जानें पंडित दीनदयाल उपाध्याय से जुड़े रोचक तथ्य

दीन दयाल उपाध्याय ने कहा था कि ‘अगर हम एकता चाहते हैं, तो हमें भारतीय राष्ट्रवाद को समझना होगा, जो हिंदू राष्ट्रवाद है और भारतीय संस्कृति हिंदू संस्कृति है।’ पंडित दीनदयाल को जनसंघ की आर्थिक नीति का रचनाकार बताया जाता है। उनका विचार था कि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य सामान्य मानव का सुख है।

Update: 2023-06-07 16:22 GMT

लखनऊ: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिन्तक, प्रचारक और संगठनकर्ता पण्डित दीनदयाल उपाध्याय की आज जयंती मनाई जा रही है। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद नामक विचारधारा दी। वे एक समावेशित विचारधारा के समर्थक थे जो एक मजबूत और सशक्त भारत चाहते थे।

दीन दयाल उपाध्याय ने कहा था कि ‘अगर हम एकता चाहते हैं, तो हमें भारतीय राष्ट्रवाद को समझना होगा, जो हिंदू राष्ट्रवाद है और भारतीय संस्कृति हिंदू संस्कृति है।’ पंडित दीनदयाल को जनसंघ की आर्थिक नीति का रचनाकार बताया जाता है। उनका विचार था कि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य सामान्य मानव का सुख है।

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पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अपनी पुस्तक ‘एकात्म मानववाद’ (इंटीगरल ह्यूमेनिज्म) में साम्यवाद और पूंजीवाद, दोनों की समालोचना की है। एकात्म मानववाद में मानव जाति की मूलभूत आवश्यकताओं और सृजित कानूनों के अनुरूप राजनीतिक कार्रवाई के लिये एक वैकल्पिक संदर्भ दिया गया है।

जनसंघ

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में जनसंघ की स्थापना की थी। उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय को जनसंघ का पहला महासचिव बनाया था। डॉ. मुखर्जी कहते थे, ‘यदि मेरे पास दो दीनदयाल हों, तो मैं भारत का राजनीतिक चेहरा बदल सकता हूं।’ 1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के असमय निधन से पूरे संगठन की जिम्मेदारी दीनदयाल उपाध्याय के युवा कंधों पर आ गयी। 14वें वार्षिक अधिवेशन में दीनदयाल उपाध्याय को दिसंबर, 1967 में कालीकट में जनसंघ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया।

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पत्रकार और लेखक

दीनदयाल उपाध्याय ने लखनऊ से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ में 1940 के दशक में काम किया था। उन्होंने साप्ताहिक समाचार पत्र ‘पांचजन्य’ और दैनिक ‘स्वदेश’ भी शुरू किया था। उन्होंने नाटक ‘चंद्रगुप्त मौर्य’ और हिंदी में शंकराचार्य की जीवनी लिखी। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. के.बी. हेडगेवार की जीवनी का मराठी से हिंदी में अनुवाद किया। उनकी अन्य कृतियों में ‘अखंड भारत क्यों है’, ‘राष्ट्र जीवन की समस्याएं’, ‘राष्ट्र चिंतन’ और ‘राष्ट्र जीवन की दिशा’ शामिल हैं।

कांग्रेस का विकल्प

पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने पहली बार कांग्रेस के सामने कोई विकल्प खड़ा किया था। जनसंघ की स्थापना कर पहले ही चुनाव में दो लोकसभा की सीटें जीतकर कांग्रेस की जड़ें हिलाने का कार्य किया। जनसंघ से मिलकर बनी जनता पार्टी ने आपातकाल के बाद 1977 से लेकर 1980 तक सरकार चलायी। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने एक ऐसी विचारधारा की नींव रखी जिस पर आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी का निर्माण हुआ। भारतीय जनसंघ से ही 1980 में भारतीय जनता पार्टी का उदय हुआ है। जनसंघ से निकली भाजपा पिछले 6 साल से कांग्रेस को हटाकर सरकार चला रही है।

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व्यक्तिगत जीवन

  • दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1914 को मथुरा जिले के नगला चंद्रभान गांव में हुआ था। इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद बीए करने के लिए कानपुर आ गए। अपने मित्र बलवंत महाशब्दे की प्रेरणा से वे वर्ष 1937 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हो गए। बीए पास करने के बाद वे एमए करने के लिए आगरा चले गए। आगरा में संघ की सेवा के दौरान उनका परिचय नानाजी देशमुख और भाउ जुगड़े से हुआ।

 

  • पंडित दीनदयाल उपाध्याय धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। यह संस्कार उन्हें घर से ही मिले थे। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था जो जलेसर रोड स्टेशन में सहायक स्टेशन मास्टर थे। परिवार से ही उन्हें शिक्षा का गुण मिला। दीनदयाल उपाध्याय के माता-पिता का देहांत छोटी उम्र में ही हो गया था।

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  • दीनदयाल उपाध्याय की शिक्षा आगरा, पिलानी और इलाहाबाद (प्रयागराज) में हुई। छात्र जीवन में ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए और उनकी विचारधाराओं पर चलते रहे।

 

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