विकिपीडिया पर जनेश्वर मिश्र के बारे में गलत जानकारी, 1984 चुनाव के गलत डिटेल

हकीकत यह है कि जनेश्वर मिश्र सलेमपुर से लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़े थे तथा कांग्रेस के राम नगीना मिश्र से पराजित हो गए थे।

Update: 2020-08-05 09:41 GMT

बलिया: छोटे लोहिया के नाम से विख्यात तथा चुटीले अंदाज में भाषण देकर मंत्रमुग्ध कर देने वाले जनेश्वर मिश्र को लेकर विकिपीडिया की गलती एक बार फिर सामने आई है। विकिपीडिया ने पूर्व केंद्रीय मंत्री जनेश्वर मिश्र को लेकर उल्लेख किया है कि वह वर्ष 1984 में सलेमपुर से लोकसभा चुनाव लड़े थे तथा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से पराजित हो गए थे। जो कि गलत जानकारी है।

जबकि हकीकत यह है कि जनेश्वर मिश्र सलेमपुर से लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़े थे तथा कांग्रेस के राम नगीना मिश्र से पराजित हो गए थे। जनता पार्टी से हरिकेवल प्रसाद चुनाव लड़े थे। वर्ष 1984 में चंद्रशेखर अपनी परम्परागत सीट बलिया से चुनाव लड़े थे तथा कांग्रेस के जगरनाथ चौधरी से पराजित हुए थे।

पहले चुनाव में मिली शिकस्त

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उल्लेखनीय है कि राजनीति में शुचिता व सादगी के प्रतीक जनेश्वर मिश्र का जन्म इतिहास के हर करवट के साथ अविस्मरणीय अवदान देने वाली धरती बलिया जिले के शुभनथहीं के गांव में 5 अगस्‍त 1933 को हुआ था। उनके पिता रंजीत मिश्र किसान थे। उन्होंने इलाहाबाद लोकसभा सीट पर वर्ष 1977 में विश्वनाथ प्रताप सिंह को धूल चटा दिया था। बलिया भले ही जनेश्वर मिश्र की जन्मभूमि रही हो, लेकिन छात्र जीवन से ही इलाहाबाद से उनका नाता ऐसा जुड़ा कि जीवन की आखिरी सांस भी उन्होंने इलाहाबाद में ली। बलिया से प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद वह इलाहाबाद पहुँचे। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक कला वर्ग में प्रवेश लिया। वह हिन्दू हास्टल में रहते थे। स्नातक की शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ही वह छात्र राजनीति से जुड़े।

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छात्रों के मुद्दे पर उन्होंने कई आंदोलन छेड़े। वर्ष 1967 से उनका राजनैतिक सफर शुरू हुआ। वह जेल में थे। तभी लोकसभा का चुनाव की रणभेरी बज गई। समाजवादी नेता छुन्नन गुरू व सालिगराम जायसवाल के अनुरोध पर वह फूलपुर से विजयलक्ष्मी पंडित के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे। लोकसभा चुनाव के सात दिन पहले उन्हें जेल से रिहा किया गया। हालांकि अपने पहले चुनाव में जनेश्वर को शिकस्त का सामना करना पड़ा था। विजय लक्ष्मी पंडित के राजदूत बनने के बाद फूलपुर सीट पर वर्ष 1969 में उपचुनाव हुआ तो जनेश्वर मिश्र सोशलिस्ट पार्टी से मैदान में उतरे और जीते। लोकसभा में पहली बार वह पहुंचे तो प्रख्यात समाजवादी नेता राजनारायण ने जनेश्वर मिश्र को छोटे लोहिया का नाम दिया।

ऐसा रहा राजनीतिक सफर

जनेश्वर मिश्र ने वर्ष 1972 के चुनाव में कमला बहुगुणा को और वर्ष 1974 में इंदिरा गांधी के अधिवक्ता रहे सतीश चंद्र खरे को हराया। वर्ष 1977 में वह वीपी सिंह को इलाहाबाद सीट पर हराकर लोकसभा पहुंचे। मोरार जी देसाई सरकार में उनको शामिल किया गया और वह पेट्रोलियम, रसायन एवं उर्वरक मंत्री बने। इसके बाद उन्होंने विद्युत, परंपरागत ऊर्जा और खनन मंत्रालय संभाला। चरण सिंह सरकार में वह जहाजरानी व परिवहन मंत्री बने। वह वर्ष 1989 में जनता दल के टिकट पर इलाहाबाद से चुनाव लडे़ और दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा की पत्नी कमला बहुगुणा को पराजित कर दिया। विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में वह संचार मंत्री बने।

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वह वर्ष 1991 में चंद्रशेखर की सरकार में रेलमंत्री, एचडी देवगौड़ा की सरकार में जल संसाधन तथा इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में पेट्रोलियम मंत्री बनाये गये। वह वर्ष 1992 से 2010 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। जीवन के आखिरी समय तक वह सपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे। केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय संभालने के बाद भी वह देश के उन गिने-चुने नेताओं में से थे, जिनके पास न तो निजी वाहन रहा और न कोई पास न तो कोई बंगला ही था। वह इलाहाबाद के कीडगंज मुहल्ले में एक किराये के मकान में ही रहते थे। यह उनके जमीन से जुड़े नेता होने की भी पहचान थी। 22 जनवरी 2010 में हार्ट अटैक की वजह से उनका इलाहाबाद में निधन हो गया था।

रिपोर्ट- अनूप कुमार हेमकर

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