2020 में कोरोना तबाही: दुनिया हुई तहस-नहस, इन नुकसानों को झेल रहा विश्व
2020 को कोरोना महामारी की वजह से सदियों तक याद किया जाता रहेगा। दुनिया का कोई कोना इस वायरस से अछूता नहीं रहा। कोविड-19 इनसानों की सेहत के साथ-साथ इकॉनमी को भी संक्रमित कर गया।
नीलमणि लाल
नई दिल्ली: 2020 को कोरोना महामारी की वजह से सदियों तक याद किया जाता रहेगा। ऐसी महामारी रही जो साल बीतते बीतते अंटार्टिका तक जा पहुंची। यानी दुनिया का कोई कोना इस वायरस से अछूता नहीं रहा।
मार्च 2020 में क्या था हाल
कोरोना के शुरुआती दौर की बात करें तो मार्च में कोरोना संक्रमण के 90 फीसदी केस सिर्फ चार देशों में पाये गये थे जबकि 81 देशों में कोरोना वायरस का कोई मामला सामने नहीं आया था। 57 देश ऐसे थे जहां 10 या उससे कम मामले मिले। मार्च में बताया जा रहा था कि इस घातक बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित देश इटली और ईरान हैं लेकिन भारत समेत बाकी देशों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। लेकिन देखते देखते भारत भी इसकी गिरफ्त में आ गया।
विश्व इकॉनमी भी हुई बीमार
कोविड-19 इनसानों की सेहत के साथ-साथ इकॉनमी को भी संक्रमित कर गया। ओईसीडी (आर्गनाइजेशन फॉर इकॉनमिक कोआपरेशन एंड डेवलपमेंट) ने २०२० के लिये सभी देशों की वास्तविक जीडीपी वृद्धि में खासी कटौती कर दी है। ओसीईडी ने विश्व की जीडीपी वृद्धि का अनुमान ३ फीसदी से घटा कर अब २.५ फीसदी कर दिया है।
चीन, अमेरिका, यूरोप और जापान की जीडीपी वृद्धि में भारी कटौती की गई है। कोरोना का सबसे ज्यादा असर चीन की अर्थव्यवस्था पर रहा। लेकिन साल बीतते बीतते चीन बाउंस बैक कर गया और उसकी इकॉनमी पटरी पर आ गयी।
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भारत ने मार्च में बैन की विदेशियों की एंट्री
कोरोना को कंट्रोल करने के लिये भारत ने तमाम एहतियाती उपाय किये और जांच, आइसोलेशन और जागरूकता के साथ भारत ने मार्च में अपनी सभी सीमाएं भी सील कर दीं। शुरुआत में 15 अप्रैल तक विदेशियों की इंट्री पर बैन लगा दिया गया और सभी टूरिस्ट वीज़ा रद कर दिये गये। भारत में करीब दस लाख टूरिस्ट हर महीने विदेशों से आते हैं।
टूरिज्म इंडस्ट्री को भारी नुकसान
ट्रैवल बैन से पूरी टूरिज्म इंडस्ट्री को भारी नुकसान हुआ है। २०१९ में करीब १ करोड़ ८९ लाख विदेशी टूरिस्ट भारत आये थे। २०१८ की तलना में ये ३.१ फीसदी की बढ़ोतरी थी। मार्च और अप्रैल २०१९ में १७ लाख से ज्यादा टूरिस्ट आये थे। यानी कुल टूरिस्टों में से १५ फीसदी इन्हीं दो महीनों में आये थे। २०२० जनवरी में ११ लाख टूरिस्ट आये थे।
चीन ने किया कंट्रोल
कोरोना वायरस का ग्राउंड जीरो चीन के हुबेई प्रांत का वुहान शहर है। यहीं से ये वायरस निकल कर दुनिया भर में फैला। वुहान में शुरुआत तो दिसम्बर में ही हो गई थी लेकिन चीनी सरकार ने जनवरी के मध्य में इसे गंभीरता से लिया। सरकार ने बीमारी पर काबू पाने के लिये सख्त और व्यापक कदम उठाये और अपनी पूरी ताकत झोंक दी। अब वहां कोरोना वायरस पर लगभग पूरी तरह काबू पा लिया गया है।
इटली में बूढ़ों पर कहर
जब अमेरिका कोरोना से अछूता था उस समय सबसे बुरी तरह प्रभावित इटली था। इटली में बहुत बड़ी संख्या में मौतें हुईं जिसका कारण वहां की बूढ़ी जनसंख्या को बताया गया है। इटली में २३ फीसदी नागरिक ६५ वर्ष से ज्यादा उम्र के हैं। इस देश की औसत उम्र ४७.३ वर्ष है जबकि अमेरिका में ये ३८.३ और भारत में २६.८ वर्ष है। इटली में कोरोना वायरस से जो मौतें हुईं वे सब मरीज ८० और ९० साल के थे।
