×

Special Report: नेपाल के काठमांडू में उपेक्षित है बेगम हज़रत महल की मजार

देशभक्ति से सराबोर कविता ‘शहीदों की मजारों पर जुड़ेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा‘ की ये पंक्तियां आज भी देश में प्रसिद्ध हैं।

Newstrack
Published on: 10 Aug 2020 2:06 PM GMT
Special Report: नेपाल के काठमांडू में उपेक्षित है बेगम हज़रत महल की मजार
X
Special Report: नेपाल के काठमांडू में उपेक्षित है बेगम हज़रत महल की मजार

गोंडा। देशभक्ति से सराबोर कविता ‘शहीदों की मजारों पर जुड़ेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा‘ की ये पंक्तियां आज भी देश में प्रसिद्ध हैं। लेकिन इन पंक्तियों के लेखक को शायद तनिक भी आभास नहीं रहा होगा कि वतन पर मर मिटने वाले सभी शहीदों की किस्मत एक जैसी नहीं होती। कई शहीद अनजाने होते हैं, जिनका कोई बाकी निशां भी नहीं होता। उनकी चिताओं पर न तो मेले लगते हैं और न ही श्रद्धा के फूल चढ़ाए जाते हैं।

ये भी पढ़ें... बड़ा आतंकी हमला: अब ये कर रहा पाकिस्तान, यहां दे रहा आतंकियों को ट्रेनिंग

क्रांतिकारियों ने सब कुछ न्यौछावर कर दिया

इतिहास गवाह है कि भारत की आज़ादी में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ वीर पुरुषों के साथ अनेक महिला क्रांतिकारियों ने भी कंधे से कंधा मिलाकर अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया।

किन्तु आजादी के बाद जिम्मेदारों ने घरों की दहलीज से निकल कर कम्पनी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ लड़ाई लड़ने वाली इन जांबाज वीरांगनाओं की उपेक्षा की और उन्हें पूरी तरह भुला दिया।

ऐसे ही अवध की मलिका बेगम हज़रत महल ने 1857 के महासंग्राम में अपना सब कुछ लुटाकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और वीरता और कुशल नेतृत्व से अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिए।

ऐशो आराम की जिन्दगी की अभ्यस्त अवध की यह बेगम अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाने के लिए स्वयं युद्ध के मैदान में उतरी और वतन की मिट्टी के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया। लेकिन अफसोस है कि उनकी मौत के बाद नेपाल के काठमांडू में उनकी मजार पर मेले लगना तो दूर आज श्रद्धा के चंद फूल चढ़ाने वाला भी कोई नहीं है।

ये भी पढ़ें...अभी-अभी बड़ा हादसा: जल उठी इमारत, राजधानी में मच गयी चीख-पुकार

मोहम्मदी खानम से बेगम हज़रत महल

अवध की बेगम कही जाने वाली हज़रत महल ने 1820 में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में गरीब परिवार में जन्म लिया था। उनके पिता जमींदार के यहां गुलाम थे, लिहाजा उनके घर के स्थिति ठीक नहीं थी, जिससे उन्हें जीवन में कई बड़े उतार-चढ़ाव देखने को मिले। बचपन में उनका का नाम मोहम्मदी खानम था।

उनके माता-पिता ने उन्हें बेच दिया तो उन्हें लखनऊ के शाही हरम में बांदी के तौर पर शामिल किया गया। चूंकि वह बहुत ही सुन्दर और हुनरमंद थी, इसलिए उन्होंने जल्द ही शाही हरम में अपनी एक खास पहचान बना ली।

जब नवाब वाजिद अली शाह की नज़र उन पर पड़ी, तो उन्होंने अपने शाही हरम के परी समूह (नवाब की पसंदीदा महिलाओं के समूह को परी समूह कहा जाता था) में शामिल कर दिया। नवाब उन्हें महक परी कहते थे।

