कोरोना की खास दवा: दी गई ट्रंप को, जानें आखिर कितनी असरदार है Remdesivir

रेमडेसिवीर दवा सीधे वायरस पर हमला करती है। इसे ‘न्यूक्लियोटाइड एनालॉग’ कहा जाता है। वायरस आमतौर पर तेजी से हमला करने की कोशिश करते हैं।

Update: 2020-10-04 16:20 GMT

नीलमणि लाल

लखनऊ: कोरोना संक्रमित अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प को ‘रेमडेसिविर’ दवाई दी गयी है। कोरोना की इस दवाई पर दुनिया भर के विशेषज्ञों में अब भी डिबेट जारी है कि ये आखिर है कितने असरदार। ये माना जाता है कि ‘रेमडेसिविर’ से वायरस के रेप्लीकेशन की स्टेज रुक जाती है यानी वायरस शरीर के भीतर बढ़ नहीं पाता है। दरअसल, शरीर के भीतर कोरोना वायरस बहुत तेजी से दुगना-तिगुना होता जाता है और शरीर के सेल्स को अपने कब्जे में ले लेता है।

कैसे बढ़ता है वायरस

जब वायरस मानव कोशिका यानी सेल में घुसता है तो वो वहां पर अपना जेनेटिक मेटेरियल छोड़ देता है। इसके बाद वायरस शरीर की मशीनरी का इस्तेमाल करके अपनी अनगिनत कॉपियाँ बनाता चला जाता है। संक्रमण की हर स्टेज पर विभिन्न मानव शरीर के प्रोटीन और वायरस प्रोटीन और उनके सम्मिश्रण काम करते जाते हैं।

वायरस का इंजन

वायरस की कॉपी बनने की स्टेज पर वायरस का आरडीआरपी नाम का एंजाइम बड़ी भूमिका अदा करता है। ये एंजाइम सेल के भीतर केमिकल रिएक्शन की गति को बढ़ा देता है। आरडीआरपी वायरस के आरएनए को प्रोसेस करके वायरस की कॉपी बनाता है। शोधकर्ता आरडीआरपी को वायरस का इंजन मानते हैं और रेमडीसिविर को इस इंजन के खिलाफ काम करने वाला माना गया है।

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कैसे काम करता है रेमडीसिविर

रेमडेसिवीर दवा सीधे वायरस पर हमला करती है। इसे ‘न्यूक्लियोटाइड एनालॉग’ कहा जाता है जो एडेनोसिन की नकल करता है। दरअसल, वायरस आमतौर पर तेजी से हमला करने की कोशिश करते हैं। रेमडेसिवीर चुपके से एडेनोसिन के बजाय वायरस के जीनोम में खुद को शामिल करता है, जो रेप्लिकेशन प्रोसेस में शॉर्ट सर्किट की तरह काम करता है। अपनी संख्या बढाने के लिए आरडीआरपी वायरस के आरएनए को रॉ मटेरियल को प्रोसेस करता है। जब संक्रमित मरीज को रेमडीसिविर दी जाती है तो ये दवा आरडीआरपी की तरह काम करती है जिससे वायरस अपनी संख्या नहीं बढ़ा पाता है।

इबोला के लिए किया गया था विकसित

रेमडेसिवीर का निर्माण सबसे पहले वायरल बुखार इबोला के इलाज के लिए किया गया था। इसे अमेरिकी फार्मास्युटिकल गिलियड साइंसेज द्वारा बनाया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पाया कि रेमडेसिवीर से कोरोना का इलाज करने में सफलता मिलेगी क्योंकि यह दूसरे वायरस को अपनी संख्या बढ़ाने से रोकती है।

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कोविड मरीजों पर कारगर ये दवा

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शन डिजीज के एक दल ने आंकड़े जारी करते हुए कहा कि कोविड मरीजों को यह दवा दिए जाने पर उन्हें ठीक करने में सफलता मिली है। जो मरीज पहले 15 दिन में ठीक हो रहे थे वे केवल 11 दिनों में इस दवा के इस्तेमाल के कारण ठीक हो गए।

भारत में बड़ी तादाद में इस दवा का इस्तेमाल

भारत में भी बड़ी तादाद में कोरोना के मरीजों को यह दवा दी जा रही है। भारत में इसकी जमकर कालाबाजारी हो रही है व यह दवा 10,000 से लेकर 60,000 प्रति वाइल की दर से बिक रही है। हाल ही में इसके अमेरीकी निर्माता ने भारत व पाकिस्तान की सिप्ला, हेटेरो और जुबिलेंट आदि कंपनियों को यह दवा अपने देश में बनाने व बेचने की अनुमति दी है। इस दवा में करीब 25 तरह का कच्चा माल लगता है। उसे बनाने के लिए 25 रासायनिक चरणों से गुजरना पड़ता है। अभी तक इसे अमेरिका में तैयार किया जा रहा था।

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