असर मौसम का
कोरोना वायरस का प्रकोप सर्दी के मौसम में शुरू हुआ और ज्यादातर उन देशों में फैला जहां ठंड पड़ रही थी। पहले लग रहा था कि ये बीमारी गर्मी में खत्म हो जायेगे एलेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और गर्म मौसम में कहर बरकरार रहा।
सांस का संक्रमण
इन्फ्लुएंजा या फ्लू की तरह ये नई बीमारी भी श्वसन प्रणाली का संक्रमण है। ये संक्रमण उस ग्रुप के वायरस से होता है जो आमतौर पर ठंडे वातावरण में ज्यादा समय तक बचा रहता है। चूंकि कोरोना वायरस के प्रति हमारे शरीर में प्राकृतिक इम्यूनिटी नहीं है सो हम सब इसकी चपेट में आ सकते हैं। रिसर्च से पता चला कि हवा में ह्यूमिडिटी से वायरस को पनपने में मदद मिलती है। लेकिन तापमान बढऩे का ये मतलब नहीं कि इससे वायरस मर जायेगा।
कहां से आ टपका कोरोना वायरस
विशेषज्ञों का कहना है कि ये वायरस वन्य जीवन से उपजा है। इस वायरस का जीन चमगादड़ में पाए जाने वाले एक वायरस से मिलता जुलता है। एक थ्योरी ये भी है कि चीन की वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ वाइरोलोजी में इस वायरस पर रिसर्च हो रहा था और वहीं से ये लीक हो गया। चीन ने वायरस का स्रोत का पता लगाने में कोई रुचि नहीं दिखाई और आज तक ये पता नहीं चल पाया है कि आखिर ये वायरस इंसानों के शरीर में आया कैसे? अब तो चीन वायरस का स्रोत कभी इटली तो कभी अमेरिका या भारत तक पर थोप रहा है।
यूएन भी फेल
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ही अकेली यूएन संस्था है जिसके पास अपने फैसले सदस्य देशों पर लागू करवाने की वैधानिक शक्तियां हैं। सुरक्षा परिषद को सैन्य बल के जरिये अपने फैसले लागू करवाने का भी अधिकार है। इसके चलते ये संयुक्त राष्ट्र की सबसे शक्तिशाली संस्था है। लेकिन कोरोना महामारी में सुरक्षा परिषद एकदम बेकार साबित हुई है। दरअसल, सुरक्षा परिषद ने कोरोना महामारी के समय में कोई कोशिश ही नहीं की।
डब्लूएचओ का हाल
इस वर्ष जब कोरोना संकट शुरू हुआ तब संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी विश्व स्वास्थ्य संगठन आँख बंद करके सोता ही रहा। डब्लूएचओ इस बात का अंदाजा ही नहीं लगा पाया कि चीन कितना सच बोल रहा है और कितनी जानकारी छिपा रहा है। डब्लूएचओ वही बोलता रहा जो उसे चीन बता रहा था। पूरी दुनिया के सामने डब्लूएचओ ने मामले की गंभीरता को रखा ही नहीं। डब्लूएचओ चीनी सरकार के झूठे प्रचार तंत्र, चीन की गलत जानकारियों और सूचनाओं का आंकलन ही नहीं कर पाया और न ही वुहान में जांच के लिए कोई टीम भेजी।
कोरोना को वैश्विक महामारी घोषित करने में गंवाया समय
WHO शुरू में यही कहता रहा कि कोरोना वायरस का मानव से मानव में संक्रमण नहीं फैलता है। डब्लूएचओ ने यात्रा और व्यापर सम्बन्धी रोक की मुखालफत की। कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित करने में ही कीमती समय गंवा दिया। अब ये हाल है कि चीन एक गैर भरोसेमंद कोरोना वैक्सीन अपने देश में लाखों लोगों को लगा चुका है, बिना किसी अंतरराष्ट्रीय अप्रूवल के चीन में कोरोना वैक्सीन खुलेआम बेची जा रही है लेकिन डब्लूएचओ पूरी तरह से अनजान बन कर आज भी चुप्पी साधे हुए है।
इन देशों ने दिखा दिया कंट्रोल हो सकता है कोरोना
कोरोना वायरस से पूरी दुनिया बेहाल है। अमेरिका हो, भारत या ब्राज़ील या फिर यूरोप, सब जगह बीमारी और महामारी के कारण आये आर्थिक संकट ने हालात बेहद खराब बना दिए हैं। चीन के वुहान से शुरू इस बीमारी के खिलाफ कुछ देशों ने बहुत शिद्दत से लडाई लड़ी है तो कई देश लड़खड़ाते नजर आये हैं। कोरोना के खिलाफ जंग जीतने वाले देश अमूमन छोटे और कम आबादी वाले हैं।
