अनिल अंबानी से छिने ऑफिस, राफेल से भी कट सकता है पत्ता
यस बैंक के अनुसार अनिल अंबानी को 6 मई 2020 को नोटिस दिया गया था, लेकिन 60 दिन के नोटिस के बावजूद समूह बकाया नहीं चुका पाया।
नई दिल्ली: कर्ज के जाल में बुरी तरह फंसे अनिल अम्बानी को एक नया झटका लगा है। यस बैंक ने दो हज़ार 892 करोड़ रुपये का बकाया कर्ज़ नहीं चुकाने पर अनिल अंबानी समूह के 21432 वर्ग मीटर वाले मुख्यालय को अपने कब्ज़े में ले लिया है। ये मुंबई के सान्ताक्रुज़ इलाके में स्थित है। अनिल धीरूभाई अंबानी समूह पिछले साल इसी आफिस को लीज़ पर देना चाहता था ताकि वह कर्ज चुकाने के लिए संसाधन जुटा सके।
रिलायंस सेंटर से चलती हैं सभी कंपनियां
सिर्फ अनिल अम्बानी ग्रुप के हेडआफिस को ही नहीं बल्कि यस बैंक ने रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर द्वारा बकाये का भुगतान नहीं करने के चलते दक्षिण मुंबई के दो फ्लैटों का कब्जा भी अपने हाथ में ले लिया है। दो अन्य संपत्तियां दक्षिण मुंबई के नागिन महल में हैं। ये दोनों फ्लैट क्रमश: 1,717 वर्ग फुट और 4,936 वर्ग फुट के हैं। अनिल धीरूभाई अंबानी समूह (एडीएजी) की लगभग सभी कंपनियाँ मुंबई के सांताक्रूज़ कार्यालय ‘रिलायंस सेंटर’ से चलती हैं। पिछले कुछ साल के दौरान समूह की कंपनियों की वित्तीय स्थिति काफ़ी ख़राब हो गई है।
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यस बैंक के अनुसार अनिल अंबानी को 6 मई 2020 को नोटिस दिया गया था, लेकिन 60 दिन के नोटिस के बावजूद समूह बकाया नहीं चुका पाया। जिसके बाद 22 जुलाई को उसने तीनों संपत्तियों को कब्ज़े में ले लिया। अंबानी की जिस बिल्डिंग को यस बैंक ने कब्ज़े में लिया है, वो जगह असल में बिजली सप्लायर बीएसईएस की थी। अंबानी ने इस जगह को उनसे ख़रीदा था। मुंबई में बेस्ट और टाटा के अलावा रिलायंस पावर बिजली सप्लाई करते थे जिसे अब अडानी ख़रीद चुके हैं।
राफेल का मामला
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अनिल अंबानी पर भारी कर्ज़ है। अब वे कुछ नया शुरू करने की हालत में नहीं हैं सो अपने ज़्यादातर कारोबार या तो बेच रहे हैं या फिर समेट रहे हैं। राफेल के रूप में उन्हें जो नया ठेका मिला, वो भी कई वजहों से विवादों में घिरा रहा और अब यस बैंक के रूप में ये नई समस्या आई है। अब जो हालात हैं उनसे ऐसा लगता है कि अनिल अम्बानी राफेल से सम्बंधित करार पूरा शायद नहीं कर पायें। ये भी मुमकिन है कि राफेल संबंधी मेंटेनेंस का ठेक वो किसी और कंपनी के हवाले कर के बीच से हट जाएं। राफेल बनाने वाली फ़्रांसीसी कंपनी द्साल्ट एविएशन ने अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड को अपना ऑफ़सेट पार्टनर बनाया है।
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जिसे लेकर सवाल उठते रहे हैं कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की जगह पर अंबानी की दिवालिया कंपनी के साथ 30,000 करोड़ रुपए का क़रार क्यों किया गया। डिफ़ेंस क्षेत्र में लगभग ना के बराबर अनुभव वाली अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफ़ेंस के इस रक्षा सौदे में शामिल होने पर भी काफ़ी हंगामा हुआ था। विपक्ष ने कहा था कि ये भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला सौदा है। बहरहाल, अब ऐसा लगता है कि अनिल अम्बानी राफेल से अपना हाथ खींच लेंगे।