उत्तराखंड में फिर तबाही! ऋषिगंगा पर बनी झील, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी
यह झील आकार में बढ़ती रही और बाद में टूट गई तो फिर एक बड़ा हादसा हो सकता है। इसलिए पहले ही इसे तोड़कर झील का पानी हटाना होगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि संभवतः हैंगिंग ग्लेशियर टूटने के बाद जो मलबा नीचे आया है, उसी की वजह से ये झील बनी हो।
चमोली: उत्तराखंड (Uttarakhand) के चमोली (Chamoli) में बीते रविवार को हुई तबाही से अभी कोई उभर भी नहीं पाया है कि इस बीच चमोली के ऊपर एक और खतरे को लेकर सतर्क किया गया है। बीते हादसे की वजह ग्लेशियर टूटना और झील से तेज बहाव था, जिससे ऋषिगंगा में सैलाब आया। वहीं, अब ऋषिगंगा के ऊपरी हिस्से (अपस्ट्रीम) पर एक और अस्थाई झील बनती दिखाई पड़ रही है।
झील टूटने से हो सकता बड़ा हादसा
ऐसा कहा जा रहा है कि ऋषिगंगा के ऊपरी हिस्से पर बन रही झील अगर टूटी तो फिर एक और बड़ा हादसा हो सकता है। इस बात की जानकारी देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के साइंटिस्ट्स ने की है। वैज्ञानिकों ने हेलिकॉप्टर से ऋषिगंगा के ऊपरी इलाकों का सर्वे किया है। जिसके बाद वहां एक नई झील बनती देखी गई है। इस झील का आकार 10 से 20 मीटर बताया जा रहा है।
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इसलिए हुआ इस झील का निर्माण
ऐसा कहा जा रहा है कि अगर यह झील आकार में बढ़ती रही और बाद में टूट गई तो फिर एक बड़ा हादसा हो सकता है। इसलिए पहले ही इसे तोड़कर झील का पानी हटाना होगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि संभवतः हैंगिंग ग्लेशियर टूटने के बाद जो मलबा नीचे आया है, उसी की वजह से ये झील बनी हो। हालांकि बताया गया है कि अभी झील में ज्यादा पानी का जमान नहीं हुआ है, ऐसे में डरने की जरूरत नहीं है।
केंद्र और राज्य को दी गई जानकारी
लेकिन अगर भविष्य में इसे एक खतरा बनने से पहले ही इसका इलाज करना जरूरी है। इसका पानी पहले ही हटाना होगा। जानाकारी के मुताबिक, ये झील ऋषिगंगा प्रोजेक्ट से छह किलोमीटर ऊपर की ओर बनी है, जो रैणी गांव से भी ऊपर है। इस बारे में केंद्र और राज्य सरकार को अवगत कर दिया गया है।
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क्या है वैज्ञानिकों का कहना?
वाडिया इंस्टीट्यूट के मुताबिक, झील के पानी का रंग फिलहाल नीला दिखाई दे रहा है, ऐसे में हो सकता है कि यह पुरानी झील हो, लेकिन इसकी धार की ओर बना अस्थाई बांध टूटा तो फिर से एक सैलाब देखने को मिल सकता है। फिलहाल ऋषिगंगा के पानी की धार नीचे की ओर नहीं जा रही है। वह रूकी हुई है। हालांकि अभी तक यह नहीं पता चला है कि इस झील में कितना पानी जमा हो पाया है।
वाडिया इंस्टीट्यूट द्वारा इस नई झील की जानकारी स्थानीय प्रशासन और ITBP को भी दे दी गए है। जिसके बाद NDRF की एक टीम को उस जगह भेजने की तैयारी की जा रही है। जहां पर नई झील का निर्माण हुआ है, ताकि इस बारे में और अधिक जानकारी मिल सके।
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