इन देशों ने किया कंट्रोल
दुनिया में कम से कम नौ ऐसे देश हैं जिन्होंने अभी तक कोरोना को सफलतापूर्वक कंट्रोल किया हुआ है। ये देश हैं – न्यूजीलैंड, आइसलैंड, तंज़ानिया, फिजी, मोंटेनेग्रो, वैटिकन सिटी, सेचेल्स, मारीशस और पापुआ न्यू गिनी। इसके अलावा चीन, ताइवान, कोरिया भी सफलता पूर्वक कोरोना अको कंट्रोल कर सके।
न्यूजीलैंड
अगर न्यूजीलैंड की बात करें तो यहां कोरोना का पहला केस 28 फरवरी 2020 को मिला था। 25 मार्च को भारत की तरह इस देश ने भी दुनिया के सबसे सख्त लॉकडाउन में से एक को लागू किया। न्यूजीलैंड में कोरोना अप्रैल में पीक पर पहुंचा जब देश में रोजाना औसतन 89 नए केस आने लगे और कुल एक्टिव केस ९२९ हो गए। 8 जून आते आते न्यूजीलैंड में नए केस आना बंद हो गए। न्यूजीलैंड की सफलता बेहतर प्रबंधन में छिपी हुई है। सरकार ने यहाँ लॉक डाउन पूरी सख्ती से लागू किया, कांटेक्ट ट्रेसिंग पूरी शिद्दत से की, बहुत धीरे धीरे लॉक डाउन को खोला। इसके अलावा टेस्टिंग बड़े पैमाने पर की गयी।
तंज़ानिया
वहीं तंज़ानिया के प्रेसिडेंट जॉन मगुफुली ने अपने देश को कोरोना मुक्त घोषित कर दिया है। आज की तारिख में तंज़ानिया में कोई मास्क नहीं पहनता, कोई बंदिश नहीं है और सब नार्मल हो चुका है। तंज़ानिया में कोरोना का पहला केस 16 मार्च को आया था। 29 अप्रैल को देश में कुल ५०९ केस थे और कुल मौतों की संख्या 21 थी। तंज़ानिया ने कोरोना की शुरुआत में हे सीमायें बंद कर दीं थीं। यहाँ जिन इलाकों में कोरोना फैला वहां व्यापक टेस्टिंग की गयी। कोरोना के लक्षण वाले सभी लोगों को अनिवार्य रूप से अलग थलग रखा गया।
शुरुआत में ही एक्शन लेना शुरू किया
जिन देशों ने कोरोना को कंट्रोल किया उनमें एक कॉमन बात ये रही है कि सबने शुरुआत में ही एक्शन लेना शुरू कर दिया था। मिसाल के तौर पर बीमारी की जानकारी मिलते ही सिंगापुर, ताइवान और हांगकांग ने अपनी सीमाओं पर स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी। जब टेस्टिंग की अहमियत समझ में आयी तो सबसे पहले इन देशों ने टेस्टिग शुरू कर दी थी।
इस देश की सफलता एक मिसाल
दक्षिण कोरिया की सफलता भी एक मिसाल है यहाँ कोरोना के मामले तेजी से बढ़े मगर देश ने टेस्ट पर जोर दिया और 2 लाख 90 हजार से अधिक लोगों का परीक्षण किया। यहाँ कानून बनाया गया और सभी के लिए फ्री टेस्टिंग का प्रावधान किया गया।
सिंगापुर, न्यूजीलैंड, तैवान, कोरा अदि देशों ने उन सभी लोगों को ट्रेस किया जो संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में हो सकते थे। फिर इनका टेस्ट किया गया और उन्हें नतीजा आने तक अकेले में रहने का आदेश दिया गया। हांगकांग में विदेश से आने वाले लोगों को बांह में एक इलेक्ट्रिक ब्रेसलेट पहनना होता है जो उनकी मूवमेंट को ट्रैक करता है।
कड़ा कानून
कोरिया से लेकर तंज़ानिया तक लोगों पर स्कह्ती से कानून लागू किया गया।आइसोलेशन और क्वारंटाइन का उल्लंघन करने पर सख्त फाइन लगाया गया। चीन की तरह सिंगापुर में जिन लोगों को घर पर अलग रहने के लिए कहा गया उनसे दिन में कई बार संपर्क किया जाता रहा। ख़ुफ़िया तंत्र तक को लगाया गया।
कोविड-19 के खिलाफ दवाओं का जखीरा
डेक्सामेथासोन : कोरोना की दवा के मामले में ब्रिटेन में दुनिया का सबसे बड़ा क्लिनिकल ट्रायल चला जिसे रिकवरी ट्रायल कहा गया। इस ट्रायल में ही पहली बार पता चला कि डेक्सामेथासोन से मरीजों की जान बच सकती है। इसके अलावा कौन सी दवा कारगर है या नहीं है, इसका पता भी इस ट्रायल में चला है। डेक्सामेथासोन दवा का इस्तेमाल पहले से ही सूजन को कम करने में किया जाता रहा है।
