जौनपुर का ऐतिहासिक शाही पुल, होता जा रहा जर्जर, किसी को नहीं रहा याद

इतिहास पर नजर डाला जाये तो मुगल शासन काल में शासक अकबर बादशाह जौनपुर शाही किला में सन् 1564 ई. में आये थे।

Update:2021-03-30 18:59 IST

जौनपुर। जनपद की सरजमीं पर स्थित गोमती नदी के उपर शर्की बादशाह अकबर के निर्देश पर बना शाही पुल की सार्थकता जितनी बनाने के समय थी उससे कहीं ज्यादा आज है। लेकिन पुरातत्व विभाग एवं जनपद सहित शहर के जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाहीयों के चलते यह एतिहासिक पुल जर्जर एवं कमजोर होता जा रहा है। इसकी उपेक्षा क्यों की जा रही है यह तो अधिकारी ही बता सकते हैं लेकिन जिस दिन इस पुल का अस्तित्व खत्म होगा जौनपुर शहर फिर दो भागों में नजर आ सकता है।

ऐतिहासिक शाही पुल

इस शाही पुल के इतिहास पर नजर डाला जाये तो मुगल शासन काल में शासक अकबर बादशाह जौनपुर शाही किला में सन् 1564 ई. में आये थे। किला में निवास के दौरान सायं काल के समय नदी में नौका विहार कर रहे थे। उन्होंने देखा कि नदी के किनारे एक महिला रो रही थी तो बादशाह ने कारण पूछा तो पता चला कि गरीब महिला दूसरे पार से सूत बेचने नाव के जरिए आयी थी शाम होने के कारण नाव वाला घर चला गया अब महिला अपने बच्चों को अकेले छोड़ कर आयी है अपने घर न पहुंच पाने की मजबूरी में रो रही है। हलांकि बादशाह ने उसे पार उतरवाया साथ अपने मुनीम मुईन खान खाना को आदेश दिया कि गोमती नदी पर एक ऐसा पुल का निर्माण कराया जाये जो जौनपुर के दोनों हिस्सों को एक बना सके।

मुईन खान खाना ने पुल की डिजाईन बनवाया

इसके तुरन्त बाद मुईन खान खाना ने पुल की डिजाईन बनवाया जिसे अफगानी वास्तुकार अफजल अली ने बनाया और सन् 1564 ई. से शुरू हो कर यह शाही पुल 975 हिजरी यानी सन् 1568 में बन कर तैयार हो गया। उस समय के आर्किटेक्ट ने इस पुल की चौड़ाई 26 फुट रखते हुए इसे आकर्षक बनाने के लिए पुल के पाओ पर चतुर्भुज आकार की गुमटियां भी बनाया जो छोटे व्यवसायीयों के व्यापार में सहायक बनी आज भी छोटे व्यवसायी अपनी जीविका चला रहे है।

ऐतिहासिक पुल में कुल 15 ताखे बने

दो भागों में बने इस ऐतिहासिक पुल में कुल 15 ताखे बने जिससे गोमती के जल के प्रवाह में कोई रुकावट नहीं है। पुल इतना मजबूत बना है कि तमाम बाढ़ के थपेरो को सहने के बाद भी आज तक चट्टान की तरह खड़ा रहते हुए जनपद जौनपुर की ऐतिहासिक पहचान बनने के साथ ही दो भागों वाले जौनपुर शहर को एक बनाये हुए है। इस लिए इस पुल की प्रासंगिकता कल जितनी थी आज भी उससे कहीं ज्यादा है।

शाही पुल के रख रखाव में बरती जा रही भारी उदासीनता

हलांकि इस पुल के रख रखाव का दायित्व इस समय पुरातत्व विभाग के पास है। शाही पुल को हर नजरिए से महत्वपूर्ण होने के बावजूद इसके रख रखाव में भारी उदासीनता बरती जा रही है। जिसके परिणाम स्वरूप अब यह पुल कमजोर एवं जर्जरावस्ता की तरफ लगातार बढ़ता नजर आ रहा है। यहाँ बतादे कि इस पुल के दोनों तरफ पीपल के पेड़ उगे हुए हैं जो पुल की दीवारों को अनवरत कमजोर बना रहें है। पीपल के पेड़ो की जड़ें इतनी मोटी हो गयी है कि पुल के पावों में दरारें पड़ने लगी है। जो स्थिति दिख रही है जो पुल सैकड़ों बाढ़ को सहन किया अब अगर बड़ी बाढ़ आयी तो पुल का अस्तित्व ही खत्म हो सकता है। तब की दशा में फिर जौनपुर शहर दो भागों में नजर आ सकता है।

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ऐतिहासिक धरोहर की सुरक्षा के लिये कोई ठोस कदम उठाए जाए

हलांकि जिला प्रशासन का भी दायित्व बनता है कि इस ऐतिहासिक पुल जो जिले की धरोहर एवं शान और पहचान है इसके रख रखाव एवं मरम्मत का ध्यान दे। नगर पालिका के अधिकारी कम से कम पुल के दोनों तरफ उगे पीपल के वृक्षों को जड़ से खत्म करा कर इसकी सुरक्षा तो कर सकता है। लेकिन वह भी बेखबर पड़ा है। जनपद की आवाम जिला प्रशासन से अपेक्षा करती है कि इस ऐतिहासिक धरोहर की सुरक्षा के लिये कोई ठोस एवं प्रभावी कदम उठाये ताकि सम्भावित समस्या जनपद वासियों मुक्ति मिल सके।

रिपोर्ट : कपिल देव मौर्य

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