बिहार में बाहुबली पत्नी: नितीश को टक्कर देने आई लवली, आइये इनके बारे में जाने
भाजपा के अगड़ी जातियों के जनाधार में सेंध लगाने की कोशिश कांग्रेस की ओर से लगातार जारी है। प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस ही अकेली पार्टी है जो जातियों की गोलबंदी में फंसने के बजाय अब भी सभी जातियों का समर्थन करती है।
पटना। बिहार के बाहुबली आनंद मोहन सिंह की पत्नी लवली आनंद ने अपने बेटे के साथ सोमवार को राष्ट्रीय जनता दल का दामन थाम लिया। उनके सदस्यता कार्ड पर खुद तेजस्वी यादव ने हस्ताक्षर किए हैं तो उन्होंने भी तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान कर दिया है। इसे तेजस्वी की बिहार में अगड़ी जातियों के समीकरण को साधने की कवायद का हिस्सा माना जा रहा है।
जातियों की गोलबंदी में बंट चुकी बिहार की राजनीति
जातियों की गोलबंदी में बंट चुकी बिहार की राजनीति में राजद के पराभव की बडी वजह बिहार की अगड़ी जातियों की उससे दूरी और अति पिछड़ा व महादलित वर्ग की नीतीश कुमार के साथ नजदीकी को माना जाता है। राजद की सरकारों में बिगडी कानून-व्यवस्था का सबसे बडा खामियाजा अगड़ी जातियों को ही उठाना पड़ा है। यही वजह है कि कई दशक बीतने के बावजूद इन जातियों का समर्थन राजद को नहीं मिल सका है।
अगडी जातियों का समर्थन खुलकर भाजपा के साथ
ऐसे में बिहार पीपुल्स पार्टी का गठन करने वाले आनंद मोहन सिंह की पत्नी और पूर्व सांसद व विधायक लवली आनंद का राजद के साथ जाना राजनीति के महारथियों को भी चौंकाने वाला है। बिहार के जदयू-भाजपा गठबंधन में भाजपा को अगडी जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है। जब से प्रदेश में लालू यादव की राजनीतिक ताकत कमजोर हुई है तब से अगड़ी जातियों का समर्थन खुलकर भाजपा के साथ रहा है। इसी वजह से भाजपा आज भी शहरी बाबुओं की पार्टी बनी हुई है।
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दूसरी ओर भाजपा के अगड़ी जातियों के जनाधार में सेंध लगाने की कोशिश कांग्रेस की ओर से लगातार जारी है। प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस ही अकेली पार्टी है जो जातियों की गोलबंदी में फंसने के बजाय अब भी सभी जातियों का समर्थन करती है। शायद यही वजह है कि कांग्रेस में दो बार राजनीतिक पारी की शुरुआत करने के बावजूद लवली आनंद ने राजद के लिए कांग्रेस से नाता तोडने में देर नहीं लगाई, क्योंकि इस तरह की राजनीति में रहकर अपने समाज का संपूर्ण समर्थन जुटाना मुश्किल है।
लवली आनंद ने सीएम नीतीश से किया था ये अनुरोध
लवली आनंद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बार- बार अनुरोध किया कि जेल में बंद उनके पति आनंद मोहन सिंह को बाहर निकलने में मदद करें। उन्होंने कई बार सार्वजनिक तौर पर भी कहा कि उन्हें उम्मीद है कि नीतीश सरकार में उन्हें इंसाफ मिलेगा। इसके बावजूद जब बात नहीं बनी तो उन्होंने राजद का दामन थाम लिया है जिसके बारे में माना जा रहा है कि नीतीश कुमार का विकल्प राजद- कांग्रेस का महागठबंधन ही दे सकता है। राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई है। सदस्यता लेने के मौके पर लवली आनंद ने राजद नेतृत्व को बधाई दी और कहा कि अब वह तन, मन और धन से राजद में हैं। नीतीश सरकार ने हमें धोखा दिया है। आनंद मोहन सिंह को जेल भेजने वालों को जनता सबक सिखाएगी।
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लवली आनंद को कांग्रेस से राजद में लाना क्यों था जरूरी
कांग्रेस और राजद ने बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर गठबंधन का ऐलान कर रखा है। कांग्रेस ने तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने की बात भी कही है ऐसे में बडा सवाल है कि लवली आनंद को कांग्रेस छोडकर राजद में जाने की जरूरत क्या थी। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि लवली आनंद को राजद में शामिल कराने की वजह केवल अगडी जातियों को राजद के करीब लाना ही है। इससे अगडी जातियों में सीधा संदेश जा सकेगा कि तेजस्वी के नेतृत्व में राजद बदल चुका है। अब यहां भी अगड़ी जातियों को सम्मान है।
राजनीतिक जीवन बिहार पीपुल्स पार्टी के साथ शुरू किया
अगडी जातियों के राजद के साथ आने से नीतीश कुमार और भाजपा की स्थिति कमजोर होगी और इसका सीधा फायदा राजद को चुनाव में मिलेगा। वरिष्ठ पत्रकार सचिन शर्मा का कहना है कि लवली आनंद के आने से राजद को कितना फायदा मिलेगा यह तो चुनाव परिणाम ही तय करेंगे लेकिन इतना जरूर है कि इससे राजद को अपनी अगड़ी जातियों का विरोधी होने की छवि को खत्म करने में मदद मिलेगी। लवली आनंद ने अपना राजनीतिक जीवन बिहार पीपुल्स पार्टी के साथ शुरू किया और बारी - बारी लगभग सभी राजनीतिक दलों में रह चुकी हैं ऐसे में उनका समर्थक वर्ग अगर पूरी तरह उनके साथ नहीं आया तो पूरी कार्ययोजना ही ध्वस्त हो सकती है।
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लवली आनंद का राजनीतिक जीवन
आनंद मोहन सिंह के जेल जाने पर बिहार पीपुल्स पार्टी की सदस्यता ली। 1994 में वैशाली लोकसभा सीट पर उपचुनाव में उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा की पत्नी किशोरी सिन्हा को हराया था। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस में रहीं लेकिन टिकट नहीं मिला तो समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में कूद पडीं। 2015 में वजह जीतनराम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा, सेकुलर में शामिल हुईं और 2019 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली।
रिपोर्ट- अखिलेश तिवारी, लखनऊ