Navratri Special: यहां आने वाले भक्तों की पूरी होती हैं मुरादें, कुशीनगर की धर्मसमधा देवी के मंदिर में हो रही है भारी भी

Navratri Special: मल्ल राजा मदन पाल सिंह की कुल देवी है कुशीनगर की धर्मसमधा की देवी मां, नवरात्रि में हो रही है भारी भीड़। हम बात कर रहे हैं कुशीनगर जनपद में रामकोला नगर के निकट पडरौना- रामकोला मार्ग पर स्थित प्रसिद्ध धर्मसमधा देवी के मंदिर की।

Update: 2023-03-29 20:37 GMT
कुशीनगर: धर्मसमधा देवी के मंदिर में हो रही है भारी भीड़, भक्तों की पूरी होती हैं मुरादें

Kushinagar News: यहां आने वाले हर भक्त की मुरादें पुरी होती हैं। जिसने भी सच्चे मन से मां को पुकारा तो मां उसकी जरूर सुनती हैं। मां के दर से कोई खाली नहीं जाता। हम बात कर रहे हैं कुशीनगर जनपद में रामकोला नगर के निकट पडरौना- रामकोला मार्ग पर स्थित प्रसिद्ध धर्मसमधा देवी के मंदिर की। यह मंदिर एक शक्तिपीठ के रूप में उभरा है। श्रुतियों के अनुसार यह देवी राजा मल्ल राजा मदन पाल सिंह की कुलदेवी हैं। यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे दिल से मांगी गई हर मुराद माता पूरी करती हैं। माता अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करती हैं। इसलिए हर समय भारी संख्या में श्रद्धालु मां का दर्शन करने आ रहे हैं और अपनी मन्नतें मांग रहे हैं।

और एक खंडहर में अंतर्ध्यान हो गई-

धर्मसमधा देवी मंदिर अति प्राचीन है। यहां के देवी मां की महिमा और ऐतिहासिकता के विषय में पुजारी लालमन तिवारी ने बताया कि धर्मसमधा देवी मां कुसम्ही के मल्ल गणराज्य के राजा मदन पाल सिंह की कुलदेवी हैं। एक बार की बात है कि रामकोला थाने पर एक दरोगा त्रिजुगी नारायण गश्त पर निकले थे तभी उन्होंने सोमल के किनारे एक सफेद वस्त्र धारी महिला को देखा। दरोगा ने उक्त महिला का पीछा किया वह महिला भागते हुए धर्मसमधा नामक स्थान पर आयीं और एक खंडहर में अंतर्ध्यान हो गई। दरोगा जी काफी खोजबीन किए। शीघ्र ही उन्हें आभास हो गया कि वह श्वेता वस्त्र धारी महिला दिव्य शक्ति हैं। उन्होंने अपने सहकर्मियों के सहयोग से उस स्थल पर एक छोटा सा स्थान बनवा दिया। जिस पर बाद में एक छोटा सा मंदिर बना। धीरे-धीरे मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ती गई और आज यहां पर एक भव्य मंदिर बन गया है।

इसी मंदिर के बगल में पोखरों के बीच में सती माता का भी एक मंदिर है। इस मंदिर का भी ऐतिहासिक महत्व है जो मल्ल राजा मदन पाल सिंह की पुत्री से जुड़ा हुआ है। राजा के दरबार की ज्योतिषाचार्यों ने राजा के पुत्री की कुंडली को देख कर बताया कि सुहागरात के समय इस कन्या के पति को बाघ मार देगा।

दो तालाबों के बीच में विद्यमान है मंदिर -

राजा ने इसके लिए धर्मसमधा नामक स्थान पर पोखरों के बीच में एक महल बनवाया जहां पर उनकी पुत्री और दामाद सुहागरात का समय बिता सकें। राजा ने सोचा था कि तालाब पार कर बाघ तो आएगा नहीं। लेकिन विधि का विधान कोई नहीं टाल सकता है। नाउन के उबटन की झिल्ली से बाघ बन गया और राजकुमारी के पति को मार डाला। राजकुमारी अपने पति के साथ चिता में सती हो गई। जो भी श्रद्धालु धर्मसमधा देवी मंदिर का दर्शन करने आते हैं वे अवश्य सती माता का दर्शन करते हैं। आज भी यह मंदिर दो तालाबों के बीच में विद्यमान है। धर्मसमधा देवी मंदिर में वर्ष भर श्रद्धालु आते हैं। मंदिर वर्तमान में भव्य रूप में विद्यमान है।

मंदिर की प्रसिद्धि दिन पर दिन बढ़ रही है। यहां प्रत्येक माह में देवी मां के समक्ष लड़के लड़कियों की शादियां होती हैं। शारदीय नवरात्र और चैत नवरात्र में काफी भीड़ होता है। मंदिर में दुर्गा माता का प्रतिमा व चरण पादुका है। कहा जाता है कि माता रानी जब यहां खड़ी हुईं तो वहीं उनके चरण का निशान रह गया। चैत्र रामनवमी के दिन मंदिर परिसर में रामनवमी का विशाल मेला लगता है, जहां पर दूर-दराज से लोग मेला करने आते हैं। चैत्र रामनवमी का मेला का श्रद्धालु पूरे वर्ष इंतजार करते हैं। इस मेले में पके बेल, पके देसी खेले आदि खूब बिकते हैं।

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