बेगम कविताएं लिखती थी और नवाब को कविताओं का शौक था। कुछ समय तक तो वाजिद अली शाह बेगम हजरत महल के प्रेम में आकंठ डूबे रहे। हालांकि जल्द ही राजा का बेगम से जी भर गया।

ये भी पढ़ें...बड़ी खबर: अब शिक्षा मंत्री खुद करेंगे पढ़ाई, 53 साल की उम्र में लिया 11वीं में एडमिशन

लेकिन 1845 में जब उन्हें पता चला कि महक परी गर्भवती हैं तो उन्होंने तुरंत बेगम को पर्दे में रख दिया और उन्हें इफ्तिखार-उन-निसा (सभी महिलाओं का गौरव) सम्मान से नवाजा।

बाद में वाजिद अली शाह ने उन्हें अपनी बेगम बना लिया और जब बेगम ने 20 अगस्त 1845 को अवध के वारिस मिर्जा मोहम्मद रमजान अली को जन्म दिया तो नवाब ने उन्हें बेगम हज़रत महल का नाम दे दिया। वाजिद अली शाह के पिता बादशाह अमजद अली ने मिर्जा मोहम्मद रमजान अली को बिरजिस कद्र नाम दिया था।

ये भी पढ़ें...सत्ता के आगे कानून के रखवाले नतमस्तक, जानिये इस जनपद की कहानी

प्रतिनिधि बनकर संभाला राजकाज

नवाब वाजिद अली शाह ने जब 1856 में ब्रिटिश हुकूमत की अधीनता से इंकार किया तो वायसराय डलहौजी ने 07 फरवरी 1856 को अंग्रेजों ने राजा को लखनऊ छोड़ने को कहा। साजिस के 13 मार्च 1856 को नवाब वाजिद अली शाह को कलकत्ता के मटियाबुर्ज भेजा गया और उन्हें बंदी बना लिया गया।

इसके बाद भी लखनऊ में राजा की 09 पत्नियां रह गयीं, जिनमें हजरत महल भी शामिल थीं। उनके साथ उनका अल्पायु पुत्र बिरजिस कद्र भी था। नवाब को बंदी बनाने के बाद अंग्रेजों ने अवध की राजधानी पर कब्जा जमा लिया। लेकिन बेगम हजरत महल ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण करने से इंकार कर दिया और उन्होंने संघर्ष का बिगुल बजाते हुए अवध राज्य के कार्यभार को सभांलने का फैसला किया।

ये भी पढ़ें...राजस्थानः विधानसभा सत्र के लिए व्हिप जारी करेगी BJP, उल्लंघन पर होगा एक्शन

1857 में अंग्रेज़ों का सबसे लंबे समय तक मुक़ाबला बेग़म हज़रत महल ने सरफ़ुद्दौलाह, महाराज बालकृष्ण, राजा जयलाल और मम्मू ख़ान जैसे अपने विश्वासपात्र क्रान्तिकारियों के साथ मिलकर किया।

इस लड़ाई में उनके सहयोगी बैसवारा के राणा बेनी माधव, महोना के राजा दृग बिजय सिंह, फ़ैज़ाबाद के मौलवी अहमदुल्लाह शाह, राजा मानसिंह और राजा जयलाल सिंह थे।

हज़रत महल ने चिनहट की लड़ाई में विद्रोही सेना की शानदार जीत के बाद 05 जून 1857 को 21 तोपों की सलामी के साथ अपने 11 वर्षीय बेटे बिरजिस क़द्र की ताजपोशी उसके पिता द्वारा बनाए महल कैसरबाग के बरदारी में की।

ये भी पढ़ें...जम्मू कश्मीर IAS शाह फैजल ने राजनीति से लिया संन्यास

अंग्रेज़ों को लखनऊ रेजीडेंसी में शरण लेने के लिए विवश होना पड़ा। बिरजिस क़द्र के प्रतिनिधि के तौर पर हज़रत महल का फ़रमान पूरे अवध में चलता था।

