SC ST Reservation Creamy Layer: एससी एसटी में क्रीमीलेयर को आरक्षण से बाहर करें

SC ST Reservation Creamy Layer: न्यायमूर्ति बीआर गवई ने अपने सहमति वाले फैसले में कहा कि आरक्षण का अंतिम उद्देश्य देश में वास्तविक समानता को साकार करना है। सो, एससी/एसटी के बीच क्रीमी लेयर की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें आरक्षण के लाभों से बाहर रखा जाना चाहिए।

Written By :  Neel Mani Lal
Update: 2024-08-01 12:32 GMT

एससी एसटी में क्रीमीलेयर को आरक्षण से बाहर करें: Photo- Social Media

SC ST Reservation Creamy Layer: एक अत्यंत सकारात्मक और महत्वपूर्ण घटनाक्रम के रूप में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों (एससी/एसटी) के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने का आह्वान किया है, ताकि उन्हें सकारात्मक कार्रवाई (आरक्षण) के दायरे से बाहर किया जा सके। वर्तमान में क्रीमी लेयर का सिद्धांत सिर्फ अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) पर लागू होता है, एससी/एसटी पर नहीं।

एससी/एसटी के उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाली पीठ में शामिल शीर्ष अदालत के सात न्यायाधीशों में से चार ने एससी/एसटी के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने का भी आह्वान किया, ताकि आरक्षण का लाभ ऐसे समुदायों में सिर्फ पिछड़े लोगों तक ही पहुंचे।

क्या कहा न्यायाधीशों ने

न्यायमूर्ति बीआर गवई ने अपने सहमति वाले फैसले में कहा कि आरक्षण का अंतिम उद्देश्य देश में वास्तविक समानता को साकार करना है। सो, एससी/एसटी के बीच क्रीमी लेयर की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें आरक्षण के लाभों से बाहर रखा जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा, "राज्य को एससी एसटी वर्ग में क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें सकारात्मक कार्रवाई (आरक्षण) के दायरे से बाहर करने के लिए एक नीति विकसित करनी चाहिए। सच्ची समानता हासिल करने का यही एकमात्र तरीका है।"

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने भी कहा कि ओबीसी पर लागू क्रीमी लेयर सिद्धांत एससी पर भी लागू होना चाहिए, लेकिन एससी के क्रीमी लेयर को आरक्षण के दायरे से बाहर करने के मानदंड ओबीसी पर लागू मानदंडों से अलग हो सकते हैं। उन्होंने कहा - "मैं न्यायमूर्ति गवई की राय से भी सहमत हूं कि क्रीमी लेयर सिद्धांत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर भी लागू होता है और सकारात्मक कार्रवाई के उद्देश्य से क्रीमी लेयर को बाहर करने के मानदंड अन्य पिछड़ा वर्गों पर लागू मानदंडों से अलग हो सकते हैं।"

न्यायमूर्ति पंकज मिथल ने भी इसी तरह की भावनाओं को दोहराया और कहा कि आरक्षण किसी श्रेणी में केवल पहली पीढ़ी के लिए होना चाहिए। उन्होंने कहा, "आरक्षण किसी वर्ग में केवल पहली पीढ़ी के लिए होना चाहिए और यदि दूसरी पीढ़ी आ गई है तो आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए तथा राज्य को यह देखना चाहिए कि आरक्षण के बाद दूसरी पीढ़ी सामान्य वर्ग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आई है या नहीं।"

  • न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि अनुसूचित जाति/जनजाति के बीच क्रीमी लेयर की पहचान संवैधानिक अनिवार्यता बननी चाहिए।
  • पीठ के दो न्यायाधीशों, भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने इस संबंध में कोई राय व्यक्त नहीं की, जबकि न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने असहमतिपूर्ण निर्णय दिया।
  • फरवरी में मामले की सुनवाई के दौरान उन लोगों के लिए आरक्षण जारी रखने पर बहस भी हुई थी जिनकी एक पीढ़ी पहले ही लाभान्वित हो चुकी है। न्यायमूर्ति गवई ने तब कहा था कि, "ऐसा होता है कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति आईएएस, आईपीएस बन जाता है। एक बार जब वह आईएएस या आईपीएस या आईएफएस बन जाता है, तो उसके बच्चों को उन नुकसानों का सामना नहीं करना पड़ता है जो उस श्रेणी के लोगों को होते हैं जो गांवों में रहते हैं, लेकिन फिर आरक्षण के आधार पर वे दूसरी पीढ़ी या तीसरी पीढ़ी में भी इसे पाने के हकदार होते हैं।"
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