क्या होता है महाभियोग? जिससे खतरे में ट्रंप की कुर्सी, जानें पूरी प्रक्रिया के बारें में
सार्वजनिक पद पर बैठे किसी शख्स पर महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए इल्ज़ाम तय किए जाते हैं। ये आरोप ही ‘आर्टिकल्स ऑफ इंपीचमेंट कहलाते हैं।
वाशिंगटन: कैपिटल इमारत में हुई हिंसा के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुश्किलें लगातार बढती जा रही है। ये मामला अब इतना ज्यादा आगे बढ़ चुका है कि राष्ट्रपति ट्रंप को हटाने के लिए महाभियोग लाने की मांग की जा रही है।
अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में डेमोक्रेट्स ने सोमवार को रिपब्लिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ महाभियोग( इंपीचमेंट’) के नए अनुच्छेद को पेश करने की योजना भी बनाई है।
इस मामले में हाउस स्पीकर नैंसी पेलोसी ने भी सख्ती से अपनी आवाज उठाई है। डेमोक्रेटिक पार्टी की नैंसी पेलोसी ने उप-राष्ट्रपति माइक पेंस और ट्रंप के मंत्रिमंडल से कहा है कि वे तुरंत अनुच्छेद 25 के तहत ट्रंप को हटाने की प्रक्रिया शुरू करें।
पेलोसी ने धमकी दी है कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो वे सदन में महाभियोग प्रस्ताव लाकर ट्रंप को इस विधि से हटाने की प्रक्रिया शुरू करेंगी।
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क्या होता है महाभियोग (इंपीचमेंट’)
सबसे पहले तो एक खास बात बता दें, वो ये कि हर देश में महाभियोग प्रस्ताव लाने का नियम उसके संविधान के मुताबिक अलग-अलग होता है।
कोई जरूरी नहीं कि महाभियोग प्रस्ताव का जो नियम अमेरिका में फालो किया जाता है। वैसा ही दुनिया के बाकी देशों में भी होता हो।
अब बात करते हैं क्या होता है महाभियोग? महाभियोग वो प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है
इसके मुताबिक, राष्ट्रपति को उसका कार्यकाल पूरा होने से पहले पद से हटाया जा सकता है। अगर उसने गद्दारी की हो। रिश्वत ली या दी हो। पद का दुरुपयोग किया हो। कोई बेहद गंभीर अपराध किया हो। या वो कदाचार का दोषी पाया जाए।
अमेरिकी संविधान क्या कहता है?
कॉन्स्टिट्यूशन में इस प्रक्रिया के लिए साफ स्थितियां बताई गई हैं। इसके मुताबिक-
आर्टिकल 1, सेक्शन 2: ‘हाउस ऑफ रेप्रेजेंटेटिव’ के पास ताकत होगी महाभियोग चलाने की।
आर्टिकल 1, सेक्शन 3: सेनेट के पास पावर होगी महाभियोग का केस चलाने की।
आर्टिकल II, सेक्शन 3: राष्ट्रपति को महाभियोग लगाकर पद से हटाया जा सकता है, अगर उन्हें देशद्रोह, रिश्वतखोरी या फिर किसी और तरह के गंभीर अपराध या कदाचार (हाई क्राइम्स ऐंड मिस्डिमिनर्स) का दोषी पाया जाए।
हाई क्राइम्स और मिस्डिमिनर्स। इनकी व्याख्या नहीं की गई है संविधान में। इसका मतलब कि ये कांग्रेस के विवेक पर छोड़ा गया है। कि वो तय करे कि कौन सा अपराध इस श्रेणी के अंतर्गत महाभियोग के लायक समझा जाएगा
कैसे होती है ये प्रक्रिया?
महाभियोग की इस प्रक्रिया में ‘हाउस ऑफ रेप्रेजेंटेटिव्स’ राष्ट्रपति पर आरोप तय करता है। वही ड्राफ्ट करता है। फिर सेनेट में केस चलता है। इस ट्रायल की निगरानी करते हैं सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस।
महाभियोग लाने के कुछ खास तरीके
1. कांग्रेस महाभियोग से जुड़ी जांच का जिम्मा जूडिशरी कमिटी को सौंपे। ये देखने के लिए महाभियोग लगाना चाहिए कि नहीं। इसके बाद कमिटी ‘आर्टिकल्स ऑफ इंपीचमेंट यानी आरोप तय करके इसकी अनुशंसा फुल हाउस से कर सकता है।
दूसरा तरीका ये है कि ‘हाउस ऑफ रेप्रेजेंटेटिव’ ख़ुद से ही एक कमिटी या पैनल का गठन करे। जो कि इंपीचमेंट से जुड़ी प्रक्रिया संभाले। एक तीसरा तरीका ये है कि बिना कोई कमिटी बनाए ही इंपीचमेंट आर्टिकल्स पर फ्लोर वोटिंग करवा ली जाए।
2.वोटिंग के मार्फ़त ‘हाउस ऑफ रेप्रेजेंटेटिव्स’ महाभियोग लगाने के लिए जो आरोप हैं उनको पास या फेल करती है। अगर बहुमत इसे पास करती है, तो महाभियोग चलेगा।
अगर नहीं पास करती, तो नहीं चलेगा। महाभियोग चलाए जाने का मतलब ये नहीं कि दोषी मान लिया गया और पद से हटा दिया गया। यहां से आगे ये प्रक्रिया सेनेट के पास पहुंचती है।
3.सेनेट में तय आरोपों पर केस चलता है। इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी करते हैं सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस।
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आर्टिकल्स ऑफ इंपीचमेंट’ क्या होता है?
