गहलोत सरकार को गिराना BJP के लिए आसान नहीं, सचिन के अगले कदम का इंतजार

राजस्थान कांग्रेस में सचिन पायलट की बगावत के बाद हर किसी को उनके अगले सियासी कदम का इंतजार है मगर सचिन अभी अपनी भावी राजनीति को लेकर...

Update:2020-07-16 09:36 IST

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: राजस्थान कांग्रेस में सचिन पायलट की बगावत के बाद हर किसी को उनके अगले सियासी कदम का इंतजार है मगर सचिन अभी अपनी भावी राजनीति को लेकर पत्ते नहीं खोल रहे हैं। सचिन का कहना है कि फिलहाल वे भाजपा में नहीं जा रहे मगर उनका अगला सियासी कदम क्या होगा, इसे लेकर कोई भी निश्चित रूप से कुछ कहने की स्थिति में नहीं है। सचिन की बगावत से भाजपा को लाभ तो दिख रहा है मगर अभी तक पार्टी वेट एंड वॉच की मुद्रा में ही है। दरअसल गहलोत की सरकार को गिराना भाजपा को अभी भी मुश्किल दिख रहा है और उसके बाद सरकार बनाने का काम तो और भी कठिन है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लगातार अपने बहुमत का दावा कर रहे हैं। ऐसे में राज्य की सियासत दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई है।

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सचिन खेमे ने दी गहलोत को चुनौती

कांग्रेस से बगावती तेवर अपनाने वाले सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष की ओर से कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। नोटिस का जवाब देने के लिए 17 जुलाई तक का समय दिया गया है। जानकार सूत्रों का कहना है कि नोटिस जारी होने के बाद सचिन इस मुद्दे पर कानूनी सलाह ले रहे हैं। वैसे उनके समर्थक विधायकों ने अपनी विधायकी पर खतरा देखते हुए एक बार फिर ताल ठोकते हुए गहलोत खेमे को चुनौती दी है कि वे दोबारा चुनाव जीतकर आने में सक्षम हैं।

सचिन के लिए भाजपा में राह आसान नहीं

भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि पार्टी सचिन पायलट के अगले कदम का इंतजार कर रही है। पहले इस तरह के संकेत मिल रहे थे कि सचिन भाजपा में शामिल हो सकते हैं, लेकिन अब उन्होंने खुद ही भाजपा से दूरी बनाए रखने की बात कहकर फिलहाल इन चर्चाओं पर विराम लगा दिया है। दरअसल सचिन को भी पता है कि भाजपा में शामिल होकर राजस्थान की सियासत करना आसान काम नहीं है क्योंकि भाजपा में भी उनके सामने तमाम रोड़े आएंगे। सूत्रों के मुताबिक सचिन जब तक अपने भविष्य को लेकर कोई फैसला नहीं करते हैं तब तक भाजपा की ओर से भी कोई कदम उठाए जाने की उम्मीद नहीं है।

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सचिन के नाम पर सहमति मुश्किल

राजस्थान में भाजपा की सियासत में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का पूरी तरह वर्चस्व रहा है। भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचने वालों में वसुंधरा राजे के समर्थकों की संख्या सबसे ज्यादा है। एक बड़ी समस्या यह भी है कि पायलट अगर गहलोत सरकार गिराने में कामयाब हो भी जाते हैं और भाजपा की मदद से नई सरकार बनती है तो उसका नेतृत्व कौन करेगा। वसुंधरा राजे को सचिन पायलट के नाम पर तैयार करना आसान काम नहीं है।

राजस्थान की सियासी घटनाक्रम पर अभी वसुंधरा राजे ने मुंह नहीं खोला है मगर उन्हें करीब से जानने वालों का कहना है कि वे भाजपा की सरकार में दूसरे का नेतृत्व स्वीकार करने को शायद ही तैयार होंगी।

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वसुंधरा को लेकर केंद्रीय नेतृत्व भी सहज नहीं

वसुंधरा राजे को लेकर केंद्रीय नेतृत्व भी बहुत ज्यादा सहज नहीं रहा है। वसुंधरा को राजस्थान की सियासत में जरूरत से ज्यादा ऊपरी दखल पसंद नहीं है और इसकी बानगी राज्य में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद की नियुक्ति के समय मिल चुकी है। वसुंधरा राजे के न चाहने के कारण केंद्रीय नेतृत्व चाह कर भी गजेंद्र सिंह शेखावत को राज्य भाजपा का अध्यक्ष नहीं बना सका था। तब पार्टी के वरिष्ठ नेता ओम माथुर ने बीच का रास्ता निकालते हुए मदन लाल सैनी को प्रदेश अध्यक्ष बनवाया था। राज्य भाजपा नेताओं ने अभी तक वसुंधरा राजे के साथ बैठकर रणनीति पर चर्चा नहीं की है। माना जा रहा है कि वसुंधरा के साथ बैठक के बाद ही राज्य भाजपा की ओर से अपने पत्ते खोले जाएंगे।

इसलिए दिख रहा गहलोत खेमे में उत्साह

दूसरी ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लगातार बहुमत होने का दावा कर रहे हैं। सचिन पायलट खेमे की ओर से पहले 30 विधायकों का समर्थन हासिल होने की बात कही गई थी मगर अब यह साफ हो चुका है कि सचिन पायलट के पास इतने विधायकों का समर्थन नहीं है। मौजूदा समय में सचिन के पास 19 कांग्रेस और तीन निर्दलीय विधायकों का समर्थन बताया जा रहा है। यही कारण है कि गहलोत खेमा बढ़-चढ़कर सचिन खेमे पर हमला बोल रहा है। ऐसे में भाजपा सचिन पायलट के अगले सियासी कदम का इंतजार कर रही है ताकि राजस्थान के सियासी संकट में वह अपनी भावी रणनीति तय कर सके।

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