रूपया का ये राज! सच में, सोच में पड़ जायेंगे आप

हर कोई जानता है कि पैसा, व्यक्ति की सबसे बड़ी जरूरतों में से एक है, इसके बिना व्यक्ति अधूरा रहता है। ये भी कहा जाता है कि इसके बिना व्यक्ति जीवनयापन के लिए एक कदम भी नहीं उठा सकती है। समाज की दृष्टी से देखा जाये तो, कहीं नहीं आज के समय में पैसों के बल पर ही इंसान की पहचान होती है।

Update: 2023-07-05 07:59 GMT

नई दिल्ली: बाप बड़ा न भैया-सबसे बड़ा रूपैया, ऐसा है कि सबसे बड़ा पैसा है, पैसा व्यक्ति का सबसे बड़ा दोस्त होता है... आदि कहावत तो आप सुने ही होंगे आईये आपको बताते हैं, रूपये के इतिहास से जुड़े कुछ अनकहीं कहानियां.....

हर कोई जानता है कि पैसा, व्यक्ति की सबसे बड़ी जरूरतों में से एक है, इसके बिना व्यक्ति अधूरा रहता है। ये भी कहा जाता है कि इसके बिना व्यक्ति जीवनयापन के लिए एक कदम भी नहीं उठा सकती है। समाज की दृष्टी से देखा जाये तो, कहीं नहीं आज के समय में पैसों के बल पर ही इंसान की पहचान होती है।

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बहरहाल, महंगाई अपनी चरम-सीमा पर है, जिस कारण इंसान का जीवन बदहाली की ओर अग्रसर है, बता दें कि डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार बढ़ता जा रहा है और यही कारण है रुपया की हालत दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है।

बता दें कि भारतीय करेंसी को सबसे पुराना माना जाता है, इसका इतिहास लगभग 25000 साल पुराना है। भारतीय रूपयों का सफर अच्छा और बुरा दोनो रहा है।

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1 डॉलर बराबर 74 भारतीय रूपया...

वर्तमान में 1 डॉलर की कीमत 74 रुपये हो गई है और इस वजह से महंगाई, अंतराष्ट्रीय बाजार में हो रहे बदलाव और फॉरन रिजर्व का कम हो जाना रुपया के बढ़ने के अंदर ही आता है।

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लेकिन आप क्या यह जानते हैं कि भारत की आजादी सन् 1947 के समय एक डॉलर के बराबर एक रुपये हुआ करता था। आईये आपको रूबरू कराते हैं भारतीय रूपया के सफर से...

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बताते चलें कि आज़ादी से पहले सन् 1917 में एक रुपया 13 डॉलर के बराबर था। सन् 1947 में भारत की स्वतंत्रता के वक्त रुपया और डॉलर बराबर थे।

साथ ही बता दें कि1951 सन् में जब पहली पंच-वर्षीय योजना लागू हुई तब एक डॉलर 4 रुपये के बराबर था। साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के कारण भारत की अर्थव्यवस्था डगमगाई और 1 डॉलर 7 रुपये के बराबर हो गया।

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आपको बता दें कि साल 1975 में जब आपातकाल लागू हुआ तब एक डॉलर की क़ीमत 8 रुपये थी। सन् 1985 में जब हमारा व्यापार घाटा बढ़ा, तब रुपया एक डॉलर के मुकाबले 12 रुपये के स्तर तक गिर गया था।

इसके साथ ही साल 1991 में हुए खाड़ी युद्ध और विकास दर कम होने के चलते एक डॉलर की क़ीमत 17.90 रुपये हो गई, 1993 सन् में जब भारत सरकार ने आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई, तब एक डॉलर के बदले 31 रुपये देने पड़ते थे।

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साल 2000 से साल 2006 के बीच रुपये में उतार चढ़ाव जारी रहा और इसकी वेल्यु 1 डॉलर के मुकाबले 40-48 रुपये थी।

उल्लेखनीय है कि सन् 2008 में पूरा विश्व आर्थिक मंदी के चपेट में आया, तब रुपया गिरकर 51 के स्तर तक पहुंच गया। इसके बाद 2013 में भारत पर विदेशी कर्ज़ का बोझ 409 अरब डॉलर हो गया। तब एक डॉलर का एक्सचेंज रेट 65 रुपये के बराबर हो गया था।

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