नेपाल के PM ओली खेल रहे खतरनाक खेल

नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली शतरंज खेलने के शौकीन हैं। ओली को राजनीति में भी शतरंजी चालें चलने का खिलाड़ी माना जाता है।

Update:2020-06-23 20:57 IST

लखनऊ: नेपाल के प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली अपने आप को कम्यूनिस्ट नेता स्टालिन का प्रशंसक बताते हैं। अपने आपको सेक्यूलर बताने वाले ओली समय के अनुरूप अपनी श्रद्धा भी बदलते आए हैं। शतरंज खेलने के शौकीन ओली को राजनीति में शतरंजी चालें चलने का खिलाड़ी माना जाता है। इन दिनों उनके तेवर चीन के प्रति कुछ ज्यादा ही नरम और भारत के प्रति कुछ ज्यादा ही टेढ़े नजर आ रहे हैं। इसमें भी ओली की कोई शतरंजी चाल है।

ओली की नक्सलवादी पृष्ठभूमि

नेपाल के प्रधानमंत्री और नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष केपी ओली आज नेपाल की सबसे स्थिर सरकार के सर्वेसर्वा हैं। नेपाल में एक दौर ऐसा था जब कोई भी सरकार दो साल से ज्यादा चल नहीं पाती थी। यही नहीं सभी सरकारों को अपने कार्यकाल में लगातार उथलपुथल का सामना भी करना पड़ता रहता था। ऐसे में ओली ने सरकार के नैया को ठीक से खेया है। ओली के अलावा नेपाली कांग्रेस के जीपी कोइराला ही लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे और अपनी सरकार चला पाए। कोइराला का कार्यकाल मई 1991 से नवंबर 1994 तक रहा था। 22फरवरी 1952 को जन्मे ओली नेपाल के 41 वें प्रधानमंत्री हैं।

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एक गरीब कुमाऊनी ब्राह्मण परिवार में जन्मे ओली का पालन पोषण एक अमीर नक्सलवादी नेता रामनाथ दहल के घर में हुआ था। दहल नेपाल के झापा जिले के एक गाँव में रहते थे जो सीमापार के पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के पास लगता था। सत्तर के दशक में नक्सलवाद चरम पर था। बंगाल की तरह नेपाल में झापा के कम्यूनिस्ट मारकाट मचाए हुये थे। 19 साल की उम्र में ओली भी इसी परिवेश में इसी हिंसक विचारधारा के साथ आगे बढ़ते गए। लेकिन झापा आंदोलन बहुत दिन नहीं चल पाया और सरकार ने इसे दबा दिया। नक्सलवादी हिंसक गतिविधियों में लिप्त होने के कारण ओली को 1973 गिरफ्तार किया गया और अगले 14 साल उन्होने जेल में काटे।

90 के दशक में चमका सितारा

ओली का सितारा नब्बे के दशक में चमका जब 1990 में नेपाल में बहुदलीय व्यवस्था बहाल हुई। इस दौर में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफ़ाइड मार्कसिस्ट लेनिनिस्ट) यानी सीपीएन (यूएमएल) एक ताकतवर राजनीतिक फोर्स बन कर उभरी। इस पार्टी में मनमोहन अधिकारी जैसे पक्के मार्क्सवादी और मदन भण्डारी जैसे कट्टर लेनिनवादी नेता शामिल थे। इस पार्टी की युवा शाखा प्रजातांत्रिक राष्ट्रीय युवा संघ के संस्थापक अध्यक्ष थे खड्ग प्रसाद शर्मा ओली। यहीं से ओली तेजी से सीधी चढ़ते चले गए।

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इसी क्रम में ओली अपनी पार्टी के प्रचार प्रमुख बना दिये गए जहां उनका काम रणनीति बनाना था। 90 के दशक में सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस के विरोध में ओली की रणनीति काफी सफल रही जिससे उनका सिक्का अति वामपंथियों के बीच कायदे से जम गया। उन दिनों नेपाल में माओवादी क्रांति सुलगना शुरू हो चुकी थी और अति वामपंथियों को ओइली जैसा नेता रास आ रहा था। आगे चल कर यूएमएल ने संसदीय व्यवस्था का रास्ता अख़्तियार किया और चुनावों में शिरकत की।

2015 में ओली बने प्रधानमंत्री

नेपाल में 1990 के दशक के मध्य में माओवादी आंदोलन के परवान चढ़ने, 2001 में नेपाल के राजा के महल में नरसंहार, 2002 के उत्तरार्ध में राजा ज्ञानेन्द्र के अधीन नेपाल में पूर्ण राजशाही की वापसी, ये सब ऐसे घटनाक्रम थे जिसने नेपाल की राजनीति में जबर्दस्त बदलाव ला दिये। नतीजतन 2006 में फिर जन आंदोलन शुरू हुआ जिसकी अगुवाई मुख्यधारा के दल और माओवादी, दोनों ही कर रहे थे। इस गठबंधन को भारत के समर्थन से बनाया गया था। जल्द ही नेपाल एक गणराज्य बन गया और चुनाव घोषित हुये।

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नई संसद के चुनाव में ओली दो क्षेत्रों से हार गए। यूएमएल, माओवादियों और नेपाली कांग्रेस के बाद तीसरे स्थान पर रही। 2014 में ओली यूएमएल के अध्यक्ष बने और प्रथम बार नेपाल में लोकतान्त्रिक संविधान लागू होने पर यूएमएल के उम्मीदवार ओली नेपाल के प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए। ओली को 14 राजनीतिक दलों के 337 सांसदों और एक निर्दलीय संसद का समर्थन प्राप्त था। 12 अक्टूबर 2015 को ओली प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए।

