अब सस्ता होगा पेट्रोल-डीजल: कच्चे तेल की कीमत हुई जीरो डॉलर, जानें क्यों हुआ ऐसा
भारत कच्चे तेल का बड़ा आयातक है। खपत का 85 फीसदी हिस्सा आयात के जरिए पूरा किया जाता है। ऐसे में जब भी क्रूड सस्ता होता है तो भारत को फायदा होता है। तेल जब सस्ता होता है तो आयात में कमी नहीं पड़ती बल्कि भारत का बैलेंस ऑफ ट्रेड भी कम होता है।
नई दिल्ली: आपको जानकर हैरानी होगी कि इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब कच्चे तेल का भाव नेगेटिव में चला गया है। अमेरिका के वायदा बाजार में कच्चे तेल (क्रूड ) का भाव सोमवार को जीरो डॉलर प्रति बैरल से नीचे चला गया। कोरोना वायरस (Coronavirus) संक्रमण के कारण दुनिया भर के कई देशों में कामकाज ठप है।
बता दें कि मांग पेट्रोल-डीजल की मांग कम होने के कारण क्रूड आयल की ओवर सप्लाई हो रही है जिसकी वजह से सोमवार को कच्चे तेल का भाव -37.63 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर जा पहुंचा। कच्चे तेल में यह गिरावट एक ऐतिहासिक गिरावट है जिसके बावजूद भारत में पेट्रोल और डीजल की रिटेल कीमतें प्रभावित नहीं होंगी।
यहां हम आपको बताते हैं कि कैसे तय होते हैं भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम
भारी मात्रा में भारत कच्चे तेल का आयात करता है
गौरतलब है कि भारत कच्चे तेल का बड़ा आयातक है। खपत का 85 फीसदी हिस्सा आयात के जरिए पूरा किया जाता है। ऐसे में जब भी क्रूड सस्ता होता है तो भारत को फायदा होता है। तेल जब सस्ता होता है तो आयात में कमी नहीं पड़ती बल्कि भारत का बैलेंस ऑफ ट्रेड भी कम होता है।
भारत में तेल की कीमतें तय करने का तरीका
तेल की कीमतों पर दो मुख्य बातें प्रभाव डालती हैं। एक अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमत और दूसरा सरकारी टैक्स। क्रूड ऑयल के रेट पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, मगर टैक्स सरकार अपने स्तर से घटा-बढ़ा सकती है। यानी जरूरत पड़ने पर सरकार टैक्स कम कर बढ़े दाम से कुछ हद तक जनता को फायदा पहुंचा सकती है।
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सरकार ने पेट्रोल-डीजल से पना नियंत्रण हटा लिया है
पहले देश में तेल कंपनियां खुद दाम नहीं तय करती थीं, इसका फैसला सरकार के स्तर से होता था। मगर जून 2017 से सरकार ने पेट्रोल के दाम को लेकर अपना नियंत्रण हटा लिया गया। कहा गया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिदिन उतार-चढ़ाव के हिसाब से कीमतें तय होंगी।
अमूमन जिस रेट पर हम तेल खरीदते हैं, उसमें करीब 50 फीसदी से ज्यादा टैक्स होता है। इसमें करीब 35 फीसदी एक्साइज ड्यूटी और 15 फीसदी राज्यों का वैट या सेल्स टैक्स। इसके अलावा कस्टम ड्यूटी होती है, वहीं डीलर कमीशन भी जुड़ता है। तेल के बेस प्राइस में कच्चे तेल की कीमत, उसे शोधित करने वाली रिफाइनरीज का खर्च शामिल होता है। इसलिए, क्रूड की कीमतें सीधे खुदरा कीमतों को प्रभावित नहीं करती हैं।
दुनिया में कच्चे तेल की बाढ़
कोरोना वायरस संकट के कारण कच्चे तेल की मांग में कमी आयी और तेल की सभी भंडारण सुविधाएं भी अपनी पूर्ण क्षमता पर पहुंच गई हैं। इसी समय, रूस और सऊदी अरब ने अतिरिक्त आपूर्ति के साथ दुनिया में कच्चे तेल की बाढ़ ला दी। इस दोहरी मार से तेल की कीमतें गिरकर जीरो के नीचे चली गईं।
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गिरती कीमतों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर
भारत कच्चे तेल का बड़ा आयातक होने के नाते और कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आने पर क्रूड-इंटेंसिव इकोनॉमी हासिल करता है। यह ऑयल इम्पोर्ट बिल को कम करने में मदद करता है और ट्रेड बैलेंस को बेहतर बनाने में मदद करता है। यह रुपये की वैल्यू को सपोर्ट करने में मदद करता है और महंगाई भी कंट्रोल होती है।
किसे होगा फायदा और नुकसान?
कच्चे तेल की कीमतों में आई कमी का फायदा एयरलाइंस और पेंट कंपनियों को ज्यादा होगा। इसके साथ ही इसका फायदा ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को हो सकता है, लेकिन उनके लिए यह उतना आसान नहीं है क्योंकि वे पहले से ही महंगा तेल खरीद चुके हैं और वे अभी मांग में गिरावट से भी आहत हैं। इसलिए ओएनजीसी और ओआईएल जैसी तेल उत्पादन कंपनियों को कम तेल की कम कीमतों से नुकसान होगा।
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पूरे विश्व में कोरोना के कारण लागू किये गए लॉकडाउन के चलते यातायात ठप है जिसके कारण पेट्रोल- डीजल की खपत भी कम हो गयी है जिसका असर अब पेट्रोल-डीजल के कीमतों पर दिखाई दे रहा हैं।