बाज नहीं आ रहा पाकः चीन के करीब जाने को अब आया नक्शा राजनीति पर
देश का बंटवारा हुए सात दशक से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन पाकिस्तान की खिसियाहट और बौखलाहट अब भी कम नहीं हुई है।
लखनऊ: देश का बंटवारा हुए सात दशक से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन पाकिस्तान की खिसियाहट और बौखलाहट अब भी कम नहीं हुई है। अपनी ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने की बजाय वो बेवकूफी भरी हरकतें करता चला आ रहा है। इसके पीछे पाकिस्तान की आन्तरिक स्थिति और विफल सरकारें भी बहुत बड़े कारण हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने जम्मू कश्मीर-लद्दाख-जूनागढ़ को पाकिस्तान का हिस्सा बताकर अपनी खिसियाहट एक बार फिर जाहिर की है।
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इसलिए खिसियाया है पाकिस्तान
दरअसल, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का मोदी सरकार का ऐतिहासिक फैसला पाकिस्तान को कांटे की तरह चुभता रहा है। इस मामले को उसने हर संभव मंच पर उठाया, लेकिन हर जगह उसने मुंह की खाई। कुछ नहीं हुआ तो अब पाकिस्तान ने नक़्शे में ही बदलाव कर दिया है। इससे पाकिस्तान को हकीकत में कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है, ये वहां की सरकार भी अच्छी तरह जानती है और सिर्फ अपनी आवाम को भरमाने के लिए ऐसी हरकतें कर रही है। इसके अलावा पाकिस्तान की नक्शा राजनीति चीन के और करीब आने के इरादे से भी है।
इमरान खान की विफलता
जब इमरान खान ने पाकिस्तान की बागडोर संभाली थी तो उन्होंने बाहरी झगड़ों और आतंकवाद को पोसने की बजाय देश को तरक्की की राह पर ले जाने का इरादा जाहिर किया था। लेकिन इमरान खान पाकिस्तान की हालत में तनिक भी बदलाव नहीं ला सके। सो अपनी विफलता को ढकने के लिए वे भी पुराने हुक्मरानों के रास्ते पर ही लौट आए हैं।
भारत ने खारिज किया नया नक्शा
बहरहाल, भारत ने पाकिस्तान के नए राजनीतिक नक़्शे को ख़ारिज करते हुए कहा है कि न तो इसकी क़ोई क़ानूनी वैधता है और न ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी कोई विश्वसनीयता है। भारत ने साफ़ तौर पर कहा है कि पाकिस्तान के इन हास्यास्पद दावों की न तो क़ानूनी वैधता है और न ही अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता। सच्चाई तो ये है कि पाकिस्तान की ये नई कोशिश केवल सीमा पार आतंकवाद द्वारा समर्थित क्षेत्र-विस्तार की पाकिस्तान के जुनून की हक़ीक़त की पुष्टि करती है।
मसला जूनागढ़ का
सन 1948 के बाद से जूनागढ़ और मनावदर क्षेत्र भारत के पास है और यहां सोमनाथ का मंदिर भी स्थित है। पाकिस्तान का कहना है कि जूनागढ़ और मनावदर हमेशा से उसका हिस्सा थे क्योंकि जूनागढ़ के नवाब ने भारत के बंटवारे के समय पाकिस्तान के साथ विलय किया था, लेकिन भारत ने ताक़त के बूते इस रियासत पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया।
दीवान ने बनाया पाक में विलय का प्लान
