महात्मा गांधी के दोस्त थे खान अब्दुल गफ्फार खान, जानिए उनके बारे में खास बातें
स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के प्रमुख लोगों में शुमार रहे खान अब्दुल गफ्फार खान के चाहने वाले बहुत थे। आज खान अब्दुल गफ्फार खान का जन्मदिन है। उनका जन्म 6 फरवरी 1890 को पाकिस्तान में हुआ था। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में खान अब्दुल गफ्फार खान का महत्वपूर्ण योगदान है।
लखनऊ: स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के प्रमुख लोगों में शुमार रहे खान अब्दुल गफ्फार खान के चाहने वाले बहुत थे। आज खान अब्दुल गफ्फार खान का जन्मदिन है। उनका जन्म 6 फरवरी 1890 को पाकिस्तान में हुआ था। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में खान अब्दुल गफ्फार खान का महत्वपूर्ण योगदान है। खान अब्दुल गफ्फार खान ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और अपने कार्य और निष्ठा के कारण “सरहदी गांधी” (सीमान्त गांधी), “बाचा ख़ान” तथा “बादशाह ख़ान” के नाम से पुकारे जाने लगे। आईये जानते हैं कौन थे खान अब्दुल गफ्फार खान और स्वतंत्रता संग्राम में क्या था उनका योगदान...
कौन थे खान अब्दुल गफ्फार खान ??
खान अब्दुल गफ्फार खान 20वीं शताब्दी में पख्तूनों के सबसे अग्रणी और करिश्माई नेता थे, जो महात्मा गांधी के अनुयायी बन गए और उन्हें ‘सीमांत गांधी’ कहा जाने लगा। कहा जाता है कि वह बचपन से ही अत्यधिक दृढ़ स्वभाव के व्यक्ति थे। खान अब्दुल गफ्फार खान का जन्म 6 फरवरी 1890 में हुआ था। वहीं 1988 में 20 जनवरी को खान अब्दुल गफ्फार खान का निधन हो गया। इसके एक साल पहले उन्हें भारत रत्न दिया गया था।
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आजादी की लड़ाई के अहिंसक सिपाही रहे बाचा खान
खान अब्दुल गफ्फार खान पश्तो लीडर थे जिन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ अहिंसा के रास्ते से लड़ाई लड़ी। महात्मा गांधी के करीबियों में से एक थे। बाचा खान इस्लाम की आध्यात्मिकता में यकीन रखते थे, कट्टरपंथ में नहीं। जैसे गांधी हिंदू धर्म की आध्यात्मिकता के अनुयायी थे। बाचा खान आजादी की लड़ाई के अहिंसक सिपाही रहे। उन्होंने हमेशा युद्धों और हथियारों का विरोध किया। ब्रिटिश राज के समय उन्हें ‘फ्रंटियर गांधी’ भी कहा जाता था।
जीवन के 42 साल जेलों में गुजार दिए
खान अब्दुल गफ्फार खान ने अपने जीवन के पूरे 42 साल ब्रिटिश राज और फिर पाकिस्तान की जेलों में गुजार दिए। जेल में उन्हें भारी यातनाएं झेलनी पड़ीं, सरहदी सूबे की जेलों में तो अक्सर उनके पैरों में लोहे की बेड़ियां बंधी होती थीं। उन्हें बादशाह खां और सीमांत गांधी जैसी उपाधियों से नवाजा गया। पाकिस्तान में वह बाचा खान के नाम से मशहूर हैं। वह कुछ समय तक ब्रिटिश आर्मी में भी रहे, लेकिन भारतीय सैनिकों के साथ बदसलूकी के चलते नौकरी छोड़ दी। पख्तूनवा नाम का एक अखबार निकाला जो पाकिस्तान और भारत में बहुत पॉप्यूलर हुआ था।
ऐसे बने खान अब्दुल गफ्फार खान से सीमांत गांधी
खान अब्दुल गफ्फार खान ने भारत की स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। वो 20वीं शताब्दी के पख्तूनों के सबसे करिश्माई नेता थे। वो महात्मा गांधी के पद चिन्हों पर चले और लोग उन्हें सीमांत गांधी कहने लगे। उन्होंने हमेशा खुद को एक ‘स्वतंत्रता संघर्ष का सैनिक’ मात्र कहा, लेकिन उनके प्रसंशक उन्हें ‘बादशाह खान’ कह कर पुकारा करते थे।
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सच्चे राष्ट्रवादी थे बादशाह खां
खान अब्दुल गफ्फार खान एक सच्चे राष्ट्रवादी थे। राजेंद्र प्रसाद जब संविधान सभा के प्रेसिडेंट बने, तो उनके स्वागत में 7 लोगों ने अंग्रेजी में भाषण दिया। बादशाह खां अकेले थे, जो हिंदी में बोले। आजादी की लड़ाई में बादशाह खां ने कांग्रेस का पूरा साथ दिया और उनके साथी पठानों ने कांग्रेस को शक्तिशाली बनाया था।