सबरीमाला में फिलहाल जारी रहेगी महिलाओं की एंट्री, केरल में बढ़ाई गई सुरक्षा

स्मृति ईरानी ने शुक्रवार को कहा कि धार्मिक परंपराओं का सम्मान किया जाना चाहिए और यदि कोई सिर्फ सुर्खियां बनने के लिए इसका उल्लंघन करता है तो वह देश की विविधता को बड़ा नुकसान पहुंचाता है।

Update:2019-11-14 10:48 IST

नई दिल्ली: सबरीमाला केस में सुनवाई करते हुए पांच जजों की बेंच में से 3 जजों का मानना था कि इस मामले को सात जजों की बेंच को भेज दिया जाए। लेकिन जस्टिस नरीमन और जस्टिस चंद्रचूड़ ने इससे अलग विचार रखे। अंत में पांच जजों की बेंच ने 3:2 के फैसले इसे 7 जजों की बेंच को भेज दिया। हालांकि, सबरीमाला मंदिर में अभी महिलाओं की एंट्री जारी रहेगी।

जस्टिस नरीमन ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही अंतिम होता है। फैसला अनुपालन करना कोई विकल्प नहीं है।संवैधानिक मूल्यों की पूर्ति करना सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए।

सबरीमाला मसले पर फैसला पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस केस का असर सिर्फ इस मंदिर नहीं बल्कि मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश, अग्यारी में पारसी महिलाओं के प्रवेश पर भी पड़ेगा। अपने फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परंपराएं धर्म के सर्वोच्च सर्वमान्य नियमों के मुताबिक होनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला केस को बड़ी बेंच को सौंप दिया है। अब इस मामले को 7 जजों की बेंच सुनेगी। पांच जजों की बेंच ने इस मामले को 3:2 के फैसले से बड़ी बेंच को सौंप दिया है।

इससे पूर्व में सुनवाई करते हुए अदालत ने 4:1 की सहमति से यह फैसला सुनाते हुए विशेष उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश न करने देने को अवैध और असंवैधानिक करार दिया था। अदालत के फैसले से पहले केरल को हाई अलर्ट पर रखा गया है।

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यहां पढ़ें किसने क्या कहा?

स्मृति ईरानी

स्मृति ईरानी ने शुक्रवार को कहा कि धार्मिक परंपराओं का सम्मान किया जाना चाहिए और यदि कोई सिर्फ सुर्खियां बनने के लिए इसका उल्लंघन करता है तो वह देश की विविधता को बड़ा नुकसान पहुंचाता है।

केंद्रीय मंत्री दिल्ली विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम के दौरान सबरीमला मुद्दे को लेकर पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रही थीं। ईरानी से उनकी हालिया टिप्पणी को लेकर सवाल किया गया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि पूजा का अधिकार मतलब अनादर करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा मैं निजी अनुभव के आधार पर बोलती हूं और मैंने यह बात सार्वजनिक टिप्पणी करते हुए भी कही।

उन्होंने कहा कि मेरी शादी पारसी व्यक्ति से हुई है और कानून के तहत मुझे फायर टेम्पल (पारसी समुदाय का पूजा स्थल) में जाने नहीं दिया जाता और कानून से यहां मतलब संविधान से नहीं है, इसका मतलब धार्मिक मान्यताओं से है। ईरानी ने श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में एक सम्मेलन में कहा भले ही मैं कितनी सशक्त हूं, मैं पारसियों के मंदिर नहीं जा सकती हूं।

तृप्ति देसाई बोलीं- महिलाओं पर पाबंदी लगाना असंवैधानिक

भूमाता ब्रिगेड की प्रमुख तृप्ति देसाई ने सबरीमाला पर फैसले से पहले कहा था कि अब समय आ गया है कि पुराने रिवाजों को बदला जाए। महिलाओं पर पाबंदी लगाना असंवैधानिक है, गलत परंपरा को जारी नहीं रख सकते हैं। तृप्ति देसाई ने इससे पहले हाजी अली दरगाह, शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के लिए आंदोलन किया है।

