जय हिंद नेता जी: ऐसे ही नहीं लोगों के दिलों पर करते थे राज, जादू था इनमें

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। जो इस प्रकार है "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा"

Update:2020-01-23 10:32 IST

लखनऊ: सुभाष चन्द्र बोस का जन्म आज ही के दिन 23 जनवरी 1897 को हुआ था। सुभाष चन्द्र बोस को लोग नेता जी के नाम से भी जानते हैं, भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में सबसे आगे रहने वाले बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। जो इस प्रकार है "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा" यह नारा भी उनका था जो उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया। इस नारे ने लोगों की नसों में देशभक्ति वाले खून की रफ़्तार को बढ़ा दिया था।

जब ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचरों से उन्हें ख़त्म करने का दिया आदेश

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब नेता जी ने जापान और जर्मनी से मदद लेने की कोशिश की थी तो ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचरों को 1941 में उन्हें ख़त्म करने का आदेश दिया था।

नेता जी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने 'सुप्रीम कमाण्डर' के रूप में सेना को सम्बोधित करते हुए कहा "दिल्ली चलो!" का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इम्फाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया।

ये भी देखें :अनुपम खेर ने नसीरुद्दीन शाह को दिया करारा जवाब, जानें पूरा मामला

21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया।

1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया। कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया एक भयंकर युद्ध था। इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था और यही एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ।

रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी का आशीर्वाद और शुभकामनायें मांगी

6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनायें मांगी।

नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है। जहाँ जापान में प्रतिवर्ष 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता है वहीं भारत में रहने वाले उनके परिवार के लोगों का आज भी यह मानना है कि सुभाष की मौत 1945 में नहीं हुई। वे उसके बाद रूस में नज़रबन्द थे। यदि ऐसा नहीं है तो भारत सरकार ने उनकी मृत्यु से सम्बंधित दस्तावेज़ अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं किये? नेता जी की मौत हुई थी कि नहीं ये एक बहुत बड़ा रहस्य था ।

ये भी देखें : गजब! इस वाइन को रख सकते हैं 80 साल, इसे खरीदने के लिए बेचना होगा घरबार

कोलकाता हाई कोर्ट ने खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने का दिया आदेश

16 जनवरी 2014 (गुरुवार) को कलकत्ता हाई कोर्ट ने नेताजी के लापता होने के रहस्य से जुड़े खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की माँग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिये स्पेशल बेंच के गठन का आदेश दिया।

आजाद हिंद सरकार के 75 साल पूर्ण होने पर इतिहास मे पहली बार साल 2018 मे नरेंद्र मोदी ने किसी प्रधानमंत्री के रूप में 15 अगस्त के अलावा लाल किले पर तिरंगा फहराया। 11 देशो कि सरकार ने इस सरकार को मान्यता दी थी।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों से कई बार लोहा लिया। आज भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत से जुड़े कई किस्से - कहानियां बताए जाते हैं, लेकिन पुख्ता तौर पर आज भी ये सामने नहीं आया है कि उनकी मौत कैसे हुई। वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नेताजी की मौत 18 अगस्त 1945 में एक विमान हादसे में हुई थी। आइए जानते हैं उनके बारे में।

पांच बातें नेताजी के बारे में-

1 - नेताजी का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था। वे एक संपन्न बंगाली परिवार से संबंध रखते थे। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस था। जबकि उनकी मां का नाम प्रभावती था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के एक मशहूर वक़ील थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस समेत उनकी 14 संतानें थीं। जिनमें 8 बेटे और 6 बेटियां थीं। सुभाष चंद्र उनकी 9वीं संतान और पांचवें बेटे थे।

2 - उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल से प्राप्त की। उच्च शिक्षा के लिए वे कलकत्ता चले गए। और वहां के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की।

3 - इसके बाद वे इंडियन सिविल सर्विस (ICS) की तैयारी के लिए इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय चले गए। अंग्रेजों के शासन में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत मुश्किल था।

4 - सुभाष चंद्र बोस ने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान हासिल किया। 1921 में भारत में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों का समाचार पाकर बोस भारत लौट आए और उन्होंने सिविल सर्विस छोड़ दी। इसके बाद नेताजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए थे।

5 - बता दें, वह सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा को छोड़कर देश को आजाद कराने की मुहिम का हिस्सा बन गए थे जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उनके खिलाफ कई मुकदमे दर्ज किए। जिसका नतीजा ये हुआ कि सुभाष चंद्र बोस को अपने जीवन में 11 बार जेल जाना पड़ा। वे सबसे पहले 16 जुलाई 1921 को जेल गए थे। जब उन्हें छह महीने के लिए सलाखों के पीछे जाना पड़ा था।

ये भी देखें : जानिए क्यों आरएसएस प्रचारक को मुस्लिम महिलाओं ने मुकुट पहनाया

Tags:    

Similar News