पलायन करने वालों की मुसीबत कम नहीं, घर जाने के लिए चुका रहे ये कीमत

भले ही पलायन करने वाले लोग पैदल या झुंड के झुंड बसों में सवार होकर शहरों से अपने गांव की ओर जा रहे हैं, लेकिन उस सफर में उन्हें कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है यह जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे।

Update: 2020-03-29 16:21 GMT

लखनऊ: कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन घोषित किया हो और बार बार लोगों से घरों में रहने की अपील की हो, लेकिन बंदी की वजह से बेकारी झेल रहे मजदूर वर्ग ने पलायन का मार्ग अपना कर देश की मुसीबत और बढ़ा दी है। हालाँकि शहरों से अपने गाँव व घर की ओर निकले लोगों की स्थिति भी ठीक नहीं है। आलम ये हैं कि बस-ट्रक या किसी भी वाहन में भीड़ बनकर लदे ये लोग घर जाने की भारी कीमत चुका रहे हैं।

पलायन करने वालों का मुश्किलों भरा सफर

भले ही पलायन करने वाले लोग पैदल या झुंड के झुंड बसों में सवार होकर शहरों से अपने गांव की ओर जा रहे हैं, लेकिन उस सफर में उन्हें कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है यह जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। गाजियाबाद से लखनऊ जा रही बस को प्रशासन के अधिकारियों ने रोका तो ये परेशानियों और गंभीर स्थिति देख दंग रहे गए।

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बसों की छत पर बैठने की भी चुका रहे भारी कीमत

दरअसल, एक 55 सीटों वाली बस में 125 यात्री भरे हुए थे। यहां तक की बस की छत पर भी लोग बैठे हुए थे। यात्रियों से जब उनकी व्यथा पूछी गई तो जो दर्द उन्हें बयां किया, वह हैरान करने वाला था।

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जान-माल की भी नहीं कोई फ़िक्र:

बताया गया कि प्रति यात्री 1200 रुपए बस का किराया वसूला जा रहा हैं, इतना ही नहीं छत पर बैठे यात्रियों ने भी 800 रुपये किराया चुकाया है। ऐसे में यात्रियों के पास खाने-पीने तक के पैसे नहीं बचे। इन यात्रियों को न कोरोना वायरस से संक्रमित होने का डर है और न ही लॉकडाउन उल्लंघन की चिंता।

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घर पहुंचने का जुनून

राज्य सरकारें बार-बार अपील कर रही है कि जो लोग जहां है, वहीं रहे। उनके खाने-पीने और रहने तक की व्यवस्था सरकार कर रही है। यहां तक कि उन्हें आर्थिक मदद भी दी जा रही है, हालांकि लोग जागरूकता ना होने की वजह से या लॉक डाउन की वजह से बेकारी में अपने घर वापसी को लेकर चिंतित है।

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