ठक्कर बापाः महान समाज सुधारक, गांधी भी जिन्हें न नहीं कर सके

आज की पीढ़ी के लोग ठक्कर बापा को नहीं जानती कोई बड़ी बात नहीं है। चलिये हम आपको बताते हैं। ठक्कर बापा का जन्म 29 नवंबर, 1869 को भावनगर (सौराष्ट्र) में हुआ था।

Update:2020-11-29 11:28 IST
ठक्कर बापाः महान समाज सुधारक, गांधी भी जिन्हें न नहीं कर सके (Photo by social media)

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: महान समाज सुधारक ठक्कर बापा की आज जयंती है। आप पूछेंगे ठक्कर बापा कौन। वास्तव में ठक्कर बापा ने अपने सारा जीवन जिस दलित शोषित समाज पर न्योछावर किया आज वही जब उन्हें भूल चुके हैं तो बाकी का भूलना कोई बड़ी बात नहीं है। यहां से बात महत्वपूर्ण है कि ठक्कर बापा महात्मा गांधी के न सिर्फ समकालीन थे बल्कि उनके अनन्य अनुयायी भी थे।

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राष्ट्रभाषा हिन्दी के सवाल पर उन्होंने कहा था

राष्ट्रभाषा हिन्दी के सवाल पर उन्होंने कहा था कि इस मसले पर मै गांधी जी का उसी तरह अनुसरण करूंगा जैसे मालिक के पीछे कुत्ता। वह गांधी जी से दो माह छोटे थे और अच्छी भली नौकरी छोड़कर अनुसूचित वर्ग के उत्थान में लगे रहे। बहुत कम लोगों को ये बात पता होगी कि गांधीजी जब पूरे एक साल तक अस्पृश्यता के खिलाफ अभियान चलाया था तो इसका सुझाव ठक्कर बापा का था और इस अभियान की रूप रेखा भी ठक्कर बापा ने भी तैयार की थी।

आज की पीढ़ी के लोग ठक्कर बापा को नहीं जानती कोई बड़ी बात नहीं है। चलिये हम आपको बताते हैं। ठक्कर बापा का जन्म 29 नवंबर, 1869 को भावनगर (सौराष्ट्र) में हुआ था। इन का पूरा नाम अमृतलाल ठक्कर था। वे भारत के स्वतंत्राता संग्राम सेनानी और समाज सेवी थे। इनकी माता का नाम मुलीबाई और पिता का नाम विठलदास ठक्कर था। अमृतलाल ठक्कर के पिताजी एक व्यवसायी थे। महात्मा गांधी ने इन्हें प्यार से 'बापा' कह कर पुकारा था। फिर ये बापा हो गए।

ठक्कर बापा ने 1886 में मेट्रिक में टॉप किया था

ठक्कर बापा ने 1886 में मेट्रिक में टॉप किया था। वर्ष 1890 में पूना से सिविल इंजीनियरिंग पास की। वर्ष 1890 -1900 में अमृतलाल ठक्कर ने काठियावाड़ स्टेट में कई जगह नौकरी की। वर्ष 1900-1903 के दौरान पूर्वी अफ्रीका के युगांडा रेलवे में बतौर इंजीनियर अपनी सेवा दी। वे सांगली स्टेट के चीफ इंजीनियर नियुक्त हुए। इसी समय आप गोपाल कृष्ण गोखले और धोंदो केशव कर्वे के सम्पर्क में आए।

अमृतलाल ठक्कर जब बाम्बे म्युनिसिपल्टी में आए तब कुर्ला में वे दलित बस्तियों में गए। यहाँ डिप्रेस्ड कास्ट मिशन के रामजी शिंदे के सहयोग से उन बस्तियों में सफाईकर्मियों के बच्चों के लिए स्कूल खोला।

Thakkar Bapa (Photo by social media)

