सरकार द्वारा जब्त बिड बॉन्ड और बैंक गारंटी को वापस कराने से हाईकोर्ट का इंकार

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने रिलायंस पॉवर लिमिटेड की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें राज्य सरकार द्वारा कम्पनी का करोड़ों का बिड बॉन्ड और बैंक गारंटी जब्त करने के निर्णयों को चुनौती दी गई थी।

Update:2019-04-17 22:17 IST

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने रिलायंस पॉवर लिमिटेड की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें राज्य सरकार द्वारा कम्पनी का करोड़ों का बिड बॉन्ड और बैंक गारंटी जब्त करने के निर्णयों को चुनौती दी गई थी। सरकार ने 2456 मेगावाट बिजली सप्लाई का रिलायंस पॉवर लिमिटेड का टेंडर मंजूर हो जाने के बावजूद लेटर ऑफ इंटेंट के अनुसार जिम्मेदारी न निभाने पर बिड बॉन्ड और बैंक गारंटी जब्त कर लिया था।

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यह आदेश जस्टिस डी0क0े अरोड़ा और जस्टिस आलोक माथुर की बेंच ने रिलायंस पॉवर लिमिटेड की ओर से दाखिल याचिका केा खारिज करते हुए पारित किया।

याचिका में उत्तर प्रदेश पॉवर कॉर्पोरेशन के 26 फरवरी 2018 और 27 फरवरी 2018 के निर्णयों को चुनौती दी गई थी जिनमें पॉवर कॉर्पोरेशन ने रिलायंस पॉवर के उन अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया था जिनमें चितरंगी पॉवर प्रोजेक्ट से 2456 मेगावाट बिजली सप्लाई टेंडर के सम्बंध में जमा 73.86 करोड़ के बिड बॉन्ड और तीन लाख रुपये प्रति मेगावाट की दर से जमा बैंक गारंटी को वापस किये जाने की मांग की गई थी।

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याची की दलील थी कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक जनहित याचिका पर निर्णय देते हुए, 24 सितम्बर 2014 को कोल ब्लॉक्स के आवंटन को रद् कर दिया गया था। जिसकी वजह से याची मोहर, मोहर-अमलोहरी विस्तार और छत्रसाल कोल ब्लॉक्स के सरप्लस कोयलों का इस्तमाल करने से वंचित हो गया।

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इस वजह से कम्पनी टेंडर और 6 मई 2011 के लेटर ऑफ इंटेंट का पालन कर पाने में असमर्थ हो गई। याची का कहना था कि राज्य सरकार ने इन परिस्थितियों पर गौर किये बिना, बिड बॉन्ड और बैंक गारंटी को वापस करने से इंकार कर दिया। वहीं राज्य सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि याची चितरंगी पॉवर प्रोजेक्ट पर कोई निर्माण कार्य भी शुरू नहीं करवाया जो कि उनके द्वारा प्रस्तावित था।

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याची की इस लापरवाही की वजह से महंगी बिजली खरीदनी पड़ी। यह भी दलील दी गई कि कई अन्य कम्पनियों को भी कोयले की कमी की समस्या का सामना करना पड़ा लेकिन उन कम्पनियों ने दूसरे विकल्पों का व केंद्र सरकार की 22 मई 2017 को शुरू की गई शक्ति योजना का इस्तमाल कर, अपने जिम्मेदारियों को पूरा किया।

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मामले की सुनवाई करने के बाद कोर्ट ने याची को इस मामले में राहत पाने का अधिकारी नहीं पाते हुए, याचिका को खारिज कर दिया।

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