केवल मथुरा-वृंदावन नहीं, जन्माष्टमी के दिन यहां भी आते हैं भगवान कृष्ण, जानें पूरी बात
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को कृष्ण जन्माष्टमी के तौर पर मनाया जाता हैं। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, इसलिए चारों ओर खुशियाँ मनाई जाती हैं। इस दिन देश के सभी कृष्ण मंदिरों में पूजा-अर्चना और प्रसाद वितरण किया जाता हैं। देश में मथुरा-वृंदावन के अलावा एक मंदिर ऐसा है जहां जन्माष्टमी के दिन आधी रात को भगवान कृष्ण दर्शन देते हैं।ये हैं द्वारिकाधीश मन्दिर ।
जयपुर: भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को कृष्ण जन्माष्टमी के तौर पर मनाया जाता हैं। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, इसलिए चारों ओर खुशियाँ मनाई जाती हैं। इस दिन देश के सभी कृष्ण मंदिरों में पूजा-अर्चना और प्रसाद वितरण किया जाता हैं। देश में मथुरा-वृंदावन के अलावा एक मंदिर ऐसा है जहां जन्माष्टमी के दिन आधी रात को भगवान कृष्ण दर्शन देते हैं।ये हैं द्वारिकाधीश मन्दिर ।
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जन्माष्टमी पर यहां विशेष पूजा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 5000 साल पूर्व भगवान कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद गुजरात के द्वारका में अपनी नयी नगरी बसाई थी। कहा जाता है कि बाद में भगवान की बसाई द्वारका समुद्र में डूब गई थी, परंतु जिस स्थान पर उनका निजी महल 'हरि गृह' था वहीं पर वर्तमान प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर बना है। कहा जाता है कि इस स्थान पर मूल मंदिर का निर्माण भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने करवाया था। कृष्ण भक्तों की दृष्टि में यह एक महान् तीर्थ है। हर साल जन्माष्टमी पर यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।
16वीं शताब्दी में मिला
समय के साथ मंदिर की प्राचीन इमारत काफी जीर्ण क्षींण हो गई और समय समय पर मंदिर का विस्तार और जीर्णोद्धार होता रहा। मंदिर का वर्तमान स्वरूप इसे 16वीं शताब्दी में प्राप्त हुआ था। सबसे पहले मंदिर के आराध्य देव द्वारिकाधीश को आसोटिया के समीप देवल मंगरी पर एक छोटे मंदिर में स्थापित किया गया था। बाद में उन्हें कांकरोली के नवीन भव्य मंदिर में लाया गया।
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दुर्वासा ऋषि के शाप
द्वारिकाधीश मंदिर से लगभग 2 किमी दूर एकांत में रुक्मिणी का मंदिर है। एक कथा के अनुसार माना जाता है कि दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण उन्हें एकांत में रहना पड़ा। द्वारका नगरी आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित देश के चार धामों में से एक है। यही नहीं ये पवित्र सप्तपुरियों में से एक भी मानी जाती है।
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हर साल जन्माष्टमी पर द्वारिकाधीश मन्दिर में विशेष पूजा का आयोजन होता है, जिसके लिए मध्य रात्रि में मंदिर के कपाट भक्तों के दर्शन के लिए खोले जाते हैं। सामान्य रूप से मंदिर को शयन आरती के बाद भगवान को भोग लगा कर रात नौ बजे पट बंद हो जाते हैं। जन्माष्टमी के दिन इस नियम का अपवाद होता है और रात्रि 12 बजे भगवान कृष्ण का विशेष जन्मोत्सव पूजन आयोजन होता है। जिसमें भगवान के जन्म से लेकर उन्हें आसन पर विराजमान करने के बाद आरती की जाती है। इस सारे कार्यक्रम के लिए लोगों के दर्शन हेतु मंदिर के पट आधी रात से 2.30 बजे तक खुले रहते हैं।
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