हाथी चंचलकली के किस्सेः रुला देती है यादें, बड़ा प्यारा था वो समय
हाथी तक़रीबन तीन सौ किलो तक खाना खा जाता था। डेढ़ सौ लीटर पानी पी जाता था। तब पानी के लिए भी कुएं या हैंडपंप ही होते थे। हाथी तालाब का पानी नहीं पीता था हाँ वो तालाब में नहाता ज़रूर था। हाथी को रोज़ नहाने की तलब भी होती थी और ज़रूरत भी।
योगेश मिश्र
उन्नीस सौ इकहत्तर में एक फ़िल्म आयी थी- हाथी मेरे साथी। इस फ़िल्म के एक गाने ने उस समय बहुत धूम मचाई थी। इस फ़िल्म के अभिनेता राजेश खन्ना थे। उस समय चिनप्पा देवर पशुओं को लेकर फ़िल्म बनाते थे। वह पशु पक्षी प्रेमी थे। अकेले ऐसे प्रोड्यूसर रहे जिनकी फ़िल्मों में पशु केंद्रीय भूमिका में रहे। आदमियों द्वारा हाथी को मार देने के बाद गाये गये अपने वेदनात्मक गाने में यह सवाल उठाया गया था- “इक जानवर की जान आज इंसानों ने ली है ,चुप क्यों है संसार।”
दुखद दास्ताँ
उनचास साल बाद फिर यह सवाल जस का तस हम सबसे जवाब माँग रहा है? क्योंकि दक्षिण भारत के केरल में गर्भवती हथिनी को विस्फोटक भरा अनानास किसी ने खिला दिया। हथिनी इतनी पीड़ा में थी कि तीन दिन तक वेलियार नदी के पानी में सूँड़ डुबाये खडी खड़ी मौत का इंतज़ार करती रही।
बीते 27 मई को उसने दम तोड़ दिया। मानवता के पतन की यह सबसे दुखद दास्तान कहीं जायेगी। यह घटना प्रकाश में सोशल मीडिया की वजह से आई। तब डॉक्टरों ने बहुत कोशिश की पर कुछ हो नहीं सका।
हमारे घर में भी था हाथी
इस घटना ने मुझे बहुत परेशान किया। इसकी वजह मुझे अपने बचपन के दिनों में घर में पला हाथी याद आ गया। हम लोग छोटे थे तो हमारे घर में हाथी था। हाथी हमारी ख़ानदानी प्रतिष्ठा का प्रतीक था।
हाथी ख़ानदानी शान की हिफ़ाज़त भी करता था। ज़िले में दूर दूर तक बाबा को हथिया नरेश कहते थे। पहले शादियों में हाथी का होना शुभ माना जाता था। लोग बाबा से शादी ब्याह के लिए हाथी माँगने आते थे।
महावत चाचा को भी शादी में हाथी ले जाने में मज़ा आता था। हाथी को उस दिन खिलाने की ज़िम्मेवारी से वह बच जाते थे। नेग बिदाई ऊपर से मिलता था।
याद है हाथी शादी ब्याह के लिए देते समय बाबा यह हिदायत ज़रूर दे देते थे कि अगर और भी हाथी आपने माँगे हों तो हमारे हाथी को सबसे आगे रखियेगा। नहीं तो यह नाराज़ हो जायेगा। उत्पात कर देगा।
देखरेख के लिए थे छह लोग
इस हिदायत के बाद हमारे हाथी को हर शादी ब्याह में सबसे आगे ही रखा जाता था। हाथी की देख रेख के लिए महावत चाचा रखे गए थे। उनके नीचे पांच लोग और थे।
लंगड़जी, मौला मियांजी, जमादारजी, सुकईजी, राजबलीजी। ये सब भी बारी बारी से महावत बने राजबलीजी अंतिम महावत थे। जो महावत चाचा की मदद करते थे।
हाथी पर की हैं बहुत यात्राएं
हम लोगों ने हाथी पर बहुत दूर दूर तक यात्राएं भी की हैं। मैं वैसे तो कुशीनगर ज़िले का रहने वाला हूँ। लेकिन तब कुशीनगर जिला नहीं बना था। बाबा को किसी भी काम के लिए देवरिया ही जाना पड़ता था।.
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जब वह देवरिया जाते थे तब हाथी से ही जाते थे। मोटे तौर पर उनका अनुमान था कि हाथी एक घंटे में तक़रीबन छह किलोमीटर की दूरी तय कर लेगा। इसी हिसाब से वह देवरिया के लिए निकलते थे। रात को ही पहुँच जाते थे। दूसरे दिन काम करके फिर वापस गाँव पहुँच जाते थे।
मनोरंजन का साधन
हाथी पूरे गाँव के बच्चों के लिए मनोरंजन का साधन था क्योंकि गर्मी की छुट्टियों में हमें गाँव जाना होता था। तब हाथी को गन्ना खिलाना। हाथी से बात करना। भले वह हमारी बात न समझता हो। पर बोलते जाना।
लेकिन एक बात ज़रूर थी कि हाथी महावत चाचा की बात सुनता था, समझता था। उनके कहने पर वह उठ और बैठ जाता था। खाना खा लेता था। ग़ुस्से में हो तो महावत चाचा सूँड़ सहला दें तो बस ग़ुस्सा काफ़ूर।
बाबा के इशारों को समझता था
हाथी का यही सब रिश्ता बाबा जी से भी था। उनकी बात भी सुनता समझता था। वह भी सूँड़ को हाथ में लपेट कर उसके ग़ुस्से को क़ाबू कर लिया करते थे। हाथी को बांधने के लिए मोटा रस्सा होता था या लोहे की सीकड़।
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लोहे की ज़ंजीर का इस्तेमाल कम होता था क्योंकि उससे पैरों में निशान पड़ जाते थे। बाद में तो बांधने की ज़रूरत भी ख़त्म हो गयी थी। हाथिनी का नाम चंचलकली था। बाबा और महावत चाचा नाम से ही बुलाते थे।
कई बार हम लोग गन्ना तोड़ कर हाथी के सामने डालकर कहते थे हथिया हथिया बोल दे त गन्ना खियाइब। हाथी बोल भी देता था।
हाथी का खेत अलग था
गाँव में रहते समय हाथी की पीठ पर कम से कम एक बार बैठना उतरना हम सब भाई बहनों की आदत में था। कई बार यह सवार होने का तरीक़ा हाथी के बैठ जाने के बाद महावत चाचा की गोद से होते हुए हाथी पर लपेटे रस्सी को पकड़ कर चढ़ने का होता था।
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तो कई बार ख़ुद अपनी सूँड़ में लपेट कर हाथी अपनी पीठ पर बिठा लेता था। हाथी के लिए अलग से गन्ने का खेत बोया जाता था। महावत चाचा की मदद में रखे गये कई साथी हाथी के खाने पीने की व्यवस्था करते थे।
ये था खाना-पानी
हाथी तक़रीबन तीन सौ किलो तक खाना खा जाता था। डेढ़ सौ लीटर पानी पी जाता था। तब पानी के लिए भी कुएं या हैंडपंप ही होते थे। हाथी तालाब का पानी नहीं पीता था हाँ वो तालाब में नहाता ज़रूर था। हाथी को रोज़ नहाने की तलब भी होती थी और ज़रूरत भी।
और हाथी मर गया
जहां तक हमें याद है 1975 के आसपास हाथी मर गया। मरने के बाद गड्ढा खोदकर उसे दफना दिया गया। बहुत सालों तक हड्डी ख़रीदने वाले आते रहे। पर बेचा नहीं गया। उसके लिए गड्ढा दोबारा खोला जाना था।
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परिवार के लोगों की संख्या बढ़ गयी थी। कई मालिक मुख्तियार हो गये थे। कुछ लोग चाहते थे कि कुछ तो मिल जाये। पर कईयों की राय नहीं थी। हाथी के मरने के एक साल के अंदर महावत चाचा भी चल बसे।
तब हम लोग पिताजी की नौकरी पर उनके साथ रह रहे थे। गाँव का रिश्ता तो बस गर्मी की छुट्टियों, किसी पर्व त्योहार या शादी ब्याह तक ही रहता था।
महावत चाचा भी न रहे
जब गर्मी की छुट्टी में गाँव जाना हुआ तब महावत चाचा के नहीं रहने की बात पता चली। चाचा के तीन बेटे थे। उनके बेटे गाँव में अभी भी रहते हैं। जाने पर मिलना जुलना होता है।
