मीट नहीं, फेक मीट का जोर, जानिए क्यों है इसकी मांग
विश्व में अब असली की बजाये नकली मांस यानी फेक मीट का जोर है और इसका बाजार अगले दो दशकों में 240 बिलियन डॉलर का हो जाने की संभावना है। एक अनुमान है कि सन 2040 तक कुल मीट बाजार का ९ फीसदी हिस्सा फेक मीट का हो जायेगा। अभी ये आंकड़ा एक फीसदी का है।
लखनऊ: विश्व में अब असली की बजाये नकली मांस यानी फेक मीट का जोर है और इसका बाजार अगले दो दशकों में 240 बिलियन डॉलर का हो जाने की संभावना है। एक अनुमान है कि सन 2040 तक कुल मीट बाजार का ९ फीसदी हिस्सा फेक मीट का हो जायेगा। अभी ये आंकड़ा एक फीसदी का है।
दरअसल फेक मीट वनस्पतियों से बना होता है। फिलहाल वनस्पति आधारित मीट का बाजार 140 बिलियन डॉलर तक का बताया जाता है। अमेरिका की ‘बियांड मीट’ वनस्पति आधारित मीट के कारोबार में बड़ी कंपनी है और 2018 में इसकी वैल्यू 9.7 बिलियन डॉलर थी।
इसकी प्रतिद्वंद्वी ‘इम्पॉसिबल फूड्स’ की वैल्यू 1.52 बिलियन डॉलर की आंकी गई है और 2018 में इस कंपनी की इनकम 110 मिलियन डॉलर की थी। वनस्पति आधारित मीट में पशु मीट जितना ही प्रोटीन होता है। बर्गर किंग के आउटलेट्स और छोटे बड़े स्टोर्स में मीट वाले सेक्शन में वैकल्पिक मीट खूब बेचा जा रहा है।
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कुछ कंपनियां लैब में मीट भी बनाने लगे हैं और संभावना है कि आगे यही बाजार के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लेगा। लैब में मीट दरअसल पशुओं के सेल्स (कोशिका) को टेस्ट ट्यूब में कल्चर करके बनाया जाता है। यानी मीट के लिए पशुओं को मारने की जरूरत नहीं होती। लैब में मीट तैयार करने के लिए कई कंपनियां निवेश कर रही हैं लेकिन अभी इसका कमर्शियल उत्पादन शुरू नहीं किया गया है। पिछले साल ही सेल आधारित मीट बनाने वाली कंपनियों में 50 मिलियन डॉलर का निवेश किया गया।
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ये तो तय है कि वनस्पति आधारित व लैब वाले मीट में स्वाद, लागत और सामग्री में काफी अंतर होगा। लेकिन ये मीट अंतत: पारंपरिक मीट के बाजार में हलचल जरूर पैदा कर देंगे। पशुओं को पालने का खर्च, उनमें होने वाली बीमारियां, ग्रीन हाउस गैस, ओजोन परत को नुकसान, चारागाहों की कमी आदि ऐसी चीजें हैं जिनसे वैकल्पिक मीट का बाजार बढऩा तय है।
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इसके विरोध में अमेरिका में अभी से पारंपरिक मीट उत्पादक कमर कस रहे हैं। जिन राज्यों में पशुधन और पोल्ट्री का बड़े पैमाने पर पालन होता है वो वैकल्पिक मीट की बिक्री पर किसी न किसी तरह की रोक लगाने की कोशिश में हैं। अरकन्सास और व्योमिंग जैसे राज्य में वैकल्पिक मीट को ‘मीट’ का लेबल लगा कर बेचने पर रोक लगा दी गई है।