Sonbhadra : 3.30 लाख लेकर थमाया था फर्जी नियुंक्ति पत्र, मिली सात वर्ष कैद की सजा, जनसंपर्क विभाग का डिप्टी डायरेक्टर बनकर की थी ठगी

Sonbhadra News: 12 वर्ष पुराना यह प्रकरण करमा थाना क्षेत्र से जुड़ा हआ है। मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी आलोक यादव की अदालत ने शुक्रवार को इस प्रकरण की फाइनल सुनवाई की।

Update:2025-01-03 18:43 IST

 Sonbhadr Karma Police Station ( Pic- Newstrack)

Sonbhadra  News: यूपी सरकार के जनसंपर्क विभाग का जूनियर डायरेक्टर बनकर तीन लाख 30 हजार की ठगी करने और फर्जी नियुक्ति पत्र थमाने के मामले में दोषी को सात वर्ष कठोर कैद की सजा सुनाई गई है। 12 वर्ष पुराना यह प्रकरण करमा थाना क्षेत्र से जुड़ा हआ है। मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी आलोक यादव की अदालत ने शुक्रवार को इस प्रकरण की फाइनल सुनवाई की। पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों और अधिवक्ताओं की तरफ से दी गई दलीलों को दृष्टिगत रखते हुए दोषसिद्ध पाया और सात वर्ष कैद के साथ ही 90 हजार अर्थदंड की सजा सुनाई। आदेशित किया कि अर्थदंड अदा न किए जाने की दशा में दोषी को छह माह की अतिरिक्त कैद भुगतनी होगी। विचारण के दौरान उसने जेल में जो भी अवधि व्यतीत की होगी, उसे सजा में समाहित किया जाएगा।

जानिए पूरा मामला, जिसको लेकर आया फैसला:

करमा थाना क्षेत्र के मदैनिया गांव के रहने वाले अंबरीश कुमार शुक्ला पुत्र राजनाथ शुक्ला ने 156(3) सीआरपीसी के तहत न्यायालय में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर, करमा पुलिस को मामला दर्ज करने का आदेश दिए जाने की गुहार लगाई थी। अवगत कराया था कि वह बीएससी, बीएड और कम्प्यूटर की शिक्षा लिए हुए है। वर्ष 2012 में उसके पिता राजनाथ की, मुलाकात संतोष कुमार मिश्र पुत्र रामललित मिश्र निवासी बनौली, थाना पन्नूगंज, तात्कालिक पता बढ़ौली चौराहा, रॉबर्ट्सगंज, से मुलाकात हुई। संतोष ने उन्हें स्वयं को उत्तर प्रदेश जन संपर्क विभाग लखनऊ में जूनियर डायरेक्टर पद पर कार्यरत होने की जानकारी दी।

नौकरी लगवाने का झांसा देकर ऐंठ लिए तीन लाख 30 हजार:

आरोपों के मुताबिक संतोष ने भरोसा दिया कि वह पीड़ित यानी अंबरीश की सरकारी नौकरी लगवा देगा। इसके लिए उन्हें उसे तीन लाख 30 हजार रुपये देना होगा। उसकी बात पर भरोसा करके, राजनाथ ने 14 नवंबर 2012 को तयशुदा रकम आरोपी को हवाले कर दी। बदले में उसनपे उन्हें एक नियुक्ति पत्र दिया। उस नियुक्ति पत्र को लेकर जब अंबरीश लखनऊ स्थित संबंधित विभाग में ज्वाइन करने पहुंचा तो पता चला कि नियुक्ति पत्र फर्जी है।

नियुक्ति पत्र फर्जी होने पर जताया एतराज तो बंद खाते का थमा दिया चेक

अभी फर्जी नियुक्ति वाला मसला शांत हुआ कि प्रकरण में एक और नया मो़ड आ गया। पीड़ित पक्ष ने जब फर्जी नियुक्ति पत्र को लेकर एतराज जताया तो दोषी ने उन्हें ली गई रकम का एक चेक थमा दिया। एक मई 2013 को जब पी़िड़त पक्ष की तरफ से जब चेक बैंक में जमा किया गया तो ता चला कि जिस खाते का चेक दिया गया है वह खाता ही बंद है। आरोप है कि इसके बाद दिए गए पैसे की मांग करने पर जान से मारने की धमकी दी जाने लगी।

कोर्ट के आदेश पर करमा थाने में किया गया था मामला दर्ज

प्रकरण को गंभीर पाते हुए न्यायालय ने 25 जून 2013 को करमा पुलिस को एफआईआर दर्ज कर विवेचना का आदेश दिया। इसके क्रम में करमा पुलिस ने धोखाधड़ी सहित अन्य आरोपों में केस दर्ज कर छानबीन शुरू की। पर्याप्त सबूत मिलने का दावा करते हुए न्यायालय में चार्जशीट दाखिल की। लगभग 11 साल तक चली सुनवाई के बाद दोषसिद्ध पाया गया और दोषी को सात वर्ष की कैद तथा 90 हजार अर्थदंड से दंडित किया गया। अभियोजन की तरफ से मामले की पैरवी वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी सतीश वर्मा द्वारा की गई।

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