वोटकटवा पार्टियों ने बढ़ाई बड़े सियासी दलों की मुसीबत, काट खोजने की कोशिश

महागठबंधन के नेताओं के लिए सत्ता विरोधी मतों का बंटवारा सबसे बड़ी चिंता का विषय बन गया है। यही कारण है कि छोटे दलों से चुनाव के मैदान में होने वाले सियासी नुकसान से बचने के लिए राजद और कांग्रेस की ओर से आक्रामक रणनीति बनाई जा रही है।

Update: 2020-10-20 04:00 GMT

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली। बिहार में सत्ता की दौड़ में जुटी छोटी पार्टियों ने बड़े सियासी दलों की मुसीबतें बढ़ा दी हैं। राज्य की तमाम सीटें ऐसी हैं जहां छोटे दलों के उम्मीदवार जीतने में भले ही सक्षम न हों मगर वे बड़े सियासी दलों के मजबूत उम्मीदवारों के लिए चिंता का कारण बन गए हैं।

लोजपा ने केवल जदयू को ही परेशान नहीं कर रखा है बल्कि महागठबंधन के उम्मीदवार भी उससे परेशान है। इसके साथ ही रालोसपा की अगुवाई वाले गठबंधन और पप्पू यादव की जनाधिकार पार्टी जैसे छोटे दलों की वोट काटने की क्षमता से बड़े सियासी दल परेशान दिख रहे हैं।

सत्ता विरोधी मतों के बंटवारे से चिंता

महागठबंधन के नेताओं के लिए सत्ता विरोधी मतों का बंटवारा सबसे बड़ी चिंता का विषय बन गया है। यही कारण है कि छोटे दलों से चुनाव के मैदान में होने वाले सियासी नुकसान से बचने के लिए राजद और कांग्रेस की ओर से आक्रामक रणनीति बनाई जा रही है। सूबे में पहले चरण के मतदान के लिए अब कम ही दिन बाकी रह गए हैं और ऐसे में सभी सियासी दलों ने चुनाव अभियान में पूरी ताकत झोंक रखी है। बड़े सियासी दल वोटकटवा पार्टियों की क्षमता का आकलन करने के साथ ही अपने उम्मीदवार की चुनावी संभावनाओं पर पड़ने वाले असर पर भी नजर गड़ाए हुए हैं।

कई मजबूत नेता छोटे दलों के टिकट पर मैदान में

कांग्रेस के एक नेता का कहना है कि भले ही एनडीए की ओर से एक बार फिर सत्ता में वापसी का दावा किया जा रहा हो मगर जमीनी हकीकत इससे अलग दिख रही है। नीतीश कुमार 15 साल से राज्य के मुख्यमंत्री बने हुए हैं और ऐसे में एनडीए को सत्ता विरोधी रुझान का खामियाजा जरूर भुगतना पड़ेगा।

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वैसे कांग्रेस के इस नेता ने यह बात स्वीकार की है कि बड़ी पार्टियों के टिकट से वंचित कई प्रभावशाली चेहरे छोटे दलों के टिकट पर चुनाव मैदान में उतर गए हैं। इस कारण कई सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय बन गया है। ऐसे में सबसे बड़ी जरूरत सत्ता विरोधी मतों का बंटवारा रोकने की है।

लोजपा जदयू के साथ महागठबंधन के लिए भी सिरदर्द

लोजपा की ओर से उतारे गए उम्मीदवारों ने सिर्फ जदयू का ही सिरदर्द नहीं बढ़ा रखा है बल्कि जातिगत और सामाजिक समीकरणों के चलते लोजपा कई सीटों पर कांग्रेस और राजद के लिए भैया मुसीबत का कारण बन गई है।

हालांकि लोजपा मुखिया चिराग पासवान ने जदयू कोटे वाली सीटों पर ही अधिकांश उम्मीदवार उतारे हैं और वे लगातार नीतीश कुमार पर ही हमले बोल रहे हैं मगर सत्ता विरोधी मतों के बंटवारे के कारण वह राजद और कांग्रेस उम्मीदवारों की चुनावी संभावनाओं में भी पलीता लगा रहे हैं।

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कांग्रेस और राजद नेताओं का आकलन है कि त्रिकोणीय मुकाबले वाली सीटों पर नीतीश की सत्ता से नाराज मतों का बंटवारा होगा और इस लिहाज से लोजपा महागठबंधन उम्मीदवारों को भी नुकसान पहुंचाएगी।

राजद और कांग्रेस की आक्रामक रणनीति

इसी कारण और राजद और कांग्रेस ने आक्रामक रणनीति अपनाते हुए लोजपा समेत छोटी पार्टियों पर भी हमला शुरू कर दिया है। महागठबंधन की ओर से सीएम के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने पिछले दो दिनों के दौरान अपनी चुनावी सभाओं में लोजपा समेत छोटी पार्टियों पर भी जोरदार हमला बोला।

उनका कहना था कि मतदाताओं को इन दलों को अपना मत देकर अपना कीमती वोट बर्बाद नहीं करना चाहिए क्योंकि इन वोटकटवा पार्टियों को वोट देने से एनडीए उम्मीदवारों को मजबूती मिलेगी।

नीतीश के लिए भी बढ़ी मुसीबत

लोजपा ने कई सीटों पर जदयू उम्मीदवारों के लिए भी मुसीबत खड़ी कर दी है। हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने काम और बिहार की पांच साल और सेवा के लिए मत देने की अपील कर रहे हैं मगर पार्टी के नेता लोजपा उम्मीदवारों की काट ढूंढने में भी जुटे हुए हैं।

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नीतीश कुमार शुरुआत से ही लोजपा पर सीधे हमले करने से परहेज करते रहे हैं मगर पार्टी के दूसरी कतार के नेता लगातार लोजपा पर हमला करने में जुटे हुए हैं।

रालोसपा का फ्रंट भी मुसीबत का कारण

पहले महागठबंधन में शामिल रालोसपा ने आखिरकार अलग रास्ता चुन लिया और रालोसपा की अगुवाई में नया गठबंधन चुनाव मैदान में उतरा हुआ है। ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट में बसपा और एआईएमआईएम जैसी पार्टियां शामिल है। इस फ्रंट ने भी महागठबंधन की चिंता बढ़ा रखी है।

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एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी का सीमांचल में असर माना जाता है। इस इलाके में राजद और कांग्रेस का मजबूत आधार है मगर यह फ्रंट महागठबंधन की चिंताएं बढ़ा रहा है। इसके साथ ही रालोसपा के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा का कुशवाहा समाज में अच्छा असर माना जाता है और उपेन्द्र कड़े मुकाबले वाली सीटों पर नीतीश की पार्टी को भी नुकसान पहुंचाते दिख रहे हैं।

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