Birthday Special: सबसे कम उम्र में कप्तान बना था ये क्रिकेटर, मिली थी हत्या की धमकी

हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान तायबू को 1999-2000 के वेस्टइंडीज दौरे पर भेज दिया गया था। जल्द ही तायबू अपनी प्रतिभा के दाम पर अनुभवी विकेटकीपर एंडी फ्लावर का विकल्प बन गए।

Update:2020-05-14 10:02 IST

नई दिल्ली: हर खिलाड़ी का यह ख्वाब होता है कि वो अपने खेल में आला मुकाम हासिल करे। और अगर अपनी टीम की कप्तानी की बात हो शायद ही कोई खिलाडी कदम पीछे हटाना चाहेगा। हम बात कर रहे हैं उस प्लेयर की जिसने 18 साल की उम्र में टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू किया और 19 साल में उपकप्तान बना। और 21 साल की उम्र में उसे अपने टीम की कप्तानी भी मिल गई। आज उनका जन्मदिन है।

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जी हां...! बात हो रही है जिम्बाब्वे के क्रिकेटर ततेंदा तायबू की। वह अब 37 साल के हो गए। तायबू 14 मई 1983 को हरारे में पैदा हुए थे। शरुआत से ही ततेंदा तायबू काफी प्रतिभाशाली थे। हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान तायबू को 1999-2000 के वेस्टइंडीज दौरे पर भेज दिया गया था। जल्द ही तायबू अपनी प्रतिभा के दाम पर अनुभवी विकेटकीपर एंडी फ्लावर का विकल्प बन गए।

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छोड़नी पड़ी कप्तानी

19 जुलाई 2001 को जब उन्होंने जिम्बाब्वे के लिए पहला टेस्ट खेला था, तब शायद उन्हें यह अंदाजा भी नहीं रहा होगा की इतनी जल्दी उन्हें इसी टीम की कमान सौंप दी जाएगी। दरअसल 2004 में जिम्बाब्वे के कुछ खिलाड़ियों बगावत कर दी थी जिसका सीधा फायदा तायबू को मिला। और तायबू को राष्ट्रीय टेस्ट टीम की बागडोर सौंप दी गई, लेकिन तायबू को धमकियों के चलते 18 महीने के अंदर ही कप्तानी छोड़ना पड़ा। इसके साथ ही उन्हें देश भी छोड़कर जाना पड़ा। लेकिन 2007 के मध्य में फिर से तायबू जिम्बाब्वे टीम से जुड़ गए। बाद में तायबू ने चर्च के कार्य को प्राथमिकता देते हुए जुलाई 2012 में महज 29 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया।

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आखिर क्यों तायबू को छोड़ना पड़ा था देश...?

दअसल तायबू राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे की नीतियों के खिलाफ उठ खड़े हुए थे, जिसके बाद उन्हें और उनके परिवार को अपहरण और जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं। इसके बाद उन्हें देश और क्रिकेट छोड़कर जाना पड़ा।

29 साल मे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से ले लिया संन्यास

तायबू को दो साल तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से बाहर भी रहना पड़ा था। तायबू तब महज 24 साल के थे और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलना चाहते थे। जिसके बाद जिम्बाब्वे में बदलाव लाने के लिए उन्होंने फिर से प्रयास किया। अगस्त 2007 में अपनी वापसी पर खेली गई पहली वनडे सीरीज में उन्होंने शॉन पोलॉक, मखाया एनटिनी, मोर्ने मोर्केल और वर्नोन फिलेंडर के रहते दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ नाबाद 107 रन बनाए। साल 2012 में महज 29 साल मे उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया।

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