भारत-चीन सीमा विवाद: विदेश मंत्री जयशंकर ने माना, लद्दाख में स्थिति है बहुत गंभीर

गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में भारतीय सैनिकों की मौत के बाद से भारत और चीन के रिश्ते और भी ज्यादा बिगड़ गये हैं। दोनों देशों के बीच तल्खी और भी ज्यादा बढ़ गई है।

Update: 2020-08-27 05:21 GMT
विदेश मंत्री एस जयशंकर की फाइल फोटो

नई दिल्ली: गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में भारतीय सैनिकों की मौत के बाद से भारत और चीन के रिश्ते और भी ज्यादा बिगड़ गये हैं। दोनों देशों के बीच तल्खी और भी ज्यादा बढ़ गई है।

इस बीच भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर का भारत और चीन के बीच सीमा विवाद मामले में बड़ा बयान सामने आया है। एस. जयशंकर ने माना है कि लद्दाख में आज बहुत ही गंभीर स्थिति है।

उन्होंने कहा, जैसा कि आपको पता है कि हम चीनी पक्ष से सैन्य और कूटनीतिक दोनों चैनलों के जरिए बातचीत कर रहे हैं। दोनों चीजें साथ-साथ चल रही हैं।

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गलवान घाटी में तैनात सैनिकों की फाइल फोटो

लद्दाख की स्थिति 1962 के बाद से सबसे ज्यादा गंभीर: एस जयशंकर

विदेश मंत्री ने लद्दाख की स्थिति को 1962 के बाद से सबसे ज्यादा गंभीर करार दिया है। जयशंकर ने एक इंटरव्यू में कहा, अगर पिछले एक दशक को देखें तो चीन के साथ कई बार सीमा विवाद उभरा है- डेपसांग, चूमर और डोकलाम। हालांकि, सभी सीमा विवादों में एक बात जो निकलकर आती है वो ये है कि समाधान कूटनीति के जरिए ही किया जाना चाहिए।

कुछ हद तक हर सीमा विवाद अलग तरह का रहा। मौजूदा विवाद भी कई मायनों में अलग है। उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से ये 1962 के बाद की सबसे गंभीर स्थिति है।

पिछले 45 सालों में सीमा पर पहली बार हमारे सैनिकों की मौत हुई है। एलएसी पर दोनों पक्षों की तरफ से बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती है जोकि अप्रत्याशित है।

समझौते के लिए बातचीत का सम्मान होना चाहिए

विदेश मंत्री ने कहा कि चीन के साथ सीमा विवाद के समाधान में यथास्थिति में एकतरफा बदलाव नहीं होना चाहिए। समाधान में हर समझौते का सम्मान होना चाहिए।

उन्होंने आगे कहा कि यदि भारत और चीन दोनों देश मिलकर काम करें तो ये सदी एशिया की होगी। ये रिश्ता दोनों देशों के लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है।

इसमें कई समस्याएं भी हैं और मैं इस बात को मानता हूं। यही वजह है कि किसी भी रिश्ते में रणनीति और विजन दोनों जरूरी है।लेकिन तमाम रुकावटों की वजह से इन कोशिशों को झटका लग सकता है।

वहीं चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि चीन के साथ हमारी वार्ता चल रही है लेकिन अगर वार्ता फेल होती है, तो भारत के पास सैन्य विकल्प मौजूद है।

उन्होंने ये भी कहा कि पूर्वी लद्दाख में चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा किए गए अतिक्रमण से निपटने के लिए भारत के पास एक सैन्य विकल्प मौजूद है, लेकिन इसका इस्तेमाल तभी किया जाएगा जब दोनों देशों की सेनाओं के बीच बातचीत और राजनयिक विकल्प फेल साबित हो जाएगे।

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सीडीएस विपिन रावत की फाइल फोटो

फौज सैन्य कार्यवाही के लिए भारत तैयार

किसी भी ऐसी गतिविधि को शांतिपूर्वक हल करने और घुसपैठ को रोकने के लिए सरकार के संपूर्ण दृष्टिकोण को अपनाया जाता है। लेकिन सीमा पर यथास्थिति बहाल करने में सफलता नहीं मिलती तो फौज सैन्य कार्यवाही के लिए हमेशा तैयार रहती है।"

उन्होंने ये भी कहा था, "वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अतिक्रमण या सीमा-उल्लंघन उस क्षेत्र की अलग-अलग समझ होने पर होता है। डिफेंस को जिम्मेदारी दी जाती है कि वो एलएसी की निगरानी करें और घुसपैठ को रोकने के लिए अभियान चलाएं।

एलएसी पर विवाद सुलझाने के लिए भारत और चीन के बीच कई दौर की सैन्य वार्ता हो चुकी है। इसमें लेफ्टिनेंट-जनरल स्तर की वार्ता शामिल है। दूसरी तरफ, राजनयिक स्तर पर भी बातचीत जारी है। हालांकि, बातचीत में अभी तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है।

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