Sonbhadra News: दोस्त को पहले बनाया गारंटर, फिर दिया ट्रक बेचने का झांसा... और ऐंठ लिए 19 लाख
Sonbhadra News: व्यक्ति ने ट्रक लेने के लिए, अपने दोस्त को गारंटर बनाया। फाइनेंस कपंनी/बैंक की किस्त टूटने लगी तो गारंटर बने दोस्त को उसी ट्रक को बेचने का झांसा देकर, 19 लाख रुपये ऐंठ लिए।
Sonbhadra News: जिला मुख्यालय पर धोखाधड़ी का मामला सामने आया है। यहां एक व्यक्ति ने ट्रक लेने के लिए, अपने दोस्त को गारंटर बनाया। फाइनेंस कपंनी/बैंक की किस्त टूटने लगी तो गारंटर बने दोस्त को उसी ट्रक को बेचने का झांसा देकर, 19 लाख रुपये ऐंठ लिए। उससे किश्त की अदायगी के साथ ही, वाहन बीमा, नया चक्का लगवाने का काम कर डाला। लाखों की धनराशि मिलने के बाद भी जब ट्रक नहीं मिला, तब पीड़ित ने न्यायालय की शरण ली। वहां से दिए गए आदेश पर राबटर्सगंज कोतवाली पुलिस ने धारा 406, 419, 420, 506 आईपीसी के तहत मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी है।
यह बताया जा रहा पूरा मामला
राबटर्सगंज कोतवाली क्षेत्र के इमरती कालोनी में रह रहे पिपरी थाना क्षेत्र के मुर्धवा निवासी रितेश सिन्हा का आरोप है कि मोहम्मद जिगर सिद्दीकी निवासी सहिजनखुर्द थाना राबर्ट्सगंज से पुराना परिचय था। वह ट्रक लेना चाहता था। पुराने परिचय का लाभ उठाकर उसने उसे गारंटर बना लिया। मदद के नाम पर उससे दो लाख की धनराशि भी ले ली। वर्ष 2018 में खरीदे गए वाहन की जब किस्त टूटने लगी तो उसने उससे वाहन का किस्त जमा करने को कहा। बदले में वाहन उसे सौंपने का भरोसा दिया। आरोपों के मुताबिक अलग-अलग तिथियों में वाहन परमिट, बीमा, फिटनेश प्रमाण पत्र, वाहन में नया टायर और किश्त अदायगी के नाम पर उससे 19 लाख से अधिक की धनराशि ऐंठ ली गई। आरोप है कि अब न तो ली गई रकम वापस की जा रही है, न ही ट्रक को ही उसके हवाले किया जा रहा है।
पीएचडी के वायबा के नाम पर एक लाख की ठगी
हरियाणा के हिसार स्थित स्थित एक विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे राबटर्सगंज निवासी दंपती से वायबा शुल्क के नाम पर एक लाख की ठगी का मामला सामने आया है। विनीता केशरी और उसके पति विकास के साथ हुई ठगी के मामले में राबटर्सगंज कोतवाली पुलिस राजकुमार पुत्र प्रताप सिंह निवासी गांधीनगर, मंगाली, मंगाली, अब्तान 161 जिला हिसार, हरियाणा के खिलाफ धारा 406, 419, 420, 467, 468, 471 आईपीसी के तहत मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी है। पीड़ित का कहना है कि उन्हें ठगे जाने की जानकारी तब हुई, जब वह दोबारा विश्वविद्यालय पहुंचकर वायबा शुल्क के बारे में जानकारी हासिल किए।