Farm Bill 2020 क्या है, Farmers किन बातों को लेकर कर रहे हैं Protest?

इस विरोध-प्रदर्शन-आंदोलन को अगर समझना है, तो हमें सबसे पहले इसकी जड़ ढूंढनी पड़ेगी। जड़ को हमें ज्यादा ढूंढने की जरुरत नहीं है, वो हमारे सामने ही है और उसका नाम है "कृषि कानून।"

Update: 2020-12-08 12:26 GMT
कृषि-कानूनः असली मुद्दा

शाश्वत मिश्रा

लखनऊ: देश में इस वक़्त केंद्र द्वारा लाये गए नये कृषि कानूनों का विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। इन कृषि कानूनों को मुद्दा बनाकर किसान सड़कों पर उतरे हैं, जिसमें राजनीतिक पार्टियां भी अपनी रोटी सेंकने में कतई संकोच नहीं कर रही हैं। इस विरोध में हजारों की संख्या में किसान दिल्ली बॉर्डर पर बैठे हुए हैं। किसानों ने 8 दिसंबर को भारत बंद का भी एलान किया है, जिसका प्रभावी तौर पर असर पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में देखे जाने की उम्मीद है। बहरहाल, ये सब हो गई वो बातें, जो हमारे सामने हैं या जिसे हमारे सामने रखा जा रहा है।

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दरअसल, इस विरोध-प्रदर्शन-आंदोलन को अगर समझना है, तो हमें सबसे पहले इसकी जड़ ढूंढनी पड़ेगी। जड़ को हमें ज्यादा ढूंढने की जरुरत नहीं है, वो हमारे सामने ही है और उसका नाम है "कृषि कानून।" आखिर ये कानून हैं क्या? जिस पर इतनी महाभारत छिड़ी है और किसानों को इन कानूनों से किस बात का डर है? बेशक! ज्यादातर किसानों को कृषि कानूनों के बार में पता तक नहीं होगा, लेकिन वो इस कानून के खिलाफ धरने पर बैठे हैं। तो सबसे पहले आपको बताते हैं कि वो कौन से कानून हैं? जिनको केंद्र सरकार के मुताबिक़, उन्होंने किसानों के हित में और आय दोगुनी करने के इरादे से पास किया था, लेकिन अब ये इतना बड़ा रायता फैला गया है।

1. कृषि बाजारों को लेकर कानून

''कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) अधिनियम- 2020''

इस सूची में सबसे पहले हम बात करेंगे ''कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) अधिनियम- 2020'' के बारे में। जो कानून कृषि बाजारों को लेकर है। इस कानून के मुताबिक़, ''ऐसा ईकोसिस्टम बनाना जहां किसान और व्यापारी राज्यों की Agricultural Produce Market Committee (APMCs) के तहत आने वाली 'मंडियों' से इतर बेचने और खरीदने की स्वतंत्रता पा सकें। साथ ही फसल के बैरियर-फ्री इंटरस्टेंट और इन्फ्रा-स्टे‍ट ट्रेड को बढ़ावा देना और इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग के लिए ढांचा उपलब्ध कराना।''

अब इस कानून से हमारे देश के किसानों को क्या ऐतराज है उसके बारे में भी बताते हैं. दरअसल, इस कानून का विरोध इस वजह से हो रहा है क्योंकि इससे ''राज्‍यों को राजस्‍व का नुकसान होगा और अगर किसान रजिस्‍टर्ड APMC मंडियों से इतर फसल बेचेंगे, तो 'मंडी शुल्‍क' नहीं देना होगा। अगर खेती का पूरा व्‍यापार 'मंडियों' से बाहर चला जाए, तो राज्‍यों में 'कमिशन एजेंट्स' का क्‍या होगा? इससे MSP आधारित खरीद व्‍यवस्‍था खत्‍म हो सकती है। National Agriculture Market (eNAM) जैसी इलेक्‍ट्रॉनिक ट्रेडिंग में मंडी जैसी ही व्‍यवस्‍था होती है, अगर ट्रेडिंग के अभाव में मंडियां बंद हुईं तो e-NAM का क्‍या होगा?"

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2. कॉन्‍ट्रैक्‍ट फॉर्मिंग पर नया कानून

''कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन व कृषि सेवा पर करार कानून 2020''

विरोध के सुरों में कुछ सुर ''कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन व कृषि सेवा पर करार कानून 2020'' के लिए भी उठते हैं। ये नया कानून पूरी तरह से कॉन्‍ट्रैक्‍ट फॉर्मिंग के लिए है। इस कानून से ''किसान सीधे एग्री-बिजनेस फर्मों, प्रोसेसर्स, होलसेलर्स, एक्‍सपोर्टर्स और बड़े रिटेलर्स से भविष्‍य की फसल का पहले से तय कीमत पर कॉन्‍ट्रैक्‍ट कर सकेंगे। इसमें पांच हेक्‍टेयर से कम खेतिहर जमीन (भारत में कुल किसानों का 86% इसी कैटेगरी में) वाले किसानों को एग्रीग्रेशन और कॉन्ट्रैक्ट के जरिए फायदा होगा। साथ ही मार्केट की अनिश्चितता के खतरे को किसानों से हटाकर स्‍पांसर्स पर ट्रांसफर करना और आधुनिक तकनीक के जरिए किसानों को बेहतर इनपुट्स देना। इस कानून के माध्यम से मार्केटिंग की लागत घटाना और किसानों की आय बढ़ाने पर जोर दिया गया है और पूरी कीमत पाने के लिए किसान बिचौलियों को किनारे कर सीधे डील भी कर सकते हैं।''

अब आपको बताते हैं इस कानून से किसानों को क्या परेशानी है। दरअसल, ''इस कानून से किसानों को डर है कि कॉन्‍ट्रैक्‍ट फार्मिंग में उनके पास मोलभाव करने की क्षमता कम न हो जाए और स्‍पांसर्स को शायद छोटे किसानों के साथ सौदे अच्‍छे न लगें। अगर कोई विवाद हुआ तो प्राइवेट कंपनियों, होलसेलर्स और प्रोसेसर्स के पास बेहतर कानूनी विकल्‍प होंगे और उनकी सुनवाई सही से नहीं हो सकेगी।''

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3. कमोडिटीज से जुड़ा कानून

विरोधों में एक साज़ कमोडिटीज (माल या वस्तु) से जुड़े कानून को लेकर भी छेड़ा जाता है। इस कानून का नाम ''आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020'' है। इस कानून में ''अनाज, दालों, तेल, प्याटज और आलू जैसी फसलों को जरूरी वस्तु्ओं की सूची से बाहर किया गया है, इससे वे स्टॉनक होल्डिंग लिमिट से बाहर हो जाएंगे (असाधारण परिस्थितियों में अपवाद बरकरार)। इससे कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र/एफडीआई को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि निवेशकों के मन से दखलअंदाजी का डर कम होगा और कोल्डक स्टोंरेज, फूड सप्लाई चेन को आधुनिक बनाने के लिए निवेश आएगा। साथ ही कीमतें स्थिर करने में किसानों और उपभोक्ताओं, दोनों की मदद होगी।''

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इस कानून से किसानों को आशंका है कि ''असाधारण परिस्थितियों के लिए तय कीमतों की सेवाएं इतनी ज्यादा हैं, कि शायद वे कभी लागू ही न हों सकें और तो और बड़ी कंपनियों को स्टॉक जमा करने की अनुमति होगी, यानी वे किसानों को अपने मुताबिक चला सकती हैं। साथ ही प्याज के निर्यात बैन पर हाल में लगी रोक से इसके लागू होने पर कन्फ्यूजन है।"

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