महिला सैनिक, गणिकाओं ने दिया साथ

बेगम हज़रत महल और रानी लक्ष्मीबाई के सैनिक दल में तमाम महिलायें शामिल थीं। लखनऊ में बेगम हज़रत महल की महिला सैनिक दल का नेतृत्व रहीमी के हाथों में था, जिसने फ़ौजी भेष अपनाकर तमाम महिलाओं को तोप और बन्दूक चलाना सिखाया। रहीमी की अगुवाई में इन महिलाओं ने अंग्रेज़ों से जमकर लोहा लिया।

ये भी पढ़ें...हीरे-सोने का मास्क: फरारी से भी महंगा है ये, कीमत जानकर हो जाएंगे हैरान

लखनऊ की मशहूर गणिका(तवायफ) हैदरीबाई के यहां तमाम अंग्रेज़ अफ़सर आते थे और कई बार क्रांतिकारियों के खिलाफ़ योजनाओं पर बात किया करते थे। हैदरीबाई ने पेशे से हटकर अपनी देशभक्ति का परिचय देते हुये इन महत्त्वपूर्ण सूचनाओं को क्रांतिकारियों तक पहुंचाती थीं।

बाद में वह भी रहीमी के सैनिक दल में शामिल हो गयी। बेगम हज़रत महल और उनकी महिला सैनिकों से प्रभावित होकर 20वीं शताब्दी के उतरार्द्ध में हुए स्वतंत्रता आंदोलन में अनेक महिलाएं आगे आईं और आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया।

महासंग्राम में दिखाया रण कौशल

बेटे की ताजपोशी के बाद हज़रत महल ने 1857 की क्रांति में अपनी साहस और बहादुरी का परिचय देते हुए सबसे पहले सेना का गठन किया, फिर अपने सहयोगियों की मदद से ब्रिटिश सेना से युद्ध किया और लखनऊ को अपने अधीन कर लिया।

ये भी पढ़ें...यूपी में भीषण हादसा: कंपनी की इमारत में लगी भयंकर आग, मचा हड़कंप

उन्होंने अवध राज्य के अन्य राजाओं और नागरिकों को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया। बेगम हज़रत महल हिन्दू मुस्लिम में भेदभाव नहीं करती थीं। उन्होंने सभी धर्मों के सैनिकों को समान अधिकार दिया था।

कहा जाता है कि बेगम हज़रत महल के करिश्माई नेतृत्व के कारण अवध के राजा, किसान और सैनिक सभी उनके नेतृत्व में अंग्रेजों से लड़ने के लिए तैयार हो गए। बेगम अपनी सेनाओं का मनोबल बढ़ाने के लिए मैदान में भी अपने सिपाहियों का नेतृत्व करतीं और अपनी तलवार से अंग्रेजों से दो-दो हाथ करती थीं।

हाथी पर सवार होकर दुश्मन से लड़ने के लिए गईं

आलमबाग की लड़ाई में तो वह हाथी पर सवार होकर दुश्मन से लड़ने के लिए गईं थीं। उनकी सेना में रानी लक्ष्मीबाई की तरह महिला सैनिक दल भी शामिल था। महिला सैनिक दल का नेतृत्व रहीमी नामक महिला ने किया था।

ये भी पढ़ें...1000 करोड़ का ड्रग्स! अफगानिस्तान से लाई गई नशे की खेप, पुलिस ने धर दबोचा

लखनऊ की तवायफ हैदरी बाई ब़ेग़म हज़रत महल की देशभक्ति से इस कदर प्रभावित थीं कि उन्होंने पहले उनके लिए खुफिया ढंग से सूचनाएं इकट्ठा कीं और बाद में सेना में शामिल होकर अंग्रेज़ों से लड़ाई में मददगार बनीं।

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में संघर्षरत क्रांतिकारियों के साथ जो राजा उनकी मदद कर रहे थे उनमें नाना साहब, बैसवारा के राना बेनी माधो सिंह, गोंडा राजा देवी बक्श सिंह, महोना के रजा द्रिग्बिजय सिंह, फैजाबाद के मौलवी अहमद उल्लाह शाह, महोना के राजा मान सिंह थे।

हजरत महल की सेना में शामिल

जून 1857 में ब्रिटिश सेना में कार्यरत और अवध के निवासी सैनिकों ने जब सुना कि अंग्रेजों ने उनके राजा से अवध की सत्ता छीन ली हैं, इस पर पहले तो उन्हे विशवास नहीं हुआ लेकिन फिर वो सभी प्रतिशोध के लिए मैदान में कूद गए। वे हजरत महल की सेना में शामिल हो गए।

ये भी पढ़ें...चीन ने किया हमला: अमेरिका से इस तरह ले रहा बदला, बन रहे जंग के हालात

उत्तरी भारत के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले सैनिकों ने लखनऊ के ब्रिटिश रेजीडेंसी को घेर कर लिया जहां अंग्रेज और एंग्लो इंडियन लोग क्रांतिकारियों से छुपकर रह रहे थे। सैनिकों ने सैकड़ों गोलियां चलाई और रेजीडेंसी को अपने कब्जे में लेने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब रहे।

Wajid ali shah

इस तरह वाजिद अली शाह के लखनऊ छोड़ने से लेकर जब तक 1857 का पहला स्वतंत्रता संग्राम चला तब तक बेगम हजरत महल ने ही लखनऊ की रक्षा की।

लखनऊ शांत होने लगा

बेगम के 10 महीने के शासन में लखनऊ शांत होने लगा था, किसान और जमींदार जो अंग्रेजों को टैक्स नहीं दे रहे थे वे भी हजरत महल को ख़ुशी-ख़ुशी टैक्स भरते थे। लेकिन 1858 में अंग्रेजों ने लखनऊ को वापस जीत लिया और हजरत महल के पास दूसरे राज्य में शरण लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था।

ये भी पढ़ें...राजस्थानः विधानसभा सत्र के लिए व्हिप जारी करेगी BJP, उल्लंघन पर होगा एक्शन

लखनऊ छोड़ने के बाद आखिरी पड़ाव बहराइच का बौड़ी किला रहा जहां से उन्होंने अपने समर्थकों के साथ मिलकर अंग्रेजीं हुकूमत के खिलाफ अपने विद्रोह को जारी रखा। अवध के जंगलों को उन्होंने अपना ठिकाना बनाया और गुरिल्ला युद्ध नीति से अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया।

अंग्रेज अफसर हुआ कायल

अवध की आन, बान और शान बेग़म हज़रत महल एक महान क्रांतिकारी के साथ-साथ एक रणनीतिकार और कुशल शासक भी थीं। किन्तु बेग़म हज़रत महल का जीवन कठिन संघर्षों में गुजरा। उनके नेतृत्व में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की सबसे लंबी और सबसे प्रचंड लड़ाई लखनऊ में लड़ी गई।

बेगम हजरत महल के दृढ़ संकल्प, साहस और बहादुरी से प्रभावित होकर तत्कालीन अंग्रेज सेनापति विलियम होवर्ड रसेल ने अपने संस्मरण ‘माय इंडियन म्यूटिनी डायरी’ में लिखा था कि ‘ये बेग़म ज़बरदस्त ऊर्जा और क्षमता का प्रदर्शन करती हैं।

ये भी पढ़ें...Y – Factor Yogesh Mishra | Ram Mandir। Nehru के कहने पर K.K.Kar Nair को Ayodhya से हटाया… | EP- 95

उन्होंने पूरे अवध को अपने बेटे के हक़ की लड़ाई में शामिल होने के लिए तैयार कर लिया है। सरदारों ने उनके प्रति वफ़ादार रहने की प्रतिज्ञा ली है। बेग़म ने हमारे खिलाफ़ आखिरी दम तक युद्ध लड़ने की घोषणा कर दी है।’

छोड़ना पड़ा अवध का राज

अवध की सेनाओं का कुशल नेतृत्व करते हुए बेगम अंग्रेजों के खिलाफ लड़ती रहीं। उनकी सेना ने चिनहट और दिलकुशा में हुई लड़ाई में अंग्रेजों को लोहे के चना चबवाने पर मजबूर कर दिया था। लखनऊ के विद्रोह ने तो अवध के कई क्षेत्रों जैसे, सीतापुर, गोंडा, बहराइच, फैजाबाद, सुल्तानपुर, सलोन आदि क्षेत्र को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया था।

Mahasangram of 1857

ये भी पढ़ें...BJP नेता की मौत: आतंकी हमले में हुए थे घायल, घाटी में मचा घमासान

1857 के इस महासंग्राम में उन्होंने राजा जयलाल, राजा मानसिंह आदि के साथ मिलकर अंग्रेजों को लखनऊ रेजीडेंसी में सिर छुपाने के लिए मजबूर कर दिया था। उनकी सेना ने अंग्रेजों के खिलाफ सबसे लम्बी लड़ाई लड़ी थी।

अंग्रेजों ने किले को उड़ा दिया

हालांकि, जल्द ही अंग्रेजों ने अपने बेहतर युद्ध हथियार की बदौलत लखनऊ पर कब्ज़ा कर लिया, जिसके कारण बेगम हज़रत महल को लखनऊ छोड़ना पड़ा।

दिलचस्प बात तो यह थी कि अपना सिंहासन छोड़ने के बाद भी हज़रत महल के सीने में क्रांति की आग ठंडी नहीं हुई थी। बेगम हजरत महल का भारतीय सीमा में स्थित बौंडी में लड़ा गया युद्ध ऐतिहासिक माना जाता है।

आखिर में अंग्रेजों ने इस किले को उड़ा दिया। अंततः जुलाई 1858 में नेपाल के तराई से भागकर बेगम हजरत महल नेपाल जा पहुंचीं।

ये भी पढ़ें...हवस का पुजारी जेठ: महिला का कर दिया ऐसा हाल, सामने आई वजह

ठुकराया अंग्रेजों का प्रस्ताव

महारानी विक्टोरिया ने 01 नवम्बर 1858 को घोषणा करके अवध का शासन अपने हाथ में ले लिया। घोषणा में कहा गया कि रानी सब को उचित सम्मान देंगी। उन्होंने बेगम हजरत महल को एक लाख रुपए पेंशन और लखनऊ का राजमहल देने की पेशकश की।

अंग्रेज़ों ने समझौते के तहत यह पेशकश भी रखी कि वे ब्रिटिश अधीनता में उनके पति का राजपाट लौटा देंगे। लेकिन बेग़म इसके लिए राजी नहीं हुईं। वे एकछत्र अधिकार से कम कुछ भी नहीं चाहती थीं। उन्हें या तो सबकुछ चाहिए था या कुछ भी नहीं।

लेकिन हजरत महल ने अंग्रेजों से मिलने वाली पेंशन लेने से इनकार कर दिया और उन्होंने नवम्बर 1859 तक अंग्रेजों के साथ तात्या टोपे की तरह गोरिल्ला युद्ध ज़ारी रखा।

ये भी पढ़ें...14 साल पहले खोया पर्स मिला अब, शख्स ने खोलकर देखा तो रह गया दंग

इस तरह बेगम हजरत महल ने 1857 क्रान्ति के समाप्त होने बाद भी लगातार अपना राज्य वापस हासिल करने की कोशिश करती रहीं, लेकिन वे अवध को वापस हासिल नहीं कर सकी और वे नेपाल में महाराज जंग बहादुर की शरण में चली र्गइं।

नेपाल बना अंतिम ठिकाना

महासंग्राम में करारी हार के बाद अंग्रेजों का लखनऊ पर कब्ज़े के साथ ही पूरे अवध पर हो गया, जिसके चलते बेगम हज़रत महल अपने बेटे बिरजिस कद्र और गोंडा के राजा देवी बख्श सिंह व अन्य सहयोगियों के साथ नेपाल के दांव देवखुर स्थित दुर्गम स्थान पर चली गईं। वहां उनके स्वाभिमान से प्रेरित होकर नेपाल के राजा राणा जंग बहादुर ने उन्हें रहने की जगह दी थी।

कहते हैं कि उनके साथ नेपाल गए हजारों शरणार्थियों की संपत्ति के सहारे बेगम ने अपना बचा हुआ जीवन यापन किया। बताते हैं कि नेपाल में बिताए उनकी ज़िंदगी के आखिरी लम्हे कुछ ज्यादा ही दुखदायी रहे और जीवन बहुत अभावों और दुखों से भरा रहा।

ये भी पढ़ें...नई Honda Jazz को खरीदने का सुनहरा मौका, ऐसे करें बुकिंग, मिल रहा ये ऑफर

कहा जाता है कि बाद में अंग्रेजों ने उन्हें लखनऊ आने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन बेगम ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। 59 वर्ष की उम्र में 07 अप्रैल 1879 को उन्होंने अपनी अंतिम सांस लीं।

उन्हें काठमांडू के जामा मस्जिद की एक बेनाम कब्र में दफनाया गया। घोर उपेक्षा से बदहाल उनकी यह क़ब्र आज भी उनके त्याग व बलिदान की याद दिलाती है।

उपेक्षित है काठमाण्डू की मजार

नेपाल की राजधानी काठमाण्डू के दरबार मार्ग स्थित बाग बाज़ार का यह इलाका शहर के बिल्कुल मध्य में है। यहीं नेपाल की सुप्रसिद्ध जामा मस्जिद भी है। इसी परिसर के एक कोने में बेग़म हज़रत महल की छोटी सी मजार है।

भारत नेपाल सीमा क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश आर्य बताते हैं कि बिना जानकारी के 1857 की महान क्रांति की इस नायिका की मजार तक आसानी से नहीं पहुंचा जा सकता।

ये भी पढ़ें...न्यूजट्रैक की खबर का असर: लेखपाल हुए निलंबित, अपर आयुक्त ने आदेश लिया वापस

आज़ादी की पहली लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान

शुरुआत से ही उपेक्षित इस मजार के निगरानी का जिम्मा जामा मस्जिद की सेंट्रल समिति को सौंपा गया। 07 अप्रैल को 2016 को बेग़म हज़रत महल की 137 वीं पुण्यतिथि पर नेपाल में भारत के तत्कालीन राजदूत रंजीत राय ने नेपाली राष्ट्रीय मुस्लिम संघर्ष समिति एवं नेपाल-भारत मिल्लत परिषद के अध्यक्ष रहे शमामी अंसारी के साथ उनकी मज़ार पर श्रद्धा के फूल चढ़ाए और मजार स्थल के विकास का प्रयास भी किया था।

आजादी के 15 साल बाद 15 अगस्त 1962 को लखनऊ के हज़रत गंज में आज़ादी की पहली लड़ाई में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें सम्मानित किया गया और उन्हीं के नाम पर पुराने विक्टोरिया पार्क का नाम बदलकर बेगम हजरत महल पार्क रखा गया। 1984 में उनके नाम का डाक टिकट भी जारी किया गया। लेकिन काठमांडू स्थित उनके मजार की बदहाली की ओर आज तक किसी का ध्यान नही गया।

ये भी पढ़ें...कांप उठा चीन: राफेल ने पूरी कर ली जंग की तैयारी, एक्शन में देश की सेना

रिपोर्ट- तेज प्रताप सिंह

देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

Newstrack

Newstrack

Next Story