दरअसल, अगस्त 1947 में आज़ादी या बंटवारे के समय सभी रियासतों को विकल्प दिया गया था कि वे भारत में मिल जाएं या पाकिस्तान में विलय कर लें या फिर अपना पृथक अस्तित्व बनाए रखें। 15 अगस्त 47 तक भारत के भीतर स्थित अधिकांश रियासतों ने भारत में विलय का रास्ता चुन लिया था। जूनागढ़ के नवाब उन दिनों यूरोप में छुट्टियां मना रहे थे और रियासत का कामकाज उनके दीवान सर शाहनवाज़ भुट्टो देख रहे थे। भुट्टो ने मोहम्मद अली जिन्ना से पटरी बैठा कर जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय का प्लान बना लिया।
नवाब मोहम्मद महाबत खनजी रसुलखनजी 11 अगस्त 1947 को यूरोप से लौटे तो दीवान शाह नवाज़ भुट्टो ने उनको समझा दिया कि वे रियासत का विलय पाकिस्तान में कर दें। नवाब ने जिन्ना से बात करने के लिए एक दूत उनके पास भेजा और पाकिस्तान में जूनागढ़ के विलय का एलान कर दिया। नवाब के फैसले पर वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने हैरानी भी जताई क्योंकि जूनागढ़ की सीमा पाकिस्तान से नहीं मिलती थी और यहां की बहुसंख्य आबादी हिन्दुओं की थी, लेकिन नवाब अड़े हुए थे।
भारत ने तैनात कर दी सेना
नवाब की जिद से अाजिज आकर जूनागढ़ के नियंत्रण वाले दो क्षेत्रों मंगरोल और बबरियावाड ने अपने को जूनागढ़ से आजाद घोषित करते हुए भारत में विलय का एलान कर दिया। इस पर नवाब की सेना ने जबरन इन दोनों इलाकों पर कब्जा जमा लिया। इस अफरातफरी के बीच भारत ने जूनागढ़ की सीमा पर सेना तैनात कर दी और जूनागढ़ की सप्लाई चेन बंद कर दी।
परिवार सहित पाक भाग गए नवाब
भारत का कहना था कि जूनागढ़ का पाकिस्तान से कोई सम्बन्ध नहीं है और अगर जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलने दिया गया तो गुजरात में सुलग रहा सांप्रदायिक तनाव गंभीर मोड़ ले सकता है। भारत ने कहा कि विलय के सवाल को जनमत संग्रह से सुलझाना चाहिए। इस बीच पाकिस्तान ने कहा कि वह जनमत संग्रह पर बात करने को तैयार है, लेकिन पहले जूनागढ़ की सीमाओं से भारतीय सेनाएं हटा दी जानी चाहिए। भारत ने पाकिस्तान की मांग ख़ारिज कर दी। इसी बीच 24 अक्टूबर को नवाब अपने परिवार, शाह नवाज भुट्टो और कुत्तों को लेकर विमान द्वारा पाकिस्तान भाग गए।
जनमत संग्रह का नतीजा भारत के पक्ष में
उधर पकिस्तान अपनी आपत्ति जताता रहा, लेकिन भारत सरकार ने हस्तक्षेप करने का फैसला ले लिया। इस तरह 9 नवम्बर 1947 को जूनागढ़ भारत में मिल गया। लेकिन चूंकि पाकिस्तान अब भी अड़ा हुआ था, सो 20 फरवरी 1948 को एक जनमत संग्रह हुआ और नतीजे एकमत से भारत के पक्ष में गए। 91 फीसदी लोगों ने भारत में विलय के पक्ष में वोट डाला।
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बहुत पछताए थे जूनागढ़ के नवाब
नवाब महाबत खान भाग कर पाकिस्तान चले तो गए, लेकिन वहां पहुंचने के बाद वो बहुत पछताए। जूनागढ़ के भारत में विलय के बाद वो पाकिस्तान के किसी काम के नहीं रह गए थे। पाकिस्तान ने उनसे बहुत सौतेला व्यवहार किया। उनके लिए जो रकम बांधी गई, वो पाकिस्तान की रियासतों के पूर्व राजाओं और नवाबों के मुकाबले कम थी बल्कि उन्हें वैसा महत्व भी नहीं मिलता था। महाबत खान के निधन के बाद पाकिस्तान में उनके वंशजों की हालत पस्त है। उन्हें गुजारे के तौर पर महीने का मात्र 16 हजार रुपए मिलता है। इसको लेकर उनके वंशज कई बार विरोध भी जता चुके हैं।
पाक में नहीं हो रही कोई पूछ
