शहीद ए भगत! भारत मां का वो लाल, जिसका नाम ही युवाओं के लिए जोश
फांसी से पहले भगत सिंह ने अपनी मां से कहा था कि ‘मैं देश के लिए एक ऐसा दीया जलाकर जा रहा हूं जिसमें न तो तेल है और न ही घी। इसके साथ ही उन्होंने लिखा कि उसमें मेरा रक्त और विचार मिले हुए हैं। अंग्रेज मुझे मार सकते हैं पर मेरी सोच और विचारों को नहीं। जब भी अन्याय
नई दिल्ली: 28 सितंबर 1907 का वो दिन, भारत माता ने एक बच्चे को जन्म लिया, जिसका नाम, अभी भी युवाओं में एक नया जोश भरता है। हम बात कर रहे हैं शहीद भगत सिंह की।
बता दें कि 28 सितंबर 1907 के दिन पाकिस्तान के लायलपुर जिले के गांव बंगा में सरदार भगत सिंह का जन्म हुआ था।
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उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए 23 साल उम्र में जिंदगी देश के लिए न्योछावर कर दी थी। सरदार भगत सिंह का परिचय के लिए उनका नाम ही काफीा इतिहास गवाह रहा है कि किस तरह उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए 23 साल उम्र में अपना जीवन न्योछावर कर दिया था। आइये आपको बताते हैं, उनके जन्मदिवस के मौके पर उनसे खास बातें...
भगत सिंह ने एक पत्र में लिखकर यह बात साझा की थी, कि भगत सिंह अपनी जिंदगी में सैनिकों जैसी शहादत चाहते थे। वह फांसी के बजाए सीने पर गोली खाकर वीरगति को प्राप्त होना चाहते थे। उन्होंने ये बात पत्र में लिखकर बताई थी।
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पत्र में उन्होंने इस बात का जीक्र किया था कि, 20 मार्च 1931 को भगत ने पंजाब के तत्कालीन गवर्नर से मांग करते हुए कहा मुझे युद्धबंदी माना जाए और फांसी पर लटकाने की बजाए गोली से उड़ा दिया जाए। लेकिन ब्रिटिश हुकूमत ने उनकी यह बात मानने से इंकार कर दिया था।
भगत सिंह के वो आखिरी दिन...
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भगत सिंह ने अपने आखिरी दिनों में लिखा था कि ज़िंदगी का मकसद अब मन पर काबू करना नहीं बल्कि इसका समरसता पूर्ण विकास है। मौत के बाद मुक्ति पाना नहीं बल्कि दुनिया में जो है उसका सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना है।
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फांसी से पहले भगत सिंह ने अपनी मां से कहा....
फांसी से पहले भगत सिंह ने अपनी मां से कहा था कि ‘मैं देश के लिए एक ऐसा दीया जलाकर जा रहा हूं जिसमें न तो तेल है और न ही घी।
इसके साथ ही उन्होंने लिखा कि उसमें मेरा रक्त और विचार मिले हुए हैं। अंग्रेज मुझे मार सकते हैं पर मेरी सोच और विचारों को नहीं। जब भी अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ जो भी शख्स तुम्हे लड़ता हुआ नजर आए, वह तुम्हारा भगत सिंह होगा।
जितने भारत के उतने ही पाकिस्तान के...
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भगत सिंह को लेकर दोनों देशों की अवाम को यह एहसास है कि जितने वे भारत के हैं उतने ही पाकिस्तान के भी। दोनों देशों की अवाम को जोड़ने के लिए भगत सिंह एक बहाना भी हैं और कड़ी भी।
बताते चलें कि सरदार भगत ने तब अंग्रेजों से लोहा लिया और देश के लिए फांसी पर चढ़ गए जब देश का बंटवारा नहीं हुआ था। इसलिए दोनों देशों में तनाव के बाद भी वह कई जगह भारत-पाकिस्तान की अवाम को जोड़ते नजर आते हैं।
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तीनों ने लगा लिया फांसी को गले...
भगत सिंह के साथ उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव ने भी हंसते- हंसते फांसी के फंदे को आगे बढ़कर चूम लिया था। जिस दिन उन्हें फांसी दी गई थी उस दिन वो मुस्कुरा रहे थे।
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मौत से पहले तीनों देशभक्तों ने गले लगकर आजादी का सपना देखा था, ये वो दिन था जब लाहौर जेल में बंद सभी कैदियों की आंखें नम हो गईं थीं। यहां तक कि जेल के कर्मचारी और अधिकारियों के भी फांसी देने में हाथ कांप रहे थे।
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बताया जाता है कि फांसी से पहले तीनों को नहलाया गया, फिर इन्हें नए कपड़े पहनाकर जल्लाद के सामने लाया गया। मजे की बात ये कि फांसी की सजा के ऐलान के बाद भगत सिंह का वजन बढ़ गया था।