खिलौना बाजारः 8000 अरब का कारोबार, भारत का हिस्सा मात्र 40 अरब
लेकिन यह पहला मौका है जब देश के बच्चों की खिलौनों की जरूरत के बारे में सोचा जा रहा है। भारतीय समाज में सारा जोर पढ़ने पर रहा है।
लखनऊ: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत के तहत देश को दुनिया भर के लिए खिलौनों के उत्पादन का केंद्र बनाने की वकालत की है। वोकल अबाउट लोकल टॉयज का नारा भले ही चीन की जगह भरने की कोशिश का हिस्सा हो। लेकिन यह पहला मौका है जब देश के बच्चों की खिलौनों की जरूरत के बारे में सोचा जा रहा है। भारतीय समाज में सारा जोर पढ़ने पर रहा है।
खेलने को हमेशा प्राथमिकता में बहुत नीचे रखा जाता है। स्कूली शिक्षा जैसे-जैसी बढ़ती गयी है खेलने का समय कम होता गया है। प्रधानमंत्री ने खिलौनों के उत्पादन में देश की समृद्ध परंपरा की ओर ध्यान खींचा है और यह भी कहा है कि बच्चों के विकास के लिए खिलौने बहुत जरूरी हैं।
भारत में खिलौनों की संभावना
अगर भारत खिलौनों के अपने बाजार का विकास कर ले तो वह बड़ी आसानी से दुनिया के लिए भी खिलौने बना सकता है। ये ना सिर्फ पुराने हुनरमंदों को रोजगार देगा बल्कि ऑनलाइन गेम्स के विकास में भी बहुत से युवा प्रतिभाओं को आकर्षित करेगा। ऑनलाइन गेम्स की बात करें तो लॉकडाउन के दौरान गेमिंग कंसोल जैसे कि प्ले स्टेशन और एक्सबॉक्स आदि की बिक्री जबर्दस्त तरीके से बढ़ी है। विडियो गेम्स का कारोबार दुनिया में अरबों डालर का है जिसमें भारत भी बड़ी हिस्सेदारी कर सकता है।
एक अनुमान के अनुसार भारत में खिलौना बाजार का सालाना कारोबार लगभग 25 हजार करोड़ रुपये का है। जिसमें चीन का हिस्सा लगभग 65 फीसदी है और लगभग 5 फीसदी खिलौने अन्य देशों से आयात किए जाते हैं। शेष 30 फीसदी खिलौने भारत में निर्मित होते हैं। भारत में प्राथमिक, सूक्ष्म और कुटीर क्षेत्रों में लगभग 6000 से अधिक खिलौना निर्माता हैं। चीन के अलावा भारत थाइलैंड, कोरिया और जर्मनी से भी खिलौने आयात करता है। चीन ने विशेष रूप से पिछले 5 वर्षों में खिलौनों के क्षेत्र में अत्यधिक वृद्धि की है और भारतीय बाजार में अपने कम मूल्य के खिलौना उत्पादों के साथ आक्रामक रूप से चीनी खिलौनों को उतारा है।
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चीनी उत्पाद इस्तेमाल और फेंकने की प्रकृति के हैं, जबकि भारतीय खिलौने अधिक टिकाऊ और मजबूत हैं लेकिन विभिन्न कारणों से भारतीय खिलौने महंगे हो जाते हैं। भारतीय खिलौना क्षेत्र को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, जो भारत में इस क्षेत्र के विकास के लिए बाधक हैं। इसके फलस्वरूप इन उत्पादों के लिए चीन पर निर्भरता काफी हद तक बढ़ी है। हालांकि, भारतीय खिलौने निर्यात के लिए बेहद सक्षम हैं लेकिन इसके लिए खिलौना क्षेत्र को समर्थन देने के लिए सरकार की एक मजबूत नीति की आवश्यकता है।
चीन का दबदबा
खिलौनों का वैश्विक बाजार करीब 90 अरब यूरो का है। इसका मूल्य करीब 8,000 अरब रुपए के बराबर है। लेकिन इसमें भारत का हिस्सा बहुत कम है। इसलिए कर्नाटक सरकार ने वैश्विक खिलौना उत्पादकों को कोप्पला में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत के खिलौनों का हिस्सा सिर्फ 45 करोड़ यूरो का है। भारत का बाजार चीन में बने खिलौनों से भरा है। एक अनुमान के अनुसार भारत के बाजार में 90 फीसदी गैर ब्रांडेड चीनी खिलौने हैं। दुनिया में 12 साल तक की उम्र के बच्चों की आबादी का 25 फीसदी भारत में रहता है और इस बाजार की बड़ी संभावनाएं हैं।
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वाराणसी काठ के खिलौनों के लिए प्रसिद्ध है। शहर के कश्मीरीगंज और आसपास के इलाके में लकड़ी के खिलौनों का 30 करोड़ रुपये का कारोबार है। करीब 3,000 लोगों को रोजगार देने वाला ये कारोबार फिलहाल कोरोना महामारी के कारण ठप्प पड़ा है, लेकिन उसे बढ़ाकर दोगुना करने का इरादा है। कर्नाटक में खिलौनों के उत्पादन के लिए कोप्पला में 400 एकड़ का एक औद्योगिक क्लस्टर बनाया जा रहा है और कर्नाटक के मुख्यमंत्री को उम्मीद है कि आने वाले पांच वर्षों में करीब 5,000 करोड़ रुपये का निवेश आएगा साथ ही करीब 40,000 नए रोजगारों का सृजन होगा।
