Glacier Pighalne Se Tabahi : तेजी से पिघल रहे हैं ग्लेशियर, पहाड़ी झीलें फटने से आयेगी तबाही

Glacier Pighalne Se Tabahi : दुनिया की सबसे ऊँची पर्वत शृंखला माउंट एवरेस्ट बीते 5 दशकों से लगातार गर्म हो रही है। इससे इसके आस-पास के हिमखण्ड काफी तेजी से पिघल रहे हैं।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Vidushi Mishra
Update: 2021-10-04 13:53 GMT

हिमनद (फोटो- सोशल मीडिया)

Glacier Pighalne Se Tabahi : एक स्टडी में बताया गया है कि साल 2000 के बाद से हर साल 267 अरब टन ग्लेशियर गायब हुए हैं। वैश्विक समुद्र स्तर में होने वाली बढ़त का 21 फीसदी हिस्सा इसी कारण रहा है। फ्रांस के शोधकर्ताओं ने दो लाख ग्लेशियर्स के विश्लेषण में पाया है कि ये इन दो दशकों में कैसे बदले हैं और इसमें चिंताजनक नतीजे दिखे हैं। आशंका जताई गई है कि ग्लेशियर हर साल 48 अरब टन की दर से गायब होते जा रहे हैं।

ग्लेशियरों (Glacier Ka Pighalna) के पिघलने से ऊंचाइयों पर नई झीलें बन जाती है जो अगर ओवरफ्लो कर गईं या फट गईं तो उससे पैदा हुई बाढ़ से काफी तबाही मच सकती है। उत्तराखंड में इसके भयानक परिणाम देखे जा चुके हैं।

ग्लेशियरों का इतना हिस्सा पिघला  

एक रिसर्च में पता चला है कि जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में पिछले 20 साल में ग्लेशियरों का चार फीसदी हिस्सा पिघल गया है। इस वजह से छह नई झीलें बन गई हैं, जिनके फटने से कभी भी बाढ़ आ सकती है।

एक शोध के अनुसार 2000 से 2019 के दौरान दुनिया भर में ग्लेशियरों में जमा बर्फ औसतन 26,700 करोड़ टन प्रति वर्ष की दर से पिघल रही है। इससे पहले 2000 से 2004 के बीच यह 22,700 करोड़ टन प्रति वर्ष की दर से पिघल रही थी।

अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में छपे शोध के मुताबिक बर्फ के पिघलने की यह दर 2015 से 2019 के बीच रिकॉर्ड 29,800 करोड़ टन प्रतिवर्ष पर पहुंच गई थी। जिसका मतलब है कि पिछले 20 वर्षों में बर्फ के खोने की दर में 31.3 फीसदी का इजाफा हुआ है।

ग्लोबल वार्मिंग एक गम्भीर चुनौती

ग्लेशियर (फोटो- सोशल मीडिया)

दुनिया अब ग्लोबल वार्मिंग की गम्भीरता को समझ चुकी है कि यदि अब इस मामले में देर कर दी तो आने वाले दिनों में मानव जीवन का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। समूची दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं।

दुनिया की सबसे ऊँची पर्वत शृंखला माउंट एवरेस्ट बीते 5 दशकों से लगातार गर्म हो रही है। इससे इसके आस-पास के हिमखण्ड काफी तेजी से पिघल रहे हैं।

चाइनीज एकेडेमी ऑफ साइंसेज और हुनान यूनीवर्सिटी ऑफ साइंस के एक शोध ने खुलासा किया है कि 8,844 मीटर ऊँची इस चोटी में हिमखण्ड काफी तेजी से पिघल रहे हैं। हिमालय के कुल 9600 के करीब ग्लेशियरों में से तकरीब 75 फीसदी ग्लेशियर पिघल रहे हैं। यदि यही सिलसिला जारी रहा तो बर्फ से ढँकी यह पर्वत शृंखला आने वाले कुछ सालों में बर्फ विहीन हो जाएगी।

इसरो ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है कि हमेशा बर्फ से ढँका रहने वाला हिमालय अब बर्फ विहीन होता जा रहा है। सेटेलाइट चित्रों के आधार पर इसकी पुष्टि हो चुकी है कि बीते 15-20 सालों में 3.75 किलोमीटर की बर्फ पिघल चुकी है। इसका सबसे बड़ा कारण समूचे हिमालयी क्षेत्र में तापमान में तेजी से हो रहा बदलाव है।

इसका नतीजा है कि ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार में बढ़ोतरी है जिससे वह सिकुड़ रहे हैं। हिमालय के बहुत से ग्लेशियर हर साल दस से बारह मीटर तक पीछे खिसक रहे हैं। 75 फीसदी ग्लेशियर पिघलकर झरने और झीलों का रूप अख्तियार कर चुके हैं। सिर्फ आठ फीसदी ही ग्लेशियर स्थिर हैं।

ग्लेशियर (फोटो- सोशल मीडिया)

जम्मू-कश्मीर का हाल

जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में पिछले 20 साल में ग्लेशियरों का चार फीसदी हिस्सा पिघल गया है। इस वजह से छह नई झीलें बन गई हैं जिनके फटने से कभी भी बाढ़ आ सकती है। जिसका असर चिनाब घाटी में नदी से सटे आबादी वाले इलाकों और पनबिजली परियोजनाओं पर पड़ सकता है।

केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू में पर्यावरण विज्ञान विभाग के शोधकर्ता ने रिमोट सेंसिंग से गहन अध्ययन के बाद यह खुलासा किया है। शोधकर्ता के अनुसार ग्लेशियर पिघलने का मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग है।

वाड़वान के बुट बेसिन के ब्रह्मा और अर्जुन ग्लेशियर में चार झीलें और पाडर मचेल से 12 किलोमीटर दूर बुट बेसिन के बुजवास ग्लेशियर में दो झीलें बन चुकी हैं। चिनाब वेली के ग्लेशियरों पर पिछले तीन वर्षों से शोध जारी है।

शोध के मुताबिक ग्रीन हाउस गैसें तेजी से बढ़ रही हैं, जिसका असर पर्यावरण पर पड़ रहा है। किश्तवाड़ के ग्लेशियरों के पिघलने से बनीं झीलों के अचानक फटने या ओवरफ्लो होने से निचले क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। स्थिति को और बिगड़ने से रोकने के लिए ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण करने के ठोस उपाय करने होंगे।

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