तो इस प्रधानमंत्री के कारण ही बैन हुआ ट्रिपल तलाक़, कभी चुपके से की थी शादी
पड़ोसी देश पाकिस्तान में कई दशक पहले ही ट्रिपल तलाक बैन कर दिया गया था। 60 के दशक में जब पाकिस्तान में जमात-ए-इस्लामी जैसी कट्टरपंथी पार्टियां अपनी जमीन को मजबूत करने की कोशिश में लगी थी तभी पाकिस्तानी सरकार ने ट्रिपल तलाक को गैर कानूनी घोषित कर दिया दिया था।
नई दिल्ली: जहां ट्रिपल तलाक को लेकर भारत में घमासान मचा हुआ है। मोदी सरकार ने पहले ही ट्रिपल तलाक को अध्यादेश बना कर मंजूरी दे रखी है। दोबारा सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने एक बार फिर से इस बिल को राज्यसभा में पेश कर दिया है। कुछ दिन पहले ही लोकसभा ने इस बिल को पारित कर दिया था। इस बिल को कानून बनने के लिए राज्यसभा से भी पारित कराना जरूरी है।
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तलाक-ए-बिद्दत (इंस्टैंट ट्रिपल तलाक) और निकाह हलाला अब मुस्लिम समुदाय का अंदरुनी मसला नहीं रह गया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस ट्रिपल तलाक पर हमारे देश में घमासान मचा हुआ है, उसी मुद्दे पर हमारे पड़ोसी देशों का क्या रुख है?
बता दें कि हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में कई दशक पहले ही ट्रिपल तलाक बैन कर दिया गया था। 60 के दशक में जब पाकिस्तान में जमात-ए-इस्लामी जैसी कट्टरपंथी पार्टियां अपनी जमीन को मजबूत करने की कोशिश में लगी थी तभी पाकिस्तानी सरकार ने ट्रिपल तलाक को गैर कानूनी घोषित कर दिया दिया था।
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तलाक की शिकार महिला को भी नोटिस की कॉपी देना जरूरी है
पाकिस्तान मामले के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार संजीव पांडेय बताते हैं कि ‘पाकिस्तान की सरकार ने 1961 में एक आर्डिनेंस के माध्यम से ट्रिपल तलाक को गैरकानूनी घोषित कर दिया था। पाकिस्तान में नए कानून के मुताबिक तलाक के बाद पति को यूनियन काउंसिल को नोटिस देना जरूरी हो गया है। तलाक की शिकार महिला को भी नोटिस की कॉपी देना जरूरी है। तलाक की वैधता 90 दिन के बाद ही स्वीकार करने का प्रावधान कानून में है।’
ट्रिपल तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को बैन करने के पीछे पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा थे
वरिष्ठ पत्रकार पांडेय आगे यह भी बताते हैं कि पाकिस्तान में ट्रिपल तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को बैन करने के पीछे पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा थे। 1955 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा ने पत्नी को तलाक दिए बगैर दूसरी शादी अपनी सेक्रेटरी से कर ली। इस पर वहां के मुस्लिम संगठनों ने हाय-तौबा मचाया। इन लोगों का कहना था कि बोगरा ने पत्नी के अधिकार का हनन किया है। उन्होंने अपनी पत्नी को तलाक दिए बिना ही अपनी सेक्रेटरी से शादी कर ली। पाकिस्तान के अंदर इसका जोरदार विरोध हुआ। विरोध के कारण सरकार को मजबूरी में मुस्लिम पारिवारिक और विवाह कानून में सुधार के लिए सात सदस्यों वाला आयोग का गठन करना पड़ा।
पांडेय आगे कहते हैं, 'आयोग ने मुस्लिम महिलाओं को अधिकार देने के लिए कई सिफारिशें की थी। इन्हीं सिफारिशों के बाद पाकिस्तान सरकार ने ‘मुस्लिम फैमिली लॉ आर्डिनेस 1961’ लाया। अध्यादेश में ट्रिपल तलाक को प्रतिबंधित कर दिया गया। ऑर्डिनेंस में एक साथ तीन तलाक बोलकर तलाक देने की प्रथा को गैरकानूनी घोषित किया गया।'
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बाद में 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश अलग होने के बाद भी इस कानून को अपनाया
बाद में 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश अलग होने के बाद भी इस कानून को अपनाया। 1947 से पहले भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमान 1937 के मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) एप्लिकेशन एक्ट-1937 के तहत पारिवारिक और तलाक के मामले के डील करते थे। एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश या भारतीय उपमहादीप के ज्यादातर मुