म्हारी छोरियां, छोरों से कम हैं के: यहां महिलाओं ने किया कमाल

देश की आधी आबादी के सपनों को 'पंख' लग गए हैं। क्योंकि चुल्हे-चौके और घर की दहलीज के अंदर दम तोड़ते अरमान अब अंगड़ाई लेने लगे हैं।

Update: 2020-02-25 07:39 GMT
म्हारी छोरियां, छोरों से कम हैं के: यहां महिलाओं ने किया कमाल

दुर्गेश मिश्र,

गाजीपुर: देश की आधी आबादी के सपनों को 'पंख' लग गए हैं। क्योंकि चुल्हे-चौके और घर की दहलीज के अंदर दम तोड़ते अरमान अब अंगड़ाई लेने लगे हैं। तभी तो देश के प्रधानी मंत्री द्वारा दिए गए स्लोगन 'बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ' को साकार करती महिलाएं देश के सर्वोच्च्शिखर तक पहुंचने लगी हैं।

20वीं सदी में महिलाओं की पहुंच जमीन से आसमान तक, सरहद से खेत तक, लेखपाल से वैज्ञानिक तक हो चुकी है। दूसरे शब्दों में कहें तो आसमानों में उड़ने की आशा पूरी हो रही है। या यूं कहें कि धरती और आसमां उनकी मुट्ठी में है।

हम बात कर रहे हैं 2015 में उत्तर प्रदेश में हुए महिला लेखपालों की भर्ती की। उत्तरर प्रदेश के गाजीपुर जिले के बरेसर थाने में अभद्रता की शिकायत करने पहुंची लेखपाल मंसा देवी कहती हैं कि वाकई में देश नारी सशक्तिकरण की तरफ बढ़ रहा है।

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समय की जरूरत है बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा

जिले के का‍सीमाबाद तहसील में तैनात लेखपाल मंसा देवी कहती हैं प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया 'बेटी बचाओ' का नारा समय की जरूरत है। क्यों कि बेटियों के भी अपने सपने होते हैं। इन सपनों को साकार करने में मायके और ससुराल दोनों पक्षों का सहयोग अपेक्षित है। किसी कारण वश बेटी मायके में नहीं पढ़ पाती है तो ससुराल वालों को चाहिए कि वह उसे पढ़ाएं-लिखाएं और उसके स्वा वलंबी बनाएं जैसाकि हमारे साथ हुआ। मंसा कहती हैं कि शादी के बाद उनके ससुराल वाले खास कर उनके पति अंजनी मौर्य ने उनका भरपूर साथ दिया।

अटपटा तो लगा लेकिन अब गर्व है

मंसा कहती हैं कि 2015 में बतौर उन्होंजने लेखपाल ज्वारईन किया। उस समय लड़कों के साथ प्रशिक्षण फिल्डद वर्क में थोड़ी असहजता महसूस हुई । लेकिन अब उन्हें पटवारी बनने पर गर्व है। यह पूछे जाने पर कि घर के चौखट के बाहर खेतों की पैमाइस करते समय कभी कोई परेशानी आती है या नही। इसपर वे कहती हैं- देखिए समाज में हर तरह के लोग है। कभी किसी से कोई धमकी मिलती है तो किसी से कुछ लेकिन इन्हीं में बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो सहयोग करते हैं।

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अच्छी तरह निभाती हूं फर्ज

इसी तरह सुष्मिता सिंह और माधुरी सिंह कहती हैं जब पहली फिल्ड में गई तो थोड़ी झीझक हुई। मन मे तरह तरह की आशंकाए थीं। अब जरीब पकड़ कर जमीन की पैमाई करने में कोई परेशानी नहीं होती। हमलोग पूरा समय फिल्डं में देती हैं। पर्दे में रहने वाली महिला जब बंदिशों की दिवार तोड़ अपने सपनों को साकार करती है तो अच्छास लगता है। इसी तरह सरिता यादव कहती हैं, अब महिलाओं की जिंदगी चुल्हेो चौके तक ही नहीं है। इससे बाहर भी उनकी दुनिया है। महिलाओं का दायरा बढ़ा है। सरहद की निगेबानी से लेकर आसमान की ऊंचाई, सागर की गहराई और समंदर का सीना तक महिलाएं नाप रही हैं।

15 महिला लेखपाल हैं कासीमाबाद तहसील में

कासीमाबाद के एसडीएम मंसाराम वर्मा कहते हैं हमारी तहसील में कुल 12 महिला लेखपाल हैं। इनमें एक पिंकी कुमारी जो बिहार से थीं, वह अब मधेपुरा की एसडीएम हैं। यह बदलते भारत की नई तश्वींर है जो हमारी बेटियां पेश कर रही हैं। मंसाराम के मुताबिक पूरे गाजीपुर जिले में लगभग 120 महिला लेखपाल हैं। इनमें मंसा, ममता यादव, रीता यादव, नेहा यादव, सरिता यादव, संगीता यादव, सुनिनता यादव पूजा रानी, सुष्मिता सिंह, माधुरी सिंह, कमला यादव, मीना चौहान आदि हमारी ही तहसील में है। पिंकी भी हमारी ही तहसील में थी जो अब बिहार में हमारे समकक्ष है। लोगों को चाहिए कि ओ बेटों की तरह बेटियों को भी आगे बढ़ने का मौका दें।

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