सबरीमाला की बढ़ाई गई सुरक्षा, 10 हजार जवान तैनात

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखते हुए सबरीमाला मंदिर की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। मंदिर परिसर के आसपास 10 हजार पुलिस जवानों की तैनाती की गई है। इसके साथ ही 16 नवंबर से मंडलम मकर विलक्कू उत्सव शुरू हो रहा है। दो महीने तक चलने वाले इस वार्षिक तीर्थयात्रा के लिए पांच स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था की गई है।

कन्नड़ अभिनेत्री के दावे से हुई शुरुआत

2006 में मंदिर के मुख्य ज्योतिषि परप्पनगडी उन्नीकृष्णन ने कहा था कि मंदिर में स्थापित अयप्पा अपनी ताकत खो रहे हैं और वह इसलिए नाराज हैं क्योंकि मंदिर में किसी युवा महिला ने प्रवेश किया है।

इसके बाद ही कन्नड़ ऐक्टर प्रभाकर की पत्नी जयमाला ने दावा किया था कि उन्होंने अयप्पा की मूर्ति को छुआ और उनकी वजह से अयप्पा नाराज हुए। उन्होंने कहा था कि वह प्रायश्चित करना चाहती हैं।

अभिनेत्री जयमाला ने दावा किया था कि 1987 में अपने पति के साथ जब वह मंदिर में दर्शन करने गई थीं तो भीड़ की वजह से धक्का लगने के चलते वह गर्भगृह पहुंच गईं और भगवान अयप्पा के चरणों में गिर गईं। जयमाला का कहना था कि वहां पुजारी ने उन्हें फूल भी दिए थे।

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सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई थी याचिका

जयमाला के दावे पर केरल में हंगामा होने के बाद मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने के इस मुद्दे पर लोगों का ध्यान गया। 2006 में राज्य के यंग लॉयर्स असोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की।

इसके बावजूद अगले 10 साल तक महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश का मामला लटका रहा।

सुप्रीम कोर्ट ने किया था हस्तक्षेप

याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के ट्रस्ट त्रावणकोर देवासम बोर्ड से महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति न देने पर जवाब मांगा था। बोर्ड ने कहा था कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे और इस वजह से मंदिर में वही बच्चियां व महिलाएं प्रवेश कर सकती हैं, जिनका मासिक धर्म शुरू न हुआ हो या फिर खत्म हो चुका हो।

7 नवंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना रुख जाहिर किया था कि वह सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश देने के पक्ष में है।

सबरीमाला मुद्दे पर खूब हुई राजनीति

-2006 में मंदिर में प्रवेश की अनुमति से जुड़ी याचिका दायर होने के बाद 2007 में एलडीएफ सरकार ने प्रगतिशील व सकारात्मक नजरिया दिखाया था।

- एलडीएफ के रुख से उलट कांग्रेस नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार ने बाद में अपना पक्ष बदल दिया था।

- चुनाव हारने के बाद यूडीएफ सरकार ने कहा था कि वह सबरीमाला में 10 से 50 वर्ष की आयु वाली महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ हैं।

- यूडीएफ का तर्क था कि यह परंपरा बीते 1500 साल से चली आ रही है।

- बीजेपी ने इस मुद्दे को दक्षिण में पैर जमाने के मौके की तरह देखा और बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट के महिलाओं के हक में फैसले के विरोध में हजारों बीजेपी कार्यकर्ताओं ने केरल राज्य सचिवालय की ओर मार्च किया।

- महिला अधिकार संगठनों ने इसे मुद्दा बनाया साथ ही भूमाता ब्रिगेड की तृप्ति देसाई ने भी सबरीमाला मंदिर आने की बात कही है।

कोर्ट ने माना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन

11 जुलाई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक का यह मामला संवैधानिक पीठ को भेजा जा सकता है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसा इसलिए क्योंकि यह संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला है और इन अधिकारों के मुताबिक महिलाओं को प्रवेश से रोका नहीं जाना चाहिए। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने मामला संविधान पीठ को सौंप दिया था और जुलाई, 2018 में पांच जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई शुरू की थी।

महिलाओं के हक में आया ऐतिहासिक फैसला

28 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी थी। कोर्ट ने साफ कहा था कि हर उम्र वर्ग की महिलाएं अब मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमारी संस्कृति में महिला का स्थान आदरणीय है। यहां महिलाओं को देवी की तरह पूजा जाता है और मंदिर में प्रवेश से रोका जा रहा है। यह स्वीकार्य नहीं है।

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