सार्वजनिक पद पर बैठे किसी शख्स पर महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए इल्ज़ाम तय किए जाते हैं। ये आरोप ही ‘आर्टिकल्स ऑफ इंपीचमेंट कहलाते हैं। ये फाइनल चीज नहीं है। मतलब आरोप तय होने का मतलब ये नहीं कि राष्ट्रपति की छुट्टी हो गई। इसके आगे की कार्रवाई होती है।
कितने वोट ज़रूरी हैं दोषी ठहराने के लिए
महाभियोग में दोषी ठहराने और राष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए सेनेट में कम-से-कम दो तिहाई बहुमत चाहिए होता है। मतलब 100 सेनेटर्स में से कम-से-कम 67 सेनेटर्स ट्रंप को हटाने पर सहमत हों।
अभी सेनेट में डेमोक्रैटिक पार्टी का कितना हिस्सा है?
कुल 100 सेनेटर्स। इनमें से 47 हैं डेमोक्रैट्स। और 53 हैं रिपब्लिकन्स। मतलब ‘हाउस ऑफ रेप्रेजेंटेटिव्स’ जहां कि डेमोक्रैटिक पार्टी का बहुमत है, अगर आरोप तय करके सेनेट भेजती भी है तो वहां उसे कम-से-कम 20 रिपब्लिकन सेनेटर्स की मदद चाहिए होगी।
हालांकि रिपबल्किन्स ऐसा करेंगे, ऐसा लगता नहीं। लेकिन अगर प्रक्रिया इस मोड़ तक पहुंच जाती है, तो ट्रंप दोषी मान लिए जाएंगे। उन्हें पद से हटा दिया जाएगा। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति बनाए जाते हैं वाइस प्रेजिडेंट।
अभी इस पद पर हैं माइक पेंस। आपातकालीन स्थिति में राष्ट्रपति बनाए जाने के लिए तीसरे क्रम पर ‘हाउस ऑउ रेप्रेजेंटेटिव्स’ के स्पीकर आते/आती हैं।
जानें भारत के महाभियोग के बारें में सबकुछ?
अगर हम भारत के संदर्भ में बात करें तो महाभियोग वो प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है।
इसका ज़िक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में मिलता है।महाभियोग प्रस्ताव सिर्फ़ तब लाया जा सकता है जब संविधान का उल्लंघन, दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित हो गए हों।
नियमों के मुताबिक़, महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है। लेकिन लोकसभा में इसे पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के दस्तख़त, और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के दस्तख़त ज़रूरी होते हैं।
इसके बाद अगर उस सदन के स्पीकर या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लें (वे इसे ख़ारिज भी कर सकते हैं) तो तीन सदस्यों की एक समिति बनाकर आरोपों की जांच करवाई जाती है।
उस समिति में एक सुप्रीम कोर्ट के जज, एक हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस और एक ऐसे प्रख्यात व्यक्ति को शामिल किया जाता है जिन्हें स्पीकर या अध्यक्ष उस मामले के लिए सही मानें।
भारत में कैसे होती है महाभियोग की कार्यवाही
अगर यह प्रस्ताव दोनों सदनों में लाया गया है तो दोनों सदनों के अध्यक्ष मिलकर एक संयुक्त जांच समिति बनाते हैं।
दोनों सदनों में प्रस्ताव देने की सूरत में बाद की तारीख़ में दिया गया प्रस्ताव रद्द माना जाता है।
जांच पूरी हो जाने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट स्पीकर या अध्यक्ष को सौंप देती है जो उसे अपने सदन में पेश करते हैं। अगर जांच में पदाधिकारी दोषी साबित हों तो सदन में वोटिंग कराई जाती है।
प्रस्ताव पारित होने के लिए उसे सदन के कुल सांसदों का बहुमत या वोट देने वाले सांसदों में से कम से कम दो तिहाई का समर्थन मिलना ज़रूरी है।
अगर दोनों सदन में ये प्रस्ताव पारित हो जाए तो इसे मंज़ूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाता है। किसी जज को हटाने का अधिकार सिर्फ़ राष्ट्रपति के पास है।
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