America Economic Crisis: अमेरिका का खजाना खाली, पूरी दुनिया पर छाया गंभीर संकट

America Economic Crisis:अगर मामला नहीं सुलझा और अमेरिकी सरकार डिफ़ॉल्ट कर गई तो दुनियाभर के बाजारों और अर्थव्यवस्थाओं पर गहरा असर पड़ना तय है।

Update:2023-05-23 15:01 IST
America Economic Crisis (Pic Credit - Social Media)

America Economic Crisis: अमेरिका का खजाना खाली होता जा रहा है और देश कर्ज चुकाने में डिफॉल्ट करने की कगार पर है। इससे बचने के लिए सरकार और कर्ज लेना चाहती है लेकिन विपक्षी दल ने अड़ंगा लगा दिया है। कर्ज लिमिट बढ़ाने का मामला संसद में सर्वसम्मति से सुलझना है लेकिन विपक्षी रिपब्लिकन मानने को तैयार नहीं हैं। अगर मामला नहीं सुलझा और अमेरिकी सरकार डिफ़ॉल्ट कर गई तो दुनियाभर के बाजारों और अर्थव्यवस्थाओं पर गहरा असर पड़ना तय है।

क्या है ये ऋण का चक्कर

बुनियादी परिभाषा ये है कि ऋण डिफ़ॉल्ट तब होता है जब कोई व्यक्ति या संस्था समय पर कर्ज नहीं चुका पाती है। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति द्वारा हाउस या कार ऋण का भुगतान नहीं कर पाना। जब कोई देश ऐसा करता है, तो इसे 'सॉवरेन डिफॉल्ट' के रूप में जाना जाता है। यह तब होता है जब देश अपना कर्ज नहीं चुका सकता है।

भारत और अमेरिका सहित दुनिया के अनेक देशों का बजट घाटे में चलता है, यानी सरकार को टैक्स से जितनी आमदनी होती है उससे कहीं अधिक उसके खर्चे होते हैं। ऐसी स्थिति में सरकार को अपने खर्च के लिए कर्ज़ लेना पड़ता है। दुनिया के लगभग सभी देश बांड जारी करके अपने पैसा जुटाते हैं। ऐसा तब होता है जब सरकार की आमदनी कम और खर्च ज्यादा हो जाता है। सरकारें जो बांड जारी करती हैं, उनपर उसे ब्याज देना होता है और बांड की अवधि पूरी होने पर बांड की रकम वापस करनी होती है। दोनों चीजें करने में अगर चूक हो गई तो वह डिफ़ॉल्ट कहा जाता है और किसी देश के लिए तो ये सीधे सीधे दिवालिया होने की निशानी है।

अमेरिकी ऋण डिफ़ॉल्ट

अमेरिका के सामने यही संकट है। दरअसल, अमेरिकी सरकार टैक्स से जमा होने वाले धन की तुलना में अधिक पैसा खर्च करती है। इस कमी को पूरा करने के लिए, यह निवेशकों को यूएस ट्रेजरी बांड बेच कर धन जुटाती है। बांड्स के खरीदार, जैसे कि चीनी सरकार और पेंशन फंड्स जैसे निवेशक, ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि इन बांडों को पैसा निवेश करने के लिए एक सुरक्षित ठिकाने के रूप में देखा जाता है।कर्ज़ का संबंध वैसे बिलों से है जिनकी तत्काल अदायगी होनी है यानी वह रकम जो सरकार पहले ही ख़र्च कर चुकी है या करने का वादा कर चुकी है, और अब लेनदार उसके सिर पर खड़े है, जैसे कि, सेना, सरकारी सेवकों का वेतन, पेंशन, सोशल सिक्योरिटी, हेल्थ बीमा वग़ैरह।

क्या है खतरा

अमेरिका को बाजार से कर्ज लेने की एक लिमिट बंधी हुई है। ये लिमिट सिर्फ संसद की इजाजत से बढ़ाई जा सकती है। चूंकि अमेरिका के ट्रेजरी बांड पर अदायगी 1 जून तक होनी है सो संसद से कर्ज लिमिट बढ़ाने की इजाजत अगले चंद दिनों में मिल जानी चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो 23 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले इस देश की छीछालेदर तो होगी ही, पूरी दुनिया पर बहुत खराब असर पड़ेगा। अमेरिका का पिछले 10 वर्षों में घाटा 400 बिलियन डॉलर से बढ़कर 3 ट्रिलियन डॉलर हो गया है।

रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स

मामले की गंभीरता का अंदाज़ा इसी बात से लगा सकते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन को चीन के ख़िलाफ़ बनाए गए चार देशों के मोर्चे क्वाड की बैठक ही रद्द करनी पड़ी। अर्थव्यवस्था की हालत को देखते हुए अमेरिकी कांग्रेस कर्ज़ की सीमा को घटाती और बढ़ाती रहती है। 1960 से लेकर अब तक कर्ज़ की सीमा में अमेरिकी संसद ने 78 बार बदलाव किया है।

लेकिन इस बार प्रेसिडेंट बिडेन को विपक्षी रिपब्लिकन सांसदों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। वे कर्ज़ की सीमा को बढ़ाने के लिए कई शर्तें रख रहे हैं जिन्हें मानने को सत्ताधारी डेमोक्रेट तैयार नहीं हैं।

अमेरिकी ट्रेजरी चीफ जेनेट येलेन ने अमेरिकी संसद से कर्ज की सीमा बढ़ाने के लि कई बार कहा है, ताकि अमेरिका को ऐतिहासिक डिफॉल्ट के जोखिम से बचाया जा सके। अमेरिकी ऋण सीमा वर्तमान में 31.4 ट्रिलियन डॉलर है, जबकि अमेरिका ने अब तक 30.1 ट्रिलियन डॉलर उधार लिया है।

क्यों आई ऐसी नौबत

ये जानने के लिए जरा पीछे जाना होगा। हुआ ये कि 2001 और 2008 के बीच जब मंदी ने अमेरिका और दुनिया को जकड़ लिया था तो अमेरिका ने अपने को मंदी से बाहर निकालने के लिए वित्तीय प्रणाली में अतिर6 पैसा डाला, जो कई वर्षों तक जारी रहा। 2017 में, जब ट्रम्प प्रेसिडेंट बने तो उनके प्रशासन ने करों में कटौती की, जिसने राजस्व के स्रोत को सीमित कर दिया। इसके बाद कोरोना महामारी ने एक और आफत ला दी। सरकार को जनता के बीच पैसे बांटने पड़े। इन सब वजहों से अमेरिकी सरकार के खजाने पर भारी दबाव बना हुआ था।

क्या अमेरिका डिफॉल्ट करेगा?

ये तो तय है कि मामला पैसे का नहीं, बल्कि राजनीतिक है। रिपब्लिकन मौके की नाजुकता देख कर सौदेबाजी पर उतारू हैं।

ट्रेजरी सेक्रेटरी जेनेट येलेन ने कहा है कि अगर कर्ज की सीमा नहीं बढ़ाई गई, तो अमेरिका अगले महीने 1 जून से पहले अपने भुगतान पर डिफॉल्ट कर देगा। हालांकि प्रेसिडेंट बिडेन ने घोषणा की है कि अमेरिका डिफॉल्ट नहीं करेगा, कर्ज की सीमा बढ़ाने पर उनकी बातचीत काफी अच्छी रही है और जल्द ही एक समझौता हो जाएगा।

रिपब्लिकन पार्टी चाहती है कि बिडेन प्रशासन अपने खर्च को कम करे। पार्टी ने शर्त रखी कि यदि बिडेन प्रशासन वित्तीय वर्ष 2022 की खर्च सीमा को पूरा करता है तो ऋण सीमा को उठाने का सौदा किया जा सकता है। जबकि बिडेन सरकार इसे रिपब्लिकन पार्टी की नई राजनीतिक साजिश के तौर पर देख रही है, क्योंकि अगर सरकार ने अपनी घोषित योजनाओं पर खर्च नहीं किया तो इसका असर अगले चुनाव पर देखने को मिल सकता है। इसलिए वह पीछे हटने को तैयार नहीं है। यहीं पर बात रुक जाती है।

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