सेना का जुगाड़ः चीन को LAC से भगाने में आया काम, ऐसे पाई लद्दाख पर फतह

बकौल जोशी सेना ने ड्रैगन को पीछे भगाने और सीमा पर सुविधाओं का इंतजाम करने के लिए कई तरह के जुगाड़ का इस्तेमाल किया। पानी से लेकर टैंक को इतनी ऊंचाई तक पहुंचाने तक सेना ने कई जुगाड़ किए गए।

Update:2021-02-18 11:14 IST
सेना का जुगाड़ः चीन को LAC से भगाने में आया काम, ऐसे पाई लद्दाख पर फतह

नई दिल्ली: बीते साल मई महीने से पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी LAC पर भारत और चीन के बीच बना तनाव अब खत्म हो रहा है। तनातनी में कमी आने के बाद चीन पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारे से अपने सैनिकों और सैन्य साजो-सामान को हटाने में लग गया है। हालांकि भारतीय सेना (Indian Army) चीन की सभी हरकतों पर बारीकी से नजर रख रही है।

मुश्किल परिस्थितियों में चीन को दी टक्कर

वहीं, आज एक न्यूज चैनल से बात करते हुए नादर्न कमांड के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी (Northern Command Chief Lieutenant General YK Joshi) ने बताया कि कैसे भारतीय सेना ने मुश्किल परिस्थितियों में चीन को टक्कर दी है। उन्होंने बताया कि कई बार सेना के जवानों ने जुगाड़ के जरिए मुश्किलों का सामना किया और विजय पाई।

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कभी सोचा नहीं ऐसे हालात आएंगे

लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी ने बताया कि कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि इतनी ऊंचाईयों पर टैंक होंगे। मैंने अपनी पूरी जिंदगी लद्दाख में, ब्रिगेड, डिवीजन, सह-क्षेत्र की कमान संभालने में बिताई। पांच मई से पहले मैंने ऐसा नहीं सोचा था कि ऐसी स्थिति आएगी, जिसमें पूर्वी लद्दाख में इस तरह का मूमेंट होगा।

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(फोटो- सोशल मीडिया)

पारंपरिक तरीके से काम करना था बड़ी चुनौती

आगे उन्होंने कहा कि सेना, गोला बारूद, तोप सब लेकर LOC के पास गए, जो बहुत अकल्पनीय था। जवानों ने पूरी हिम्मत के साथ इसे अंजाम दिया। बकौल जोशी सेना ने ड्रैगन को पीछे भगाने और सीमा पर सुविधाओं का इंतजाम करने के लिए कई तरह के जुगाड़ का इस्तेमाल किया। पानी से लेकर टैंक को इतनी ऊंचाई तक पहुंचाने तक सेना ने कई जुगाड़ किए गए। मुश्किल वक्त में पारंपरिक तरीके से काम करना बड़ी चुनौती रही।

वहीं, सेना के एक अधिकारी ने कहा कि शुरूआत में एलओसी पर सेनाओं के लिए पानी एक बड़ी समस्या था। पानी के लिए पहाड़ों पर चढ़ना काफी कठिन है। पहले तो सैनिकों के लिए बोतलबंद पानी मिला। लेकिन इसके बाद इंजीनियरों को काम पर लगाया गया और करीब 20 बोरवेलों को खोदा गया।

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