पद्मश्री गिरिराज किशोर: साहित्य के महान लेखक, आज भी लोगों के दिलों में हैं जिंदा
गिरिराज किशोर वैसे तो मूल रूप से मुजफ्फरनगर के रहने वाले थे, लेकिन बाद में कानपुर में बस गए। साहित्य और शिक्षा के लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था।
लखनऊ: हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार कथाकार, नाटककार और आलोचक गिरिराज किशोर आज ही के दिन बीते साल दुनिया को अलविदा कह गए थे। हृदय गति रुकने से 9 फरवरी, 2020 की सुबह उनकी सांसे थम गईं। भले ही वो इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उनकी लिखीं रचनाएं आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। आज उनकी पुण्यतिथि के मौके पर हम आपको उनसे जुड़ीं कुछ बातें बताने जा रहे हैं-
मुजफ्फरनगर से कानपुर का सफर
गिरिराज वैसे तो मूल रूप से मुजफ्फरनगर के रहने वाले थे, लेकिन बाद में कानपुर में बस गए। गिरिराज का जन्म 8 जुलाई 1937 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फररनगर में जमींदार परिवार में हुआ था। बहुत ही छोटी सी उम्र में ही घर छोड़कर स्वतंत्र लेखन शुरू कर दिया था। 1966 से 1975 तक किशोर कानपुर यूनिवर्सिटी में सहायक और उपकुल सचिव के पद पर कार्यरत रहे। उसके बाद 1975 से 1983 तक IIT कानपुर में कुलसचिव पद की जिम्मेदारी संभाली।
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पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित हुए थे किशोर
गिरिराज किशोर के उपन्यास ‘ढाई घर' को साल 1992 में ही ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा 23 मार्च 2007 में उन्हें साहित्य और शिक्षा के लिए राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था। किशोर ने वैसे तो कई उपन्यास लिखे लेकिन साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट पहचान उन्हें ‘पहला गिरमिटिया' उपन्यास ने दिलाई, जो कि महात्मा गांधी के अफ्रीका प्रवास पर आधारित था।
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ये हैं प्रमुख कहानी संग्रह और उपन्यास
अगर उनके कहानी संग्रहों के बारे में बात की जाए तो उनमें ‘नीम के फूल', ‘रिश्ता और अन्य कहानियां, ‘पेपरवेट', ‘यह देह किसकी है?', ‘हम प्यार कर लें', ‘जगत्तारनी' एवं अन्य कहानियां, ‘शहर -दर -शहर' और ‘वल्द' ‘रोजी' प्रमुख हैं।
इसके अलावा उनके कुछ प्रमुख उपन्यासों में 'चिड़ियाघर', 'लोग', 'दो', 'दावेदार', 'यथा प्रस्तावित', 'तीसरी सत्ता', 'इंद्र सुनें', 'असलाह', 'अंर्तध्वंस', 'ढाई घर', 'परिशिष्ट', और 'यातनाघर' हैं। अपने लोकप्रिय उपन्यासों जैसे ‘ढाई घर’ और 'पहला गिरमिटिया' आदि के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा।
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