अब जूनागढ़ के नवाबी परिवार के लोग खासे बेचैन रहते हैं। रह रहकर वो पाकिस्तान के मीडिया को बताने की कोशिश करते हैं कि पाकिस्तान के लिए उन्होंने कितनी बड़ी कुर्बानी दी है और ये मुल्क उन्हें किनारे कर चुका है। कोशिश तो वह जूनागढ़ के भारत में विलय के मामले को विवादास्पद बनाने की भी करते हैं। कराची में नवाब महाबत खान के जो तीसरे वंशज रह रहे हैं, उनका नाम है नवाब मुहम्मद जहांगीर खान। कुछ समय पहले उन्होंने कहा था कि अगर उन्हें पता होता कि पाकिस्तान जाने के बाद उनका मान सम्मान खत्म हो जाएगा तो वे कभी भारत छोड़कर नहीं आते। खटास इस बात की भी है कि अपने जिस वजीर के उकसावे में आकर वो पाकिस्तान से भागे, उस वजीर भुट्टो का परिवार पाकिस्तान का मुख्य राजनीतिक परिवार बन गया।
एक पाकिस्तानी अखबार को दिए इंटरव्यू में नवाब मुहम्मद जहांगीर ने कहा था कि बंटवारे के समय मोहम्मद अली जिन्ना के साथ हुए समझौते के तहत ही उनका परिवार पाकिस्तान आया था। जूनाग़ढ़ उस समय हैदराबाद के बाद दूसरे नंबर का सबसे धनवान राज्य था। नवाब अपनी संपत्ति जूनागढ़ में छोड़कर पाकिस्तान चले आए थे।
जूनागढ़ – इतिहास के आईने में
जूनागढ़ का इतिहास काफी उतर-चढ़ाव वाला रहा है। इस पर मौर्य और कलिंग वंश का शासन रहा। यूनानियों ने यहाँ राज किया। ये गुप्त साम्राज्य का हिस्सा रहा। 1472 ईस्वी में चूड़ासम राजपूतों को हराकर तुर्क आक्रमणकारी मोहम्मद बेगढ़ा ने जूनागढ़ पर कब्जा कर लिया। इसके बाद मुगलों और फिर पश्तूनों का यहां कब्जा रहा था।
गिरनार पर्वत के समीप जूनागढ़ शहर का निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ था। गिरनार के रास्ते में एक गहरे रंग की बसाल्ट या कसौटी के पत्थर की चट्टान हैं, जिस पर तीन राजवंशों का प्रतिनिधित्व करने वाला शिलालेख अंकित है। मौर्य शासक अशोक (लगभग 260-238 ई.पू.), रुद्रदामन (150 ई.) और स्कंदगुप्त (लगभग 455-467)। यहां 100-700 ई. के दौरान बौद्धों द्वारा बनाई गई गुफ़ाओं के साथ एक स्तूप भी है।
जूनागढ़ शहर के निकट स्थित कई मंदिर और मस्जिदें भी इसके लंबे और जटिल इतिहास को बयां करतीं हैं। यहां तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की बौद्ध गुफ़ाएं, पत्थर पर उत्कीर्णित सम्राट अशोक का आदेशपत्र और कहीं-कहीं जैन मंदिर स्थित हैं। 15वीं शताब्दी तक राजपूतों का गढ़ रहे जूनागढ़ पर 1472 में गुजरात के महमूद बेगढ़ा ने क़ब्ज़ा कर लिया, जिन्होंने इसे मुस्तफ़ाबाद नाम दिया और यहां एक मस्जिद बनवाई, जो अब खंडहर हो चुकी है।
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ऐशोआराम वाली लाइफ स्टाइल
मुहम्मद महाबत खनजी रसूल खनजी जूनागढ़ के आखिरी नवाब थे। इन्होंने 1911 से 1948 तक शासन किया। महाबत खनजी अपने ऐशोआराम वाली लाइफ स्टाइल के कुत्तों के शौक के लिए विख्यात थे। एक समय में नवाब के पास ऊंची नस्ल के 200 कुत्ते थे। नवाब साहब अपने ख़ास कुत्तों की बर्थडे और विवाह समारोहों को बहुत जोर शोर से मनाते थे जिसमें दिल खोलकर खर्चा किया जाता था। नवाब ने एशियाई शेरों, काठियावाड़ी घोड़ों और गिर की गायों के संरक्षण के लिए भी बहुत काम किया। गिर अभयारण्य के विशाल क्षेत्र को बचाने और आगे बढ़ाने में नवाब महाबत खनजी का बहुत बड़ा योगदान है।
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