो सकी। सरकार बनने के बाद योगी ने चीनी मिल बिक्री घोटाले को बड़ा मुद्दा बनाया था। उसका विभागीय प्रमुख सचिव रहते राहुल भटनागर की भूमिका संदिग्ध थी जो तीन माह तक योगी के मुख्यसचिव बने रहे। यही कारण है कि चीनी मिलों की बिक्री में घोटाले का मामला अब ठंढे बस्ते में चला गया है। तबादले के बाद भी राहुल भटनागर को ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गयी है।

संगठन के पदाधिकारी की मजबूत भूमिका

हालात यह है, कि अधिकारियों के तबादले में बीजेपी संगठन के एक पदाधिकारी की भूमिका ज्यादा ही बढ़ती जा रही है। कई कैबिनेट मंत्री अपनी पसन्द के अधिकारी को प्रमुख सचिव बनाने को लेकर योगी पर दबाव बना रहे हैं। अधिकारियों के तबादले के लिये मंत्रियों से ज्यादा लंबी सूची बीजेपी प्रदेश कार्यालय से पहुंच रही है। यह सरकार और संगठन में तकरार का मुद्दा बन गया है। बीजेपी के इस प्रभावी पदाधिकारी से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नाराजगी भी जता चुके हैं। यह मसला पीएम मोदी तथा अमित शाह तक पहुंच चुका है परन्तु अभी तक सरकार पर संगठन का दबाव बना हुआ है। संगठन के दबाव के चलते ही जिला न्यायालयों में हजारों सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति का मामला अधर में लटका हुआ है। कई मंत्री भी बीजेपी पदाधिकारियों तथा कार्यकर्ताओं का काम टरकाने के लिए संगठन से पत्र लिखवाकर लाने की बात कह रहे हैं। सरकार की इस कार्यशैली को लेकर योगी के घटते राजनैतिक प्रभाव के रूप में देखा जाना लगा है।

 

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