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एक बेटा मुंशी तो मेरा आज भी मुँह लगा है। पर जब पता चला कि महावत चाचा को दफ़नाया गया था। तब हम जान पाये कि महावत चाचा मुसलमान थे और उनका नाम इस्माइल था। उससे पहले हम बच्चों को ये सब नहीं पता था।
हाथी के सूंघने की ताकत
अपने हाथी के नहीं रहने के बाद मैंने हाथी के बारे में काफ़ी कुछ पढ़ा। जो याद रह गया है उसके मुताबिक़ हाथी आदमी और औरत की आवाज़ में अंतर समझ सकता है। 4-5 किलोमीटर दूर से पानी की गंध सूंघ सकता है।
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हाथी की याददाश्त बहुत अच्छी होती है। दिमाग़ का वजन पाँच किलो तक होता है। शेर भी हाथी से पंगा नहीं लेता। यह सबसे विशाल स्तनपायी है। हाथी के नवजात बच्चे का वजन सौ किलो से अधिक होता है।
बाइस माह की गर्भावस्था
बाइस माह तक हथिनी गर्भवती रहती है। चार साल पर बच्चा देती है। बारिश का अंदाज डेढ़ सौ किलोमीटर पहले से ही कर लेते हैं। हाथी मधुमक्खियों से बहुत डरते हैं। केवल दो तीन घंटे सोते हैं।
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हाथी 50 से 70 साल तक जी सकता है। गूगल अंकल की मानें तो सबसे विशाल हाथी का जो ज़िक्र मिलता है वह 10900 किलो वजन और तेरह फ़ीट ऊँचाई वाला हाथी था।
सूअर के बराबर हाथी
अच्छी सुगंध के लिए अफ्रीकी हाथी जाने जाते हैं। गूगल अंकल बताते हैं कि सबसे छोटे हाथी यूनान के क्रीट द्वीप में पाये जाते हैं। जो गाय के बछड़े या सूअर के बराबर होते है।
हाथी से हमारा धार्मिक रिश्ता है। हर मंगल काम में हाथी का होना शुभ माना जाता है। यह भारत में ही नहीं अपितु थाईलैंड, इंडोनेशिया, नेपाल और चीन में भी पवित्र माना जाता है।
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यहां तक कि जापानी हाथी को कांगितेन (सुख के देवता) के रूप में पूजते हैं। बौद्ध धर्म में, हाथी को स्वयं बुद्ध में सन्निहित गुणों की एक सांसारिक अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है, माना जाता है गौतम बुद्ध की माँ (माया) ने उनके जन्म से पहले एक विचित्र सपना देखा था जिसमें उन्हें एक सफ़ेद हाथी दिखाई दिया था।
ऐरावत हाथी
भारतीय पौराणिक कथाओं में हम ऐरावत हाथी के बारे में सुनते हैं, जो इंद्र देव का वाहन है और एक सफेद हाथी है। ऐरावत ऐश्वर्य और सौभाग्य का प्रतीक है।
देव तथा दानवों के बीच हुए समुद्र-मंथन से जो 14 रत्न प्राप्त हुए उनमें से एक ऐरावत भी था। पुराणों में ऐरावत का वर्णन मिलता है कि वह चमकता हुआ श्वेत वर्ण का है। उसके 4 दांत हैं।
रत्नों के बंटवारे के समय इंद्र ने अत्यंत सुंदर और ऐश्वर्ययुक्त दिव्यगुणों वाले ऐरावत हाथी को अपने लिए रख लिया था। इसीलिए इसे इंद्रहस्ति अथवा इंद्रकुंजर भी कहा जाता है।
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इसके बाद भी कोई हाथी को मारने के लिए कोई ऐसा कुकृत्य करे तो हाथी मेरे साथी फ़िल्म और उसके गाने में उठाया गया सवाल फिर जवाब माँगने लगता है-
नफ़रत की दुनिया को छोड़ के
प्यार की दुनिया में, खुश रहना मेरा यार
इस झूठ की नगरी से, तोड़के नाता जा मेरा प्यार
अमर रहे तेरा प्यार, खुश रहना मेरे यार
जब जानवर कोई, इन्सान को मारे
कहते हैं दुनिया में, वहशी उसे सारे
एक जानवर की जान, आज इन्सान ने ली है
चुप क्यों है संसार, खुश रहना मेरा यार
बस आखिरी सुन ले, ये मेल है अपना
बस खतम अब साथी, ये खेल है अपना
अब याद मे तेरी बीत जायेंगे रो रो के
जीवन के दिन चार, खुश रहना मेरे यार।