Brij Bhushan Singh: बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा बृजभूषण सिंह के खिलाफ 'एक्शन' लेना, कई सीटों पर इनका प्रभाव
Brij Bhushan Singh: बृजभूषण शरण सिंह छह बार के लोकसभा सांसद हैं और वर्तमान में कैसरगंज लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। बृजभूषण ना सिर्फ कैसरगंज और गोंडा बल्कि अयोध्या, श्रावस्ती, बाराबंकी समेत आसपास के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में अपना दबदबा रखते हैं।
Brij Bhushan Singh News: देश के नामी गिरामी पहलवानों के बेहद सख्त आरोपों में घिरे बृजभूषण शरण सिंह छह बार के लोकसभा सांसद हैं और वर्तमान में कैसरगंज लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। बृजभूषण ना सिर्फ कैसरगंज और गोंडा बल्कि अयोध्या, श्रावस्ती, बाराबंकी समेत आसपास के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में अपना दबदबा रखते हैं। भाजपा के पास वर्तमान में इन पांच सीटों में से चार हैं, जबकि श्रावस्ती बहुजन समाज पार्टी के पास है। उनकी पत्नी केतकी देवी सिंह गोंडा जिला पंचायत की अध्यक्ष हैं और उनके पुत्र प्रतीक भूषण सिंह गोंडा सदर सीट से विधायक हैं।
संघ के करीबी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद से बृजभूषण के प्रगाढ़ संबंध रहे हैं। यूपी में उनका दबदबा सिर्फ उनकी राजनीतिक शक्ति का नतीजा नहीं है, बल्कि ये कुश्ती जगत में बिताए वर्षों, उनके शिक्षण संस्थान, स्पष्ट सद्भावना और एक मजबूत व्यक्ति की छवि का भी परिणाम है। लोकसभा चुनाव नजदीक हैं सो ऐसे में उनके मामले में भाजपा की चुप्पी सहज रूप से समझी जा सकती है।
पांच बार के सांसद
बृजभूषण पांच बार भाजपा से और एक बार समाजवादी पार्टी से सांसद बने। 1991 में पहली बार वह भाजपा की टिकट पर गोंडा सीट से चुने गए थे। उन्होंने गोण्डा निर्वाचन क्षेत्र से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की और 1991 में पहली बार व 1999 में दूसरी बार गोंडा से जीत हासिल की। उन्होंने 2004 में बलरामपुर से और 2009, 2014 और 2019 में कैसरगंज से लोकसभा चुनाव जीते। वह हमेशा भाजपा के उम्मीदवार रहे हैं, 2009 को छोड़कर जब उन्होंने सपा के टिकट पर चुनाव जीता था।
राम जन्मभूमि आंदोलन
वह 1989 में राम जन्मभूमि आंदोलन से भी जुड़े थे। 1990 के दशक के मध्य में उन्हें गैंग्स्टर दाऊद इब्राहिम के सहयोगियों की कथित रूप से मदद करने के लिए आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के तहत गिरफ्तार किया गया था, और तिहाड़ जेल में कई महीने बिताने पड़े थे। बाद में सबूतों की कमी के कारण उन्हें मामले में बरी कर दिया गया था। 1996 में जब वह जेल में थे, उस समय भाजपा ने उनकी पत्नी केतकी सिंह को लोकसभा का टिकट दिया और वह बड़े अंतर से जीतीं।
सपा में हुए थें शामिल
वह 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और कल्याण सिंह के साथ गिरफ्तार होने वाले प्रमुख चेहरों में से एक थे। उनको भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के बाद संसद में 2008 के विश्वास मत के दौरान मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के पक्ष में मतदान करने के लिए भी जाना जाता है। वह तब भाजपा में थे, जिसने इस मुद्दे पर सरकार का विरोध किया था। क्रॉस वोटिंग करने के लिए उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था जिसके बाद वह सपा में शामिल हो गए।
शिक्षण संस्थान
ऐसा माना जाता है कि बृजभूषण लगभग 50 शैक्षणिक संस्थानों के जरिए अपना दबदबा कायम रखते आए हैं जो अयोध्या से लेकर श्रावस्ती तक 100 किलोमीटर के दायरे में फैले हैं। उनके रिश्तेदारों ने भी इस तरह के संस्थानों की स्थापना की है। उनके संस्थानों में कम से कम एक लाख छात्र अध्ययन करते हैं। शिक्षण संस्थानों के अलावा उनकी दिलचस्पी कोयले के कारोबार, रियल एस्टेट और खनन क्षेत्र में भी है।बताया जाता है कि बृजभूषण सिंह की चुनाव मशीनरी लगभग पूरी तरह से पार्टी से स्वतंत्र रूप से चलाई जाती है। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा के लिए उनको छोड़ना मुश्किल माना जा रहा है।
साफगोई
सार्वजनिक और निजी तौर पर बृजभूषण सिंह को स्पष्टवादी व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अपनी पार्टी की भी आलोचना की है। पिछले अक्टूबर में उन्होंने मानसून में बाढ़ से निपटने के तरीके को लेकर यूपी में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पर निशाना साधा था।दिसंबर में उन्होंने पतंजलि ब्रांड के तहत “नकली घी” बेचने के लिए कथित तौर पर योग गुरु रामदेव की भी आलोचना की थी और रामदेव को “मिलावट का राजा” कहा था। कुल मिला कर भाजपा के लिए बृजभूषण सिंह के खिलाफ जाना राजनीतिक रूप से एक महंगा सौदा साबित हो सकता है। यही वजह है कि पार्टी इस प्रकरण में बहुत सावधानी बरत रही है।