बिहार: त्योहारी खुमार के बीच चुनाव, जलेगी लालू की लालटेन या नीतीश करेंगे धमाका

बिहार में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। चुनाव आयोग की ओर से मतदान की तिथियों और चुनावी नतीजे की तारीख घोषित की जा चुकी है।

Update: 2020-09-25 15:45 GMT

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली। बिहार में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। चुनाव आयोग की ओर से मतदान की तिथियों और चुनावी नतीजे की तारीख घोषित की जा चुकी है। राज्य में तीन चरणों में 28 अक्टूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर को वोट डाले जाएंगे जबकि 10 नवंबर को नेताओं की परीक्षा का रिजल्ट निकलेगा।

इस चुनावी कार्यक्रम में एक बात यह भी काबिले गौर है कि जब लोग त्योहारी खुमार में डूबे होंगे तब विभिन्न पार्टियों के प्रत्याशी वोटों का समीकरण बैठाने के लिए जूझते नजर आएंगे। 14 नवंबर को दीपावली का त्योहार है। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि इस बार दीपावली में लालू अपनी लालटेन से उजाला बिखेरेंगे या नीतीश कोई बड़ा धमाका करेंगे।

प्रत्याशियों के सामने होगी यह दिक्कत

चुनाव आयोग की ओर से की गई घोषणा के मुताबिक बिहार में पहले चरण का मतदान 28 अक्टूबर को होगा। दो और चरणों को भी देखा जाए तो राज्य विधानसभा का पूरा चुनाव दशहरे से दिवाली के बीच पूरा होगा।

17 अक्टूबर को शारदीय नवरात्र शुरू हो जाएगा। अष्टमी, नवमी और दशमी के दिनों में जब लोग घरों में पूजा पाठ में जुट जाते हैं, उन दिनों के दौरान चुनाव प्रचार चरम पर होगा। 25 अक्टूबर को देशभर में दशहरा का त्योहार मनाया जाएगा और पहले चरण का चुनाव प्रचार 26 अक्टूबर को समाप्त होगा। ऐसे में प्रत्याशियों के सामने चुनाव प्रचार में आने वाली दिक्कतों को आसानी से समझा जा सकता है।

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चुनाव जीतने वालों की रोशन होगी दीपावली

चुनाव आयोग की ओर से तय किए गए कार्यक्रम के मुताबिक 10 नवंबर को बिहार विधानसभा के चुनावी नतीजे घोषित किए जाएंगे और उसके 4 दिन बाद ही दीपावली का त्योहार मनाया जाएगा। ऐसे में चुनाव जीतने वालों की दीपावली इस बार रोशन हो जाएगी जबकि चुनाव हारने वालों के चेहरे पर दीपावली के दिन भी मायूसी ही छाई रहेगी।

दोनों गठबंधनों में रूठने और मनाने का सिलसिला

बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला एनडीए और विपक्षी महागठबंधन के बीच ही होना है, लेकिन दोनों गठबंधनों में रूठने और मनाने का सिलसिला चल रहा है।

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एनडीए में चिराग पासवान की अगुवाई वाली लोजपा मन मुताबिक सीटें न मिल पाने के कारण नाराज हैं तो विपक्षी महागठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा की अगुवाई वाली रालोसपा ने अलग राह पर चलने का फैसला कर लिया है। चुनाव तारीखों का एलान होने तक दोनों गठबंधनों में सीटों को लेकर स्थिति साफ नहीं हो सकी है।

बड़े दलों में भी सीटों का बंटवारा नहीं

छोटे दलों को छोड़ दिया जाए तो एनडीए में भाजपा और जेडीयू तक के बीच में सीट शेयरिंग का आंकड़ा अभी तक नहीं खुल सका है। अभी तक यह तस्वीर नहीं साफ हो सकी है कि दोनों प्रमुख दल कितनी-कितनी सीटों पर चुनाव मैदान में उतरेंगे।

दूसरी ओर यही स्थिति विपक्षी महागठबंधन की भी है। अभी तक यह नहीं साफ हो सका है कि महागठबंधन के दोनों प्रमुख दल राजद और कांग्रेस प्रत्याशी कितनी-कितनी सीटों पर भाग्य आजमाएंगे।

दोनों के सामने अलग-अलग चुनौतियां

विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन दोनों के सामने में अलग-अलग तरह की चुनौतियां दिख रही हैं। नीतीश कुमार 15 साल से सूबे की सत्ता संभाले हुए हैं और ऐसे में उन्हें एंटी इनकंबेंसी के फैक्टर का सामना करना पड़ सकता है।

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दूसरी ओर राजद के लिए यह ऐसा पहला चुनाव होगा जिसमें लालू की सक्रियता नहीं दिखेगी। लालू की नामौजूदगी में लोगों का भरोसा जीतना राजद नेता तेजस्वी यादव के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा। इसके साथ ही सीट शेयरिंग के मुद्दे पर और सहयोगी दलों को साधना भी उनके लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।

हम नेता जीतन राम मांझी पहले ही बिदककर एनडीए में जा चुके हैं और अब रालोसपा ने भी बागी तेवर अपना लिया है। ऐसे में महागठबंधन को सहेजना भी तेजस्वी के लिए बड़ी चुनौती है।

वर्चुअल चुनाव प्रचार भी बड़ी चुनौती

कोरोना संकट काल में हो रहा यह चुनाव हाईटेक होगा और ऐसे में मतदाताओं तक पहुंच बनाना भी सभी दलों के नेताओं के लिए बड़ी चुनौती होगा। एनडीए ने वर्चुअल चुनाव प्रचार के लिए तैयारियां पहले शुरू कर दी थीं और इस मामले में वह महागठबंधन से आगे निकल चुका है।

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एनडीए की ओर से कई वर्चुअल रैलियों का आयोजन किया जा चुका है। आरजेडी ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाना शुरू किया है। ऐसे में वही दल बाजी मारने में कामयाब होगा जो वर्चुअल चुनाव प्रचार में बाजी मारेगा और जिसके कार्यकर्ता घर-घर दस्तक देने में कामयाब होंगे।

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