मधेसी आंदोलन

ओली के पीएम बनने के साथ, नेपाल में मधेसियों ने अपने अधिकार के आंदोलन शुरू कर दिया। मधेसी यानी भारतीय मूल के नेपाली जो मैदानी क्षेत्र में रहते हैं, वो चाहते थे कि सत्ता में उनको भी हिस्सेदारी मिले। ओली इसके विरोधी थे सो मधेसियों ने आंदोलन छेड़ दिया। जिसके परिणामस्वरूप नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में सामानों की आवाजाही रुक गई। इस आंदोलन को भारत का समर्थन प्राप्त था।

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मधेसी आंदोलन के खिलाफ नेपाल की राजधानी काठमांडू में भारी आक्रोश के साथ राष्ट्रवादी भावना उभर कर सामने आ गई। ओली सोची समझी रणनीति के तहत 2016 में चीन गए और वहाँ कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए जिनमें चीन से सामानों की आवाजाही का करार भी शामिल था। इस बीच नेपाली राजनीति में उठापटक के बाद 24 जुलाई 2016 को अल्पमत में आ जाने पर ओली ने राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र सौंप दिया।

निर्णायक विजय

नेपाली राष्ट्रवाद और भारत विरोध की लहर पर तैर कर ओली पहाड़ी क्षेत्रों में सबसे लोकप्रिय नेता बन गए। 2017 के संसदीय चुनावों में यूएमएल की निर्णायक विजय के बाद ओली की स्थिति और भी मजबूत हो गई। इस चुनाव में ओली की पार्टी को पुष्पा कुमार दहल की कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) का समर्थन प्राप्त था। एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में यूएमएल और सीपीएन (एमसी) का विलय हो कर नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी बना दी गई जिसे संसद में दो तिहाई बहुमत हासिल था।

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अब ओली दूसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बन गए। प्रधानमंत्री पद के लिए ओली का समर्थन यूसीपीएन-माओवादी, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी नेपाल और मधेशी राइट्स फोरम डेमोक्रेटिक के अलावा 13 अन्य छोटी पार्टियों ने किया था। मजे की बात है कि शेर बहादुर देउबा सीपीएन (माओवादी सेंटर) के समर्थन से छह जून 2016 को नेपाल के 40वें प्रधानमंत्री बने थे।

कभी भारत के समर्थक भी थे

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ओली और भारत के बीच संबंध हमेशा से खराब नहीं रहे हैं। एक समय में तो ओली को भारत का आदमी कहा जाता था। ओली ने ही 1996 की ऐतिहासिक महाकाली संधि की थी जिसमें महाकाली नदी पर दोनों देशों के बराबर अधिकार और इस नदी के संयुक्त विकास की बात काही गई थी। इस संधि को भारत के प्रति वफादारी का निशान माना गया था। पीएम बनने से पहले जब ओली सरकारों में मंत्री रहे थे तब उन्होने भारत सरकार के साथ अच्छे संबंध स्थापित किए।

प्रचंड से खटकी

दस साल के गृह युद्ध के बाद 2008 में नेपाल में पहली संसद की स्थापना हुई और सीपीएन (एमसी) के अध्यक्ष पुष्प कुमार दहल उर्फ प्रचंड देश के प्रधानमंत्री बने। प्रचंड की अगुवाई में माओवादियों ने नेपाल की राजशाही के खिलाफ आंदोलन चलाया था। ओली लगातार माओवादी पार्टी के विरोधी रहे थे सो उनको प्रचंड की विजय पसंद नहीं आई। समझा जाता है कि ओली ने प्रचंड को बदनाम करने और उनकी सरकार गिराने के लिए पूरी ताकत लगा दी। जब प्रचंड ने सेना प्रमुख जनरल रुक्मांगद कोतवाल को बर्खास्त करने की कोशिश की तो ओली ने राजनीतिक दलों और प्रभावशाली लोगों की गोलबंदी की कि वे राष्ट्रपति राम बरन यादव पर दबाव डाल कर प्रचंड की योजना को विफल कर दें।

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इन तिकड़मों का नतीजा ये हुआ कि प्रचंड को मई 2009 में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। प्रचंड अपने भारत विरोधी रुख के लिए जाने जाते थे। समझा जाता है कि ओली ने प्रचंड की जगह माधव कुमार नेपाल को प्रधानमंत्री पद पर स्थापित करने के लिए भारत की सहायता ली थी। राजनीति में स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होते, इस कथनी को सच बनाते हुये ओली और प्रचंड फिर साथ आ गए। इनके गठबंधन की बदौलत अक्तूबर 2015 में ओली प्रधानमंत्री बन गए। प्रचंड को अपनी राजनीति फिर से चमकाने का मौका मिल गया। सितंबर 2015 में चार महीने तक चली मधेसियों की नाकेबंदी के दौरान ओली और प्रचंड ने खूब भारत विरोधी प्रचार चलाया।

चीन का साया

नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी के क्षसंकाल में नेपाल और चीन के बीच रिश्ते काफी प्रगाढ़ हुये हैं। चीन ने इस सरकार में नेपाल के ढेरों विकास परियोजनाओं में हिस्सेदारी की है और नेपाल को सहायता में वृद्धि की है। ओली और प्रचंड दोनों ही भारत विरोधी रुख अपना कर चीन की तरफ देख रहे हैं।

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कुछ दिन पहले ही प्रचंड ने चीन की जमकर तारीफ करते हुये कहा कि चीन के पास वैश्विक संकट के इस दौर में उचित नेत्रत्व करने की क्षमता है। प्रचंड ने कहा कि नेपाल अमेरिका के साथ 500 मिलियन डालर के सहायता ग्रांट समझौते को स्वीकार नहीं करेगा। प्रचंड ने ये भी कहा कि नेपाल के साथ चीन के रिश्ते समय की परीक्षा में खरे उतरे हैं।

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