1914 में अमृतलाल ठक्कर नौकरी से देकर 'सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसायटी' से जुड़ कर पूरी तरह जन-सेवा में जुट गए। गोपाल कृष्ण गोखले ने उनकी मुलाकात गांधी जी से करवाई। वर्ष 1915 -16 में ठक्कर बापा ने बाम्बे के स्वीपरों के लिए को-ऑपरेटिव सोसायटी स्थापित की। इसी तरह अहमदाबाद में मजदूर बच्चों के लिए स्कूल खोला।

'भील सेवा मंडल' स्थापित किया था

1922 -23 के अकाल में गुजरात में भीलों के बीच रिलीफ का कार्य करते हुए आपने 'भील सेवा मंडल' स्थापित किया था। 1930 में सिविल अवज्ञा आंदोलन दौरान वे गिरफ्तार हुए थे। ठक्कर बापा वर्ष 1934 -1937 तक 'हरिजन सेवक संघ' (अस्पृश्यता निवारण संघ) के महासचिव थे। वर्ष 1944 में ठक्कर बापा ने 'कस्तूरबा गांधी नॅशनल मेमोरियल फण्ड' की स्थापना की। इसी वर्ष इन्होने ' गोंड सेवक संघ' (वनवासी सेवा मंडल) की स्थापना की थी। ठक्कर बापा वर्ष 1945 में 'महादेव देसाई मेमोरियल फण्ड' के महासचिव बने थे। ये संविधान सभा के सदस्य भी थे।

अनुज कुमार सिन्हा ने गांधी जी की झारखंड यात्रा नामक अपनी किताब में लिखा है थक्कर बापा कुछ दिनों के लिए जमशेदपुर में भी थे और हरिजनों के लिए काम करते हुए महात्मा गांधी के सहयोगी थे उनका पूरा नाम अमृतलाल विट्ठलदास थककर था उम्र में गांधीजी से 2 माह छोटे थे गांधीजी उन पर बहुत भरोसा करते थे और उन्हें हरिजन सेवक संघ का महासचिव बनाया था।

1922 में ठक्कर बाबा ने छोटा नागपुर का दौरा किया था

1922 में ठक्कर बाबा ने छोटा नागपुर का दौरा किया था उस समय उनके साथ सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसाइटी पुणे के एस जी वाजे भी थे। वाजे ने थक्कर बापा को श्रद्धांजलि देते हुए उनके छोटानागपुर दौरे का जिक्र किया था। बाबा आदिवासियों के लिए बहुत सोचते थे। उसी समय उन्होंने मुंडा और उरांव जनजाति की अवस्था पर अध्ययन किया था। उन्होंने ईसाई मिशनरी के काम को भी देखा था।

गांधी जी ठक्कर बापा को कितना महत्व देते थे इस बात का प्रमाण सिर्फ एक घटना से मिल गया था गांधी जी ने पूरे देश में हरिजनों के पक्ष में आंदोलन चलाया। इस अभियान का आग्रह थक्कर बापा ने ही गांधी जी से किया था। एक बार बाबा ने गांधीजी को एक पोस्टकार्ड लिखकर गांधी जी से छुआछूत प्रथा के विरोध में पूरे देश का 1 साल तक दौरा करने का आग्रह किया था। बापा को भरोसा नहीं था कि पत्र द्वारा किया गया उनका अनुरोध गांधीजी स्वीकार कर लेंगे।

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पोस्टकार्ड मिलते ही गांधी जी ने जवाब दिया था

पोस्टकार्ड मिलते ही गांधी जी ने जवाब दिया था और बाबा को 1 साल का पूरा कार्यक्रम तय करने के लिए कह दिया। बापा अंतिम दिनों में चाहते थे कि हरिजन सेवक संघ का काम काफी बढ़ गया है। इसलिए उन्हें इस कार्य से मुक्त कर दिया जाए, ताकि वे आदिवासियों के कल्याण के लिए कुछ कर सकें। गांधीजी ने बापा को लिखा था कि हरिजन सेवक संघ का काम मत रोकें और कुछ समय निकालकर आदिवासी कल्याण का भी काम करें। गांधीजी के आदेश को मानते हुए जीवन के अंतिम क्षणों तक उन्होंने काम किया।

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