खतरे में हिमालय: हवाएं उगल रहीं जहर, बर्फीली चादरों पर कालिख पोत रहे ये देश

हिमालय पर कम बर्फबारी और बर्फ की चादरों का तेजी से पिघलने का दौर जारी है। अभी तक इसके लिए स्थानीय लोगों की जिम्मेदार माना जाता है लेकिन हिमालय की ये हालत यूरोपीय देशों की वजह से हो रही है।

Update: 2020-07-27 04:49 GMT

नई दिल्ली: कोरोना वायरस भारत में तबाही मचा रहा है, तो वहीं तेज बारिश और बाढ़ से भी देश के कई राज्य बुरी तरह प्रभावित हैं। ऐसे में अब हिमालय भी सुरक्षित नहीं है। हिमालय पर कम बर्फबारी और बर्फ की चादरों का तेजी से पिघलने का दौर जारी है। अभी तक इसके लिए स्थानीय लोगों की जिम्मेदार माना जाता है लेकिन हिमालय की ये हालत यूरोपीय देशों की वजह से हो रही है। दावा किया गया है कि यूरोपीय देशों से आने वाली जहरीली हवाएं हिमालय की सेहत बिगाड़ रहीं हैं।

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों का दावा

दरअसल, उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित एक प्रमुख संस्थान हिमालय को बचाने के लिए काम करता है। इसी वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने हिमालय के बिगड़ते हालातों पर शोध किया। इस शोध के जरिये दावा किया गया कि यूरोपीय देशों का वायु प्रदूषण और जहरीली गैसें हिमालय में आफत बन कर बरसी है। हिमालय की बर्फ से ढकी सफेद चादरे जहरीली हवाओं से काली हो रही हैं।

हिमालय में घिसका बर्फबारी का समय, पिघल रहीं बर्फ की चादरें

रिसर्च के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग के चलते हिमालय में सितंबर से दिसंबर तक होने वाली बर्फबारी अब खिसक कर जनवरी से मार्च हो गई है। ऐसे में मार्च तक पड़ी बर्फ अप्रैल- मई के महीनों में गर्मी आते ही जल्दी पिघल जाती हैं। बता दें कि सितंबर से ही बर्फबारी होने से गिरी बर्फ मार्च तक ठोस हो जाती थी। फरवरी तक बर्फ की परत मोटी हो जाती थी।

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वहीं गर्मी आने पर बर्फ पिघलने में समय लगता था। मोटी परत धीरे धीरे पिघलती है। हालंकि बर्फबारी का समय घिसने की वजह से एक महीने में बर्फ की परत नहीं बन पाती और अगले ही महीने यानी अप्रैल में गर्मी आने से बर्फ जल्दी पिघल जाती है।

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कई वनस्पतियां और सेब की प्रजातियां तकरीबन खत्म

वैज्ञानिकों ने इस शोध के जरिये दावा किया कि उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में विंटर लाइन यानी बर्फ की रेखा करीब 50 मीटर पीछे खिसक गई है। ऐसे में हिमालय की कई वनस्पतियां और सेब की प्रजातियां भी तकरीबन खत्म होने की कगार पर आ गयी हैं।

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यूरोपीय देशों से आने वाली जहरीली हवाओं से बिगड़ी हिमालय की सेहत

बताया जा रहा है कि हिमालय पर दो तरह का प्रदूषण हो रहा है। पहला बायोमास प्रदूषण यानी कार्बन डाईऑक्साइड से हो रहा है और दूसरा तत्व आधारित प्रदूषण है। ये दोनों ही ब्लैक कार्बन बनाते हैं, जिसकी वजह से 15 हजार ग्लेशियर पिघल रहे हैं। विंटर लाइन यानी बर्फ की रेखा पीछ खिसकने का कारण यही प्रदूषण है।

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यूरोपीय देशों का वायु प्रदूषण और जहरीली गैसें हिमालय पर पहुँच ग्लेशियरों पर ब्लैक कार्बन की मात्रा बढ़ा रही हैं। हिमालय की सेहत बिगड़ने को लेकर भारत के वैज्ञानिक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूरोपीय देशों से आने वाले प्रदूषण का विरोध करेंगे।

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