देश की इस सीक्रेट फोर्स ने ड्रैगन को किया हैरान, लद्दाख में छुड़ा दिए चीनी सेना के छक्के
भारत की इस बड़ी कामयाबी में स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का बड़ा योगदान था और इन दिनों इस फोर्स की खूब चर्चा हो रही है। इस फोर्स को विकास बटालियन और एस्टेबिलिसमेंट 22 के नाम से भी जाना जाता है।
अंशुमान तिवारी
नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख में चीन अपनी धूर्त चालों से बाज नहीं आ रहा है मगर भारतीय सेना की ओर से उसे मुंहतोड़ जवाब मिल रहा है। अभी हाल में भारतीय सेना ने पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर चीनी मंसूबों को पूरी तरह नाकाम कर दिया। भारतीय सेना ने जिस चपलता, चतुराई और बहादुरी से पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे को अपने नियंत्रण में लिया, उससे ड्रैगन भी हैरान रह गया। भारतीय सैनिकों की फुर्ती से ड्रैगन के हर हथकंडे फेल हो गए। भारत की इस बड़ी कामयाबी में स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का बड़ा योगदान था और इन दिनों इस फोर्स की खूब चर्चा हो रही है। इस फोर्स को विकास बटालियन और एस्टेबिलिसमेंट 22 के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय सेना के लिए यह बटालियन बेहद खास है और मुश्किल मिशन को पूरा करने में पूरी तरह सक्षम है।
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1962 के युद्ध के बाद हुआ था गठन
भारत और चीन के बीच 1962 में भी युद्ध हुआ था और उस युद्ध के बाद स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का गठन किया गया था। इस फोर्स को पूरी तरह गोपनीय रखा गया था और अभी भी इस फोर्स के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। शुरुआत में इस बटालियन में केवल तिब्बती मूल के लोगों को ही रखा गया था। वैसे अब इसमें तिब्बती मूल के लोगों के साथ ही गोरखा सैनिकों को भी रखा जाता है। इस फोर्स का गठन मेजर जनरल सुजान सिंह उबन ने किया था। उबन 22 माउंटेन रेजीमेंट को कमांड कर चुके थे और इसी कारण इसे एस्टैबिलिसमेंट 22 के नाम से भी जाना जाता है।
पीएमओ को रिपोर्ट करती है फोर्स
बाद में इसका नाम स्पेशल फ्रंटियर फोर्स रखा गया। वैसे इसे विकास बटालियन के नाम से भी जाना जाता है। इस फोर्स की एक खासियत यह भी है कि यह सेनाध्यक्ष को रिपोर्ट न करके कैबिनेट सचिव और पीएमओ को रिपोर्ट करती है।
इस फोर्स की अगुवाई एक इंस्पेक्टर जनरल के हाथ में होती है। स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का इंस्पेक्टर जनरल भारतीय सेना के मेजर जनरल स्तर का अधिकारी होता है।
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मुश्किल हालात में भी मिशन पूरा करने में सक्षम
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स की ट्रेनिंग इतनी कठिन होगा होती है कि इस फोर्स से जुड़े जवान मुश्किल से मुश्किल हालात में भी अपने मिशन को पूरा करने में कामयाब होते हैं। फोर्स के जवानों को कठिन ट्रेनिंग के बाद पूरी तरह फौलाद बना दिया जाता है।
इसी कारण फोर्स के जवान लद्दाख के कई इलाकों में मुश्किल हालात में भी आसानी से काम करने में सक्षम होते हैं। उनके लिए जबर्दस्त ठंड में रहना, ऊंची चोटियों पर चढ़ना या खाई में कूदना या दुश्मन को मिनटों में ढेर कर देना काफी आसान काम होता है।
फोर्स को दिया जाता है विशेष प्रशिक्षण
गठन के बाद शुरुआत में इस फोर्स को रा और अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के द्वारा ट्रेनिंग दी जाती थी मगर अब ट्रेनिंग के लिए अलग सेंटर बना दिया गया है जहां फोर्स से जुड़े जवानों को कठिन हालात से भी जूझना सिखाया जाता है।
फोर्स में पुरुष जवानों के अलावा महिलाओं को भी शामिल किया जाता है और इन महिलाओं को भी काफी मुश्किल ट्रेनिंग का सामना करना पड़ता है। स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का मुख्यालय उत्तराखंड के चकराता में है और इसमें करीब 5000 कमांडो शामिल हैं। फोर्स के जवानों को खासकर पहाड़ी इलाकों में लड़ाई के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षण दिया जाता है।
फोर्स के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी
सेना की गतिविधियों के बारे में जानकारी वैसे भी बाहर कम ही आ पाती है मगर इस स्पेशल फ्रंटियर फोर्स को लेकर काफी गोपनीयता बरती जाती है। बेहद कम लोगों को ही इस बात की जानकारी है हो पाती है कि फोर्स से जुड़े जवान किस मिशन की तैयारी में जुटे हुए हैं।
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के जवानों ने देश में कई बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया है। फोर्स की गतिविधियों को काफी संवेदनशील माना जाता है और यही कारण है कि इस बारे में बहुत कम जानकारी बाहर आ पाती है। दुश्मन देशों को भी इस फोर्स के मूवमेंट के बारे में कभी जानकारी नहीं मिल पाती।
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कई मुश्किल मिशन को दिया है अंजाम
भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 में युद्ध हुआ था और इस युद्ध में भी स्पेशल फ्रंटियर फोर्स ने हिस्सा लिया था। जानकारों के मुताबिक इस युद्ध के दौरान फोर्स के करीब 3000 जवानों को युद्ध में उतारा गया था और उन्होंने पाकिस्तानी सेना के दांत खट्टे कर दिए थे।
इसके अलावा देश के कई बड़े ऑपरेशन में भी फोर्स के जवानों ने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया है। ऑपरेशन ब्लू स्टार, कारगिल युद्ध और घाटी में कई आतंकरोधी मिशन में भी इस फोर्स का बड़ा योगदान रहा है।
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