बिहार चुनाव: सीटों के बंटवारे में उलझा महागठबंधन, सबकी अपनी-अपनी दावेदारी
बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन और राजद नेता तेजस्वी यादव की अगुवाई वाले विपक्षी महागठबंधन ने एक-दूसरे को पटखनी देने के लिए कमर कस ली है।
अंशुमान तिवारी
नई दिल्ली। बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए सभी सियासी दलों ने अपनी गोटियां बिछानी शुरू कर दी हैं। चुनाव आयोग की दो सदस्यीय टीम ने बिहार का दौरा भी शुरू कर दिया है और माना जा रहा है कि जल्द ही आयोग की ओर से विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया जाएगा। राज्य में नीतीश कुमार की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन और राजद नेता तेजस्वी यादव की अगुवाई वाले विपक्षी महागठबंधन ने एक-दूसरे को पटखनी देने के लिए कमर कस ली है।
विपक्षी महागठबंधन में ज्यादा से ज्यादा सीटें हथियाने के लिए मारामारी शुरू हो गई है और महागठबंधन में शामिल छोटे दलों ने ज्यादा सीटों पर दावेदारी पेश कर मुसीबतें और बढ़ा दी हैं। हालांकि राजद और गठबंधन के दूसरे प्रमुख दल कांग्रेस की ओर से छोटे दलों को ज्यादा तरजीह नहीं दी जा रही है।
सभी दलों की नजरें ज्यादा सीटों पर
विपक्षी महागठबंधन में राजद और कांग्रेस के अलावा रालोसपा, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भाकपा माले ज्यादा से ज्यादा सीटें पाने की कोशिश में जुटी हुई हैं।
सियासी जानकारों का कहना है कि बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से राजद अपने लिए कम से कम 150 सीटें रखना चाहती है। राजद बाकी सीटें महागठबंधन में शामिल अन्य दलों के लिए छोड़ना चाहती है। दूसरी ओर कांग्रेस की नजर 80 सीटों पर टिकी हुई है।
इस बार बदले हुए हैं समीकरण
2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू, राजद और कांग्रेस का महागठबंधन था। उस चुनाव में जदयू और कांग्रेस ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा था जबकि कांग्रेस ने 41 सीटों पर किस्मत आजमाई थी। इस बार के विधानसभा चुनाव में समीकरण पूरी तरह बदले हुए हैं और जदयू भाजपा व लोजपा के साथ एनडीए में है।
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ऐसी स्थिति में महागठबंधन में राजद के बाद कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी है। कांग्रेस इस बार वही दर्जा आना चाहती है जो पिछले चुनाव में जदयू को हासिल था। कांग्रेस दे रही लोकसभा चुनाव का तर्क
कांग्रेस की ओर से पिछले लोकसभा चुनाव का तर्क भी दिया जा रहा है। कांग्रेस का कहना है कि कम सीटें देने के बावजूद कांग्रेस महागठबंधन की ओर से एक सीट जीतने में कामयाब रही थी जबकि राजद को किसी भी सीट पर कामयाबी नहीं मिली थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह का भी कहना है कि इस बार पार्टी 80 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरेगी।
बातचीत से नहीं सुलझ रहा मामला
विधानसभा चुनाव से पहले राजद और कांग्रेस ने सीटों के बंटवारे को लेकर कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है। इससे रालोसपा, वीआईपी और वामपंथी दलों के नेताओं में घबराहट दिख रही है। सीटों के बंटवारे पर सीपीआई और सीपीएम नेताओं की राजद नेताओं से दो दौर की बातचीत हो चुकी है।
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भाकपा माले की इस बाबत राजद नेताओं से तीन दौर की बातचीत हो चुकी है। इसके बावजूद महागठबंधन में फंसा सीटों का पेंच नहीं सुलझ पा रहा है।
वामदलों को नहीं मिलेंगी ज्यादा सीटें
वामपंथी दलों को लेकर समस्या फंसी हुई है कि सीपीआई और सीपीएम की ओर से 45 सीटों पर दावेदारी की गई है। वामपंथी दलों ने इस बाबत राजद को सूची सौंप दी है मगर राजद वामदलों को इतनी ज्यादा सीटें देने के लिए तैयार नहीं है।
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राजद की ओर से इस संबंध में वामपंथी दलों को बताया भी जा चुका है। अब देखने वाली बात यह होगी कि दोनों पक्षों के बीच आखिर कितनी सीटों पर सहमति बनती है।
रालोसपा और वीआईपी ने भी फसाया पेंच
विपक्षी महागठबंधन में सीपीआई और सीपीएम के अलावा रालोसपा, वीआईपी और भाकपा माले को लेकर भी सीट बंटवारे का मामला फंसा हुआ है। रालोसपा के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा ने 39 सीटों पर दावेदारी पेश की है जबकि वीआईपी के मुखिया मुकेश साहनी भी 25 सीटों की मांग पर अड़े हुए हैं। उधर भाकपा माले ने इन दोनों से भी आगे निकलते हुए 50 सीटों पर दावेदारी कर दी है।
राजद ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं
सियासी जानकारों का कहना है कि राजद नेतृत्व रालोसपा, वीआईपी और भाकपा माले को इतनी ज्यादा सीटें देने के लिए तैयार नहीं है। राजद की ओर से इस इस संबंध में इन दलों को इशारा भी कर दिया गया है। राजद नेतृत्व का मानना है कि ये दल अपनी जातियों से जुड़े वोट भी ट्रांसफर कराने में पूरी तरह सक्षम नजर नहीं आ रहे हैं।
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लालू के दखल से ही सुलझेगा मामला
जानकारों का कहना है कि विपक्षी महागठबंधन में सीटों को लेकर फंसा पेंच लालू यादव के दखल के बिना नहीं सुलझता दिख रहा है। सीट शेयरिंग के पूरे मामले पर लालू प्रसाद यादव की गहरी नजर है। जानकारों का कहना है कि उनके निर्देश पर ही छोटे दलों को ज्यादा महत्व नहीं दिया जा रहा है।
राजद नेतृत्व ने साफ कर दिया है कि छोटे दलों को अपनी ताकत के हिसाब से ही विधानसभा की सीटें मांगनी चाहिए। यही कारण है कि छोटे दलों को दावेदारी के अनुरूप सीटें मिलने की संभावना नहीं दिख रही है
सीटों का बंटवारा राजद के लिए बड़ी चुनौती
विपक्षी महागठबंधन में सबसे प्रमुख दल होने के कारण राजद के सामने किसी को नाराज किए बिना सीट शेयरिंग के फार्मूले को सुलझाना बड़ी चुनौती बन गया है। देखने वाली बात यह होगी कि राजद नेता तेजस्वी यादव और राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह सीट शेयरिंग की समस्या को सुलझाने में कहां तक कामयाब हो पाते हैं।
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नीतीश के सामने तेजस्वी की अग्निपरीक्षा
दूसरी ओर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए का गठबंधन एकजुट दिखाई दे रहा है। हालांकि इस गठबंधन में भी लोजपा के मुखिया चिराग पासवान ज्यादा सीटें पाने की जुगत में लगे हुए हैं, लेकिन माना जा रहा है कि भाजपा नेताओं के हस्तक्षेप से उन्हें मना लिया जाएगा।
राजद के सामने नीतीश की खामियों को उजागर करने की बड़ी चुनौती है। तेजस्वी यादव कोरोना संकट काल में लगातार नीतीश पर हमले करते रहे हैं, लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि वह इन हमलों के जरिए कहां तक मतदाताओं को प्रभावित कर पाते हैं और उनका वोट हासिल कर पाते हैं।
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