दुश्मन के दांत खट्टे कर दियेः ढहते भरेह किले के साथ दफन होता इतिहास

बताते चलें कि ब्रिटिश हुकूमत के जुल्मों सितम से तंग आकर 1857 में बगावत की चिंगारी ने पूरे देश में स्वाधीनता का रूप ले लिया था। जिसमें चंबल घाटी के भरेह स्टेट के बगावती तेवरों ने इतिहास के पन्नों में हौसले और जज्बे की मिसाल को दर्ज करा दिया।

Update:2020-07-19 15:36 IST

औरैया। आजादी दिलाए जाने को लेकर जनपद औरैया का इतिहास किसी से भी छिपा नहीं है। यहां के वीर सपूतों ने भी अपनी शहादत देकर क्रांति की अलख को जगाए रखने के लिए अपने परिवार की परवाह न करते हुए जान तक गंवा दी और अपने पीछे कई ऐसे निशान छोड़ गए जो आज तक औरैया को इतिहास के पन्नों में दर्ज किए हुए हैं। ऐसी ही एक कहानी जनपद इटावा और औरैया के बीच स्थित भरेह के किले की है। जो वर्तमान समय में दुर्दशा का शिकार हो रहा है और अपनी वीरांगी की कहानी बयां कर रहा है।

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कई सेंगर राजाओं ने शासन किया

बताते चलें कि ब्रिटिश हुकूमत के जुल्मों सितम से तंग आकर 1857 में बगावत की चिंगारी ने पूरे देश में स्वाधीनता का रूप ले लिया था। जिसमें चंबल घाटी के भरेह स्टेट के बगावती तेवरों ने इतिहास के पन्नों में हौसले और जज्बे की मिसाल को दर्ज करा दिया। बदलाव के दौर में आज और हिम्मत और बुलंद इरादों का गवाह भरेह किला शासन और प्रशासन के उपेक्षित रवैए के चलते जमींदोज होने की कगार पर पहुंच गया है। मुगलों के आने से पूर्व कन्नौज के हिंदू राजा जयचंद द्वारा अपनी पुत्री देवकला का विवाह राजस्थान के डहार नामक स्थान के सेंगर वंश के वीर विशोक देव के साथ करने के बाद दहेज में दी गई रियासत के एक भाग भरेह स्टेट पर पीढ़ी दर पीढ़ी कई सेंगर राजाओं ने शासन किया।

ये है पूरी कहानी

इसी दौरान भरेह स्टेट में राजा रूप सिंह का उल्लेख आता है उनकी हिम्मत और जज्बे को याद कर लोगों के चेहरों पर अजीब सी खुशी खिल उठती है। उन्होंने स्वाभिमान और माटी की लाज बचाने को लेकर सत्ता मोह ही नहीं त्यागा बल्कि अंग्रेजों के आगे सीना तानकर बगावत कर दी और चंबल इलाके में जाबाजो में देशभक्ति की भावना जगा कर क्रांति में कूद पड़े। जब अंग्रेजों ने बगावत के एक बड़े गढ़ भरेह पर अपना दबाव बनाया तो राजा रूप सिंह अपनी छोटी सैन्य टुकड़ी लेकर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से मिले और लगातार इस क्षेत्र में क्रांति की मशाल जलाते रहे। अंग्रेजों ने कोई दबाव काम न आता देख चंबल के आजादी के दीवानों के इस किले पर तोपों से गोले दागकर क्षतिग्रस्त कर दिया। मगर राजा रूप सिंह का हौसला नहीं तो सके।

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अमूल्य विरासत को संभालने की गुहार लगाई

रानी लक्ष्मी बाई के बलिदान के बाद राजा रूप सिंह घर परिवार और एकमात्र दत्तक पुत्र निरंजन सिंह जूदेव को चंबल के गांव बंसरी में अपने परिचित के घर छोड़ बिठूर में नाना साहेब के ग्रुप में मिलकर लड़ाई लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। कुछ समय बाद निरंजन सिंह ने पिता के कारवां को आगे बढ़ाते हुए पुनः इस किले का जीर्णोद्धार कराकर अंग्रेजों के दांत दांत खट्टे किए। जहां छापामार हमलों की रणनीतियां तय कर आजादी के सिपाही उन्हें अमली जामा पहनाने का काम भरेह किले से करते थे। क्रांति की अलख जगाने में भरेह किले का महत्वपूर्ण योगदान रहा। मगर हालातों और समय की गति को देखते हुए धीरे-धीरे स्वर्णिम इतिहास को संजोए और राष्ट्र प्रेम की भावना का प्रेरणा स्रोत भरेह किला उपेक्षित रवैया के कारण जमींदोज होने की कगार पर पहुंच गया है।

हालांकि यहां के वंशजों में एक और लाल उदयन सिंह सेंगर का कहना है कि सरकारों के उपेक्षित रवैए ने चंबल के स्वर्णिम प्रेरणा स्रोत धरोहर को गुमनामी के अंधेरों में ढकेल दिया है। वह कई बार राजनेताओं सहित आला अधिकारियों से देश की इस अमूल्य विरासत को संभालने की गुहार लगा चुके हैं। मगर इस पर कोई भी अभी तक ध्यान नहीं दिया गया।

किले के जीर्णोद्धार से हो सकती हैं पर्यटन की अपार संभावनाएं

चंबल यमुना के संगम तट समुद्र तल से लगभग 520 मीटर ऊंचाई पर खंडहर ऐतिहासिक किले की पश्चिमी दीवार से नीलवर्ण चंबल की चपलता और उत्तरी दीवार से कालिंदी की धारा की अठखेलियां मनोहारी दृश्य बनाती हैं। चंद कदमों की दूरी पर सनातनी मान्यता का प्रतिनिधित्व कर रहा भारेश्वर महादेव का विशाल शिवालय साल भर आने वाले श्रद्धालुओं का केंद्र है। यहां किले की दुर्दशा को देख लोग विचलित हुए बिना नहीं रहते हैं। ऐसे में किले का जीर्णोद्धार पर्यटन के लिए बड़ी संभावना से कम नहीं है। यहां खास बात यह है कि राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी का इलाका होने के चलते संरक्षित जलीय जीवो को देखने आने वालों का जमावड़ा यहां लगा रहता है।

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यहां से होकर गुजरता है भरेह किले का रास्ता

प्रशासनिक रूप से भरेह किला जनपद इटावा की दक्षिणी पूर्वी और औरैया की दक्षिणी पश्चिमी सीमा पर स्थित है। भरेह जाने के लिए नेशनल हाईवे 19 पर बाबरपुर से दक्षिण की ओर नवनिर्मित ग्वालियर रोड पर सिकरोड़ी पुल पारकर भरेह के इस किले की ऊंची मीनारें अपनी ओर खींचती हुई दिखाई देती हैं। यही है जंगे आजादी के सूरमाओ की शरण स्थली जो अपनी कहानी खुद ब खुद बयां करती है।

क्या कहना है इतिहासकार का

इस संबंध में महाविद्यालय के विभागाध्यक्ष इतिहास डॉ शैलेंद्र शर्मा से जानकारी चाही गई तो उन्होंने बताया कि कई वर्षों तक उन्होंने भरेह के किले का जीर्णोद्धार कराए जाने का प्रयास किया। इसके लिए वह राजनेताओं की चौखट पर भी पहुंचे और अपनी बात बताई। मगर उन्हें काफी प्रयासों के बाद भी सफलता हाथ नहीं लग सकी। उन्होंने अपनी बात कहते हुए कहा यदि भरेह के किले का जीर्णोद्धार हो जाता है तो यह इतिहास की धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत होंगी।

रिपोर्टर -प्रवेश चतुर्वेदी औरैया

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