गोरखपुर: क्यो इम्यूनिटी बूस्टर है नारायणी की चेपुआ मछली, जानने पहुंचे वैज्ञानिक

टीम ने इससे तीन दिन पहले पहुंच कर नारायणी नदी के जल का सैंपल लिया था। अब यहां की मछलियों के कृत्रिम ब्रीडिंग की संभावनाएं तलाशने को रिसर्च होगा।

Update:2020-12-22 17:45 IST
गोरखपुर: क्यो इम्यूनिटी बूस्टर है नारायणी की चेपुआ मछली, जानने पहुंचे वैज्ञानिक (PC: social media)

गोरखपुर: नेपाल से यूपी होते हुए बिहार तक जाने वाली नारायणी नदी में मिलने वाली चेपुआ मछली आखिर क्यो इम्यूनिटी बूस्टर है, इसे लेकर वैज्ञानिकों से शोध शुरू कर दिया है। मंगलवार को नेशनल ब्यूरो ऑफ जेनेरिक रिसोर्सेज (एनबीएफजीआर) लखनऊ के वैज्ञानिकों की टीम ने चेपुआ मंछली का सैंपल लिया। टीम ने मोटर बोट से नारायणी नदी का भ्रमण कर जिंदा चेपुआ मछली का सैम्पल लिया।

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टीम ने इससे तीन दिन पहले पहुंच कर नारायणी नदी के जल का सैंपल लिया था। अब यहां की मछलियों के कृत्रिम ब्रीडिंग की संभावनाएं तलाशने को रिसर्च होगा। खड्डा क्षेत्र के मदनपुर सुकरौली से लेकर छितौनी बगहा रेलपुल तक नारायणी नदी में ही सिर्फ चेपुआ मछली पायी जाती है। चेपुआ मछली में विटामिन और मिनरल की गोलियां से अधिक खनीज तत्व मिलते हैं। इस मछली की खासियत यह भी है कि इसका कोई भी हिस्सा बेकार नहीं जाता इसका कांटा भी खाया जाता है।

पहली टीम सैंपल लेकर लौट चुकी है

बीते 19 दिसंबर को वैज्ञानिकों की टीम नारायणी नदी के जल का सैम्पल लेने के बाद वापस लौट गयी। मंगलवार को दूसरी बार एनबीएफजीआर के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. केडी जोशी, मुख्य तकनीकी अधिकारी डॉ. राजेश दयाल व डॉ. अजय कुमार जिंदा चेपुआ मछली का सैम्पल जुटाने छितौनी बगहा रेलपुल के पनियहवा घाट पहुंचे। टीम ने मोटरबोट से नारायणी नदी का भ्रमण कर चेपुआ मछली का सैम्पल इकट्ठा किया। प्रधान वैज्ञानिक डॉ. केडी जोशी ने बताया कि टीम पहले नारायणी नदी के जल का सैम्पल लेकर उसकी खूबियों की स्थानीय लोगों से बातचीत कर जांच पडताल की। अब चेपुआ मछली का सैम्पल इकट्ठा किया जा रहा है। इसकी भी जांच की जायेगी कि चेपुआ मछली इतनी मिठी क्यों होती है। क्या कारण है कि सबसे ज्यादा खड्डा क्षेत्र से होकर बहने वाले नारायणी नदी में ही मिलती है।

chepua-fish (PC: social media)

अमेरिकन फूड सोसायटी ने किया अध्ययन

भारतीय उपमहाद्वीप की मछलियों में मिलने वाले पोषक तत्वों की जानकारी के लिए अमेरिकन फूड सोसायटी ने भारत नेपाल और बांग्लादेश के वैज्ञानिकों की मदद से 2015 में एक अध्यनय किया। शोध में नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय की भी मदद ली गई। शोध इस वर्ष अमेरेकिन फूड जनरल में प्रकाशित हुआ है। शोध के दौरान नारायणी नदी में मिलने वाली चेपुआ मछली में काफी मात्रा में ओमेगा थ्री मिलने की पुष्टि हुई। यही नहीं इस मछली में प्रोटीन, आयोडीन, जिंक, मैग्नीशियम, आयरन, कैल्सियम फॉस्फोरस, पोटैशियम आदि मिनरल्स भी प्रचुर मात्रा में मिले। फिशरीज के जानकार तो यहां तक दावा करते हैं कि जो इंसान सप्ताह मे दो बार चेपुआ खाता है उसे अलग से किसी तरह के फूड सप्लीमेंट की जरूरत नहीं पड़ती।

पहाड़ का पानी चेपुआ में भरता है मिनरल

नरायणी नदी नेपाल में हिमालय से निकलकर भारत में प्रवेश करती है। 2016 में नेपाल में भारत के सहयोग से एक स्टडी की गई। इसमें पाया गया कि नारायणी में ऑक्सीजन का लेवल किसी भी मौसम में 9 एमएल प्रति लीटर से कम नहीं होता। पीएच भी इसी अनुसार लिमिट में रहता है। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में जूलॉजी के प्रोफेसर विनय कुमार सिंह ने बताया कि चेपुआ की ब्रीडिंग के लिए इस नदी का करंट व वातावरण मुफीद है। इसीलिए यह केवल इसी नदी में यह पायी जाती हैं।

यही नहीं पहाड़ से बहकर प्रचुर मात्रा में आने वाले मिनरल्स की वजह से चेपुआ मछली अधिक पौष्टिक होती है। चेपुआ में पर्याप्त मात्रा में विटामिन्स मौजूद हैं। भूख बढ़ाने के लिए जिंक की जरूरत होती है। यह भी प्रचुर मात्रा में मिलता है। इसके अलावा ओमेगा थ्री फैटी एसिड जो कोलेस्ट्रॉल कम करता है और हार्ट को मजबूत करता है, भी इस मछली में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। कैल्सियम फास्फोरस, आयरन, मैग्नीशियम, पोटैशियम व आयोडन सभी चेपुआ मछली में प्रचुर मात्रा में मिलते हैं।

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इसलिए खास है चेपुआ

चेपुआ का वैज्ञानिक नाम एस्पिडोपोरिया मोरर है। इसे चेलवा, बाई, मोरर आदि नामों से भी जाना जाता है। यह केवल नारायणी नदी में ही पायी जाती है। नेपाल के नवलपरासी से कुशीनगर के पनियहवा व बिहार तक इस नदी में यह मछली छह स्थानों पर पायी जाती है। पनियहवा में सबसे अधिक मिलती है। नदी में कुल मछलियों की प्रजातियों में 50 फीसदी चेपुआ प्रजाति की हैं।

रिपोर्ट- पूर्णिमा श्रीवास्तव

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