वीडियो गेम्स में बढ़ती दिलचस्पी
अंतरराष्ट्रीय पैमाने पर वीडियो गेम्स का बाजार करीब 82 अरब यूरो का है और 2025 तक इसके बढ़कर 90 अरब हो जाने का अनुमान है। इसमें मोबाइल गेम्स का हिस्सा करीब 50 अरब यूरो का होगा। खिलौनों और वीडियो गेम्स दोनों को मिला दें तो बाजार करीब 200 अरब यूरो का है।
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प्रधानमंत्री ने खिलौनों पर ध्यान देने और भारतीय उद्यमियों को इनके विकास के क्षेत्र में आने का आह्वान कर जो पहल की है उसे अमल में लाने की जरूरत है। इस बाजार में हिस्सेदारी आसान नहीं है, भारत के कारीगरों और उद्यमियों के अलावा सरकार को भी प्रयास करना होगा और इसके लिए प्रशिक्षण, डेवलपमेंट क्लस्टर, कारखानों और ट्रांसपोर्ट का ढांचागत संरचना बनाना होगा।
उद्योग के लिए शुभ संकेत
कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स का कहना है कि मोदी की बातों से यह स्पष्ट है कि सरकार की बुनियादी नीति में एक बड़ा परिवर्तन आया है और अब सरकार भारतीय उत्पादों को प्रोत्साहित करते हुए देश को आत्मनिर्भर बनाकर विदेशी सामान की निर्भरता को कम करने के लिए पूरी तरह जुट गयी है। अब देश का खिलौना उद्योग सरकार की प्राथमिकता में आ गया है, जो देश के व्यापारियों एवं लघु उद्योग के लिए एक शुभ संकेत है।
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इस संबंध में कैट ने एक राष्ट्रीय खिलौना नीति और एक विशेषज्ञ समिति के गठन का आग्रह किया है। कैट का कहना है कि इस समिति में वरिष्ठ अधिकारी व व्यापार के प्रतिनिधि शामिल हों और भारत में खिलौना क्षेत्र का गहन अध्ययन और मैकेनिकल व इलेक्ट्रॉनिक दोनों तरह के खिलौनों के उत्पादन में वृद्धि के लिए आवश्यक उपाय सरकार को सुझाएं।
समस्याएं भी कम नहीं
टॉयज एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अजय अग्रवाल एवं संयोजक मनु गुप्ता का कहना है कि भारतीय खिलौना क्षेत्र बेहतर कर सकते हैं और घरेलू और वैश्विक बाजार में दूसरों को कड़ी टक्कर दे सकते हैं। लेकिन चूंकि खिलौना क्षेत्र एक लम्बे समय से कुछ बड़ी बाधाओं का सामना कर रहा है, इस कारण से भारतीय खिलौनों के क्षेत्र में वृद्धि अपेक्षित विकास की तुलना में बहुत कम है। खिलौना उद्योग की समस्याओं के समाधानों के लिए कोई नीति न होने से इस सेक्टर में वृद्धि बेहद धीरे-धीरे हो रही है।
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विभिन्न खिलौनों पर जीएसटी की दो दरें कर प्रक्रिया को जटिल करती हैं। खिलौना उद्योग में डिजाइन और इनोवेशन की बहुत कमी है, जिसके कारण नए उत्पाद बनाना बहुत मुश्किल है। भारत में कोई भी एकल समर्पित खिलौना डिजाइन संस्थान नहीं है। दुनिया में बेचे जाने वाले ज्यादातर खिलौने इलेक्ट्रॉनिक हैं, जबकि भारत में बने खिलौने मैकेनिकल हैं। खिलौनों के निर्माता अधिक जीएसटी दर लगने के कारण इलेक्ट्रॉनिक खिलौने बनाने से हिचकते हैं।
मैकेनिकल खिलौने 12 फीसदी जीएसटी दर में और इलेक्ट्रॉनिक खिलौने 18 फीसदी टैक्स की दर के अधीन हैं। कैट का कहना है कि भारत में खिलौनों के लिए एक प्लग एंड प्ले पॉलिसी की जरूरत है। कैट इस सन्दर्भ में गोयल से देश में 6 स्थानों पर टॉय डिजाइन एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट के निर्माण के लिए भी आग्रह करेगा, जिससे देश भर के खिलौना निर्माताओं को इसका लाभ मिलेगा।
फन स्कूल की योजना
खिलौना निर्माण के क्षेत्र की अग्रणी भारतीय कम्पनी फनस्कूल इंडिया लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के. जॉन बेबी का मानना है कि भारत में संगठित खिलौना बाजार अभी शुरुआती चरण में है और काफी तेजी से विकास कर रहा है। इसके हर साल 10 से 12 फीसदी की रफ्तार से बढ़ने की उम्मीद है। ऐसे में फनस्कूल इंडिया अनुमानित 3000 करोड़ रुपये के भारतीय बाजार में अपनी उपस्थिति मजबूत करते हुए हिस्सेदारी बढ़ाने पर गम्भीरता से विचार कर रहा है।
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फनस्कूल के पास खिलौना निर्माण का 31 साल का अनुभव है और यह भारत में काफी जाना-पहचाना नाम है। अपने ब्रांड्स के अलावा फनस्कूल भारत में कई विदेशी प्रॉडक्ट्स का डिस्ट्रीब्यूशन करता है। इन ब्रांड्स मे हेसब्रो, लेगो, डिज्नी, वार्नर ब्रदर्स, टाकारा टोमी और रेवेंसबर्गर शामिल हैं। भारतीय बाजार में कम्पनी अपने उत्पादों के साथ-साथ इन ब्रांड्स को प्रमोट करने में जुटी है क्योंकि उसकी आय का एक बड़ा हिस्सा विदेशी ब्रांड्स के डिस्ट्रीब्यूशन से आता है।
कुछ मशहूर पारंपरिक खिलौने
राजस्थान की कठपुतली: जब पारंपरिक खिलौनों की बात आती है तो सबसे पहले राजस्थान की कठपुतलियों की याद आती है। राजस्थान की ये कठपुतलियां सिर्फ खेल ही नहीं बल्कि सजावट के लिए भी देश-विदेश में जानी जाती हैं।
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राजस्थान घूमने आने वाले विदेशी अक्सर अपने साथ कठपुतलियां लेकर जाते हैं। इनकी विदेशी में अच्छी खासी डिमांड है। तार से नाचने वाली ये कठपुतलियां मिट्टी और हाथी के दांत से बनाई जाती थीं। इंडोनेशिया, अफगानिस्तान और श्रीलंका जैसे कई देशों में ये मशहूर हैं।
चन्नपटना खिलौने : ये खिलौने चन्नपटना में बनाए जाते हैं जो दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में बेंगलुरु और मैसूरु के बीच एक छोटा शहर है। यह शहर अपने खिलौने बनाने की कला के लिए मशहूर है। ऐसा कहा जाता है कि 1750 से 1799 तक शासन करने वाले राजा टीपू सुल्तान को लाख से बना एक फ़ारसी खिलौना मिला।
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इसे देखकर वे काफ़ी खुश हुए। उन्होंने अपने कुछ लोगों को यह कारीगरी सिखाने के लिए वहां के कारीगरों को बुलाया। इसके कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए राज्य सरकार पैसे से जुड़ी मदद भी करती है।
बनारस की काष्ठ-कला: बनारस की काष्ठ-कला (लकड़ी से बनी मूर्तियां) पूरी दुनिया में मशहूर हैं। यहां बने लकड़ी के तरह-तरह के खिलौनों, रेलगाड़ी, गुड़िया, सिंदूरदान, चूड़ीकेस के अलावा सजावटी सामान इंटीरियर डेकोरेशन में भी काफी प्रयोग होता है। इस काष्ठ कला ने दुनिया में बनारस को एक अलग पहचान दी है।
जीआई (जियोग्राफिकल इंडीकेशन) टैग मिलने के बाद बनारस का लकड़ी कारोबार 30 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ गया है। शहर के कश्मीरीगंज, खोजवां इलाके में बड़े स्तर पर लकड़ी के खिलौने बनाए जाते हैं, जबकि लहरतारा, कॉरोअमा गांव में ऐंटीक आइटम बनाए जाते हैं। यह आइटम विदेशों में खूब पसंद किए जाते हैं।
तंजौर डॉल्स: तंजौर या तंजावुर खिलौनों के बारे में कई तमिल साहित्य में जानकारी मिलती है। आपने भी कई जगह, या फिल्मों में ये डॉल देखी होंगी, जिनका सर और शरीर ऐसे हिलता है जैसे की ये नाच रही हैं।
इसलिए इन्हें तंजौर की डॉन्सिंग डॉल्स भी कहा जाता है। इन डॉल्स की दुनिया भर में मांग है।
कोंडापल्ली खिलौने: कोंडापल्ली खिलौने लंबे समय से हमारी परंपरा का हिस्सा रहे हैं। ये देखने में तो आकर्षक होते ही हैं, साथ ही ग्रामीण जीवन से भी रूबरू कराते हैं। आंध्र प्रदेश स्थित विजयवाड़ा जिले में बने लकड़ी के कोंडापल्ली खिलौने काफी प्रसिद्ध है।
जो कारीगर इस पेशे में हैं उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी की आजीविका इसी कला पर निर्भर है। कोंडापल्ली आंध्र प्रदेश का एक औद्योगिक कस्बा है, जिसकी पहचान ही इन खिलौने के कारण है। इन खिलौनों को जानवरों और ग्रामीण जीवन को देखते हुए डिजायन किया जाता है। हंस, मोर और तोता इसके लिए लोकप्रिय थीम हैं।