यूपी विधानसभा चुनाव: गैरभाजपा दलों को कितना नुकसान पहुंचाएंगे अरविंद केजरीवाल
उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपना ठिकाना तलाश रही आम आदमी पार्टी ने योगी सरकार के भ्रष्टाचार को लेकर तीखे तेवर दिखाए हैं। पार्टी के इस तेवर ने उसे जनाधार बढ़ाने में भी मदद की है।
लखनऊ: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के यूपी विधानसभा चुनाव लड़ने के ऐलान का तीखा जवाब भले ही भाजपा खेमे से आया है लेकिन केजरीवाल ने उत्तर प्रदेश के गैरभाजपा दलों की बेचैनी बढ़ा दी है। दिल्ली में भाजपा से लडऩे वाले केजरीवाल राजनीति के धरातल पर जहां खड़े होते हैं वह गैरभाजपा दलों के जनाधार वाली जमीन है। केजरीवाल के चुनाव लड़ने पर गैरभाजपा मतों में बंटवारा होगा और इसका सीधा फायदा भाजपा को होने जा रहा है।
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पार्टी के इस तेवर ने उसे जनाधार बढ़ाने में भी मदद की है
उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपना ठिकाना तलाश रही आम आदमी पार्टी ने योगी सरकार के भ्रष्टाचार को लेकर तीखे तेवर दिखाए हैं। पार्टी के इस तेवर ने उसे जनाधार बढ़ाने में भी मदद की है। पिछले महीनों में बसपा, कांग्रेस समेत कई अन्य दलों के लोगों ने आम आदमी पार्टी (आप )का दामन थामा है। शायद यही वजह है कि पंचायत चुनावों की तैयारी में जुटी आप ने एकाएक विधानसभा चुनाव में भी कूदने का ऐलान कर दिया है।
पार्टी नेतृत्व को समझ में आने लगा है कि उत्तर प्रदेश के गैरभाजपा दल जिस तरह भाजपा सरकार के आगे नतमस्तक हैं। सीबीआई जांच और ईडी के डर से सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने से कतरा रहे हैं ऐसे में केजरीवाल टीम के लिए राजनीति का सुनहरा अवसर है। उत्तर प्रदेश में पिछले कई महीनों के दौरान केवल कांगे्रस पार्टी ही योगी सरकार को ललकारती दिखाई दी है। अन्य राजनीतिक दलों का सारा आक्रोश सोशल मीडिया तक ही सीमित है। ऐसे में संजय सिंह ने आप के कार्यकर्ताओं को योगी सरकार के खिलाफ खड़ा कर दिया है।
गैरभाजपा दलों के मतों में होगा बंटवारा
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में भाजपा को दो बार सत्ता में आने से रोका है लेकिन पार्टी का जो राजनीतिक ताना-बाना है वह पूरी तरह से गैरभाजपा मतों पर टिका है। आप आदमी पार्टी में अल्पसंख्यकों खास तौर पर मुस्लिमों को भी पूरा अवसर मिल रहा है। केजरीवाल ने जहां हनुमान मंदिर में जाकर माथा टेका वहीं दरगाहों में भी फूल चढ़ाते नजर आए हैं। यूपी में भी जब उनकी पार्टी चुनाव मैदान में उतरेगी तो वह गैरभाजपा मतदाताओं को ही प्रभावित करने में समर्थ होगी।
भाजपा समर्थक मतदाता जिस वैचारिक और संस्कार भूमि पर उससे जुड़े हैं उनसे अलग करने की राजनीति क्षमता फिलहाल किसी भी राजनीतिक दल में दिखाई नहीं दे रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा व उसके सहयोगियों को लगभग 42 प्रतिशत मत मिले थे। यानी 58 प्रतिशत मतों पर ही गैरभाजपा दलों का आधार टिका है। इसमें बसपा का सबसे बड़ा शेयर लगभग 22 प्रतिशत है जबकि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर 28 प्रतिशत मत जुटाए थे।
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कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के मत प्रतिशत में हाल ही के उपचुनावों के दौरान इजाफा हुआ है। ऐसे में आम आदमी पार्टी इसी जनाधार में सेंध लगाएगी। कांग्रेस, सपा और केजरीवाल ने अगर बिहार की तर्ज पर महागठबंधन बना लिया तो मुमकिन है कि सूरत बदल जाए अन्यथा भले ही भाजपा के मंत्री और मुख्यमंत्री का केजरीवाल, संजय सिंह को लेकर कड़ा बयान आ रहा हो, केजरीवाल के चुनाव लडऩे से उन्हें कोई नुकसान होने वाला नहीं है।
विधानसभा चुनाव 2017 में राजनीतिक दलों का प्रदर्शन
समाजवादी पार्टी व कांग्रेस- 28.07
बसपा - 22.23
भाजपा व सहयोगी दल- 41.35
रिपोर्ट- अखिलेश तिवारी
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