सकते में आया चीन: ऐसा क्या किया भारत ने, जो हो गई दुश्मन देश की हवा टाइट

लद्दाख में चीन की दगाबाज़ी को देखते हुए भारत अब सामरिक महत्व के इस इलाके में अपनी हर तैयारी को अपडेट कर रहा है। बिलासपुर-मनाली-लेह रेलवे परियोजना को भारत ने तेज़ कर दिया है।

Update:2020-07-18 16:30 IST

नई दिल्ली। लद्दाख में चीन की दगाबाज़ी को देखते हुए भारत अब सामरिक महत्व के इस इलाके में अपनी हर तैयारी को अपडेट कर रहा है। भारत की कोशिश है कि रेल से लेकर पुल तक और सड़क से लेकर हथियार तक ऐसे बनाए जाएं कि दोबारा ड्रैगन ऐसा दुस्साहस ना कर सके।भारत की इस तैयारी में रेलवे विभाग पूरे ज़ोर शोर से जुट गया है।

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ड्रैगन को डराने के लिए क्या कर रहा है भारत-

बिलासपुर-मनाली-लेह रेलवे परियोजना को भारत ने तेज़ कर दिया है।1500 किलोमीटर की इस परियोजना की लेवलिंग का काम पूरा हो चुका है। बिलासपुर से लेह तक 475 किलोमीटर लम्बी ब्राड गेज पर पटरियां बिछाने का काम भी शुरु हो गया है।

चालू चीन की चालाकी से दो दो हाथ करने की भारत सरकार की गम्भीरता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि कोरोना संकट के दौरान भी यहां पर काम रोका नहीं गया। इस पूरी परियोजना से भारत का रेलवे ट्रैक चीन की सीमा के एकदम नज़दीक पहुंच जाएगा।

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क्या है रेलवे का यह प्रोजेक्ट—

68000 करोड़ रुपए की लागत से बन रहा यह प्रोजेक्ट दुनिया की सबसे ऊंची रेलवे लाइन होगा। इस पूरे प्रोजेक्ट में 110 पुल बनेंगे जिनकी लम्बाई 23 किलोमीटर होगी।

31 स्टेशनों वाला यह प्रोजेक्ट हिमाचल के बिलासपुर को लेह के पहाड़ी इलाकों से जोड़ देगा।इस प्रोजेक्ट में 51 फीसदी रेलवे मार्ग सुरंगों से होकर गुज़रेगा।सुरंगों की कुल लम्बाई 238 किलोमीटर और सबसे लम्बी सुरंग साढ़े 13 किलोमीटर की होगी।

क्यों ड्रैगन है सकते में—

प्रोजेक्ट पूरा होने पर यह लाइन चीन की सीमा से कुछ ही दूरी पर होगी जिससे किसी युद्ध जैसी स्थिति में सैनिकों को रसद तेज़ी मुहैय़ा कराई जा सकेगी।

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दुनिया की सबसे ऊंची रेल लाइन से चीन को परेशानी इसलिए भी है क्योंकि ब्राड गेज पर बन रही इन रेलवे लाइन्स पर ट्रेन 75 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकेगी। भारतीय रेलवे के इतिहास में इस लाइन का निर्माण सबसे कठिन माना जा रहा है क्योंकि इसकी भौगोलिक स्थिति सबसे दुरूह है।

चीन को चौतरफा घेरने की तैयारी-

रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस रेलवे प्रोजेक्ट के अलावा भारत पूर्वोत्तर से लेकर लेह तक चीन से सटी अपनी हर सीमा पर तैयारियों को चाक चौबंद कर रहा है। 1962 के भारत चीन युद्ध में भारत को हार का सामना इसलिए करना पड़ा था क्योंकि भारत ने अपनी सामरिक तैयारियों पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया था।

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भारतीय सेना को सड़क से लेकर फौजी साज़ोसामान के लिए तरसना पड़ा था और अदम्य शौर्य के बावजूद अपने इलाकों से ही पीछे हटना पड़ा था।

ऐसी कोई स्थिति फिर से ना हो इसलिए भारत सरकार ने बार्डर रोड आर्गेनाइजेशन को चीन से जुड़ी सीमा की सड़कों को सुधारने का काम दिया है और इस सीमा पर बीआरओ ने हज़ारों किलोमीटर लम्बी नई सड़कें और सैंकड़ों पुल बना लिए हैं। इस लेह तनाव के दौरान ही बीआरओ ने तीन महीने के अंदर करीब दर्जन भर पुल बनाकर अपनी दक्षता का परिचय दिया है।

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