रेमडेसिवीर : इबोला वायरस के इलाज के लिए खोजी गई दवा रेमडेसिवीर के क्लीनिकल ट्रायल के नतीजे उत्साहवर्धक रहे। अमेरिकी नेतृत्व में इस दवा का क्लिनिकल ट्रायल दुनिया भर में किया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉक्टर ब्रुस आइलवर्ड का कहना है कि चीन के दौरे बाद उन्होंने पाया कि रेमडेसिवीर एकमात्र ऐसी दवा है जो असरदायी नज़र आती है।
एचआईवी की दवा : एच आई वी की दवाओं को लेकर बहुत बातें की जा रही हैं लेकिन इस बात के प्रमाण नहीं मिले हैं जिससे यह कहा जाए कि एचआईवी की दवा लोपीनावीर और रिटोनावीर कोरोना वायरस के इलाज में असरदायी साबित हुई हैं। लैब में किए परीक्षण में ज़रूर इस बात के प्रमाण मिले हैं कि यह काम कर सकती हैं लेकिन लोगों पर किए गए ट्रायल में निराशा हाथ लगी है।
मलेरिया की दवा : मलेरिया की दवा को लेकर भी काफ़ी चर्चा रही है, लेकिन ये दवा नाकाम ही साबित हुई। यह दवा उस वक़्त बड़े पैमाने पर चर्चा में आई जब राष्ट्रपति ट्रंप ने कोरोना वायरस के इलाज में इसकी संभावनाओं की बात कही लेकिन अब तक इसके असरदार होने को लेकर बहुत कम प्रमाण मिले हैं।
हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल अर्थराइटीस में भी किया जाता है क्योंकि यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता को नियमित करने में मदद कर सकता है। लेकिन आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिकवरी ट्रायल से यह मालूम हुआ है कि हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्विन कोविड-19 के इलाज में कोई मदद नहीं पहुंचाता है। इसके बाद इसे ट्रायल से बाहर कर दिया गया।
ब्लड प्लाज़्मा का भी हुआ इस्तेमाल
कोरोना का मुकम्मल इलाज दुनिया में कहीं नहीं है। लेकिन प्लाज्मा थेरेपी भी कारगर साबित हुई है। इसमें कोरोना से ठीक हो चुके शख्स का प्लाज्मा दूसरे मरीज को चढ़ाया जाता है। यह प्लाज्मा कारगर है भी या नहीं, ये जांचने के लिए दानकर्ता का एंटीबॉडी टेस्ट होता है। अलग अलग वायरस के खिलाफ अलग तरह की एंटीबॉडी का निर्माण होता है। एच1एन1 फ्लू, इबोला और सार्स के प्रकोप में डोनर्स के प्लाज्मा या सीरम से इलाज में सफलता पाई गई थी।
मरीजों के ब्लड प्लाज़्मा में एंटी बॉडी नदारद पाई गई
जो मरीज़ कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक हो गए हैं उनके शरीर में इसका एंटीबॉडी होना चाहिए जो वायरस के खिलाफ असरदायी हो सकता है। ये एक क्लिनिकल सिद्धांत है। इसके तहत, ठीक हुए मरीज़ के ख़ून से प्लाज्मा (जिस हिस्से में एंटीबॉडी है) निकाल कर बीमार पड़े मरीज़ में डालते हैं।
भारत समेत कई देशों में ये प्रयोग किया जा रहा है। यह तरीका दूसरी बीमारियों में तो कारगर साबित हुआ है, लेकिन कोरोना वायरस में इस तरीके से पूरी कामायबी नहीं मिली है। इसके अलावा बहुत से रिकवर्ड मरीजों के ब्लड प्लाज़्मा में एंटी बॉडी नदारद पाई गई हैं।
क्या है एंटीबॉडी?
एंटीबॉडी शरीर का वो तत्व है, जिसका निर्माण हमारा इम्यून सिस्टम शरीर में वायरस को बेअसर करने के लिए पैदा करता है। संक्रमण के बाद एंटीबॉडी बनने में कई बार एक हफ्ते तक का वक्त लग सकता है। इसलिए अगर इससे पहले एंटीबॉडी टेस्ट किए जाएं तो सही जानकारी नहीं मिल पाती है। ऐसी स्थिति में कई बार आरटी-पीसीआर टेस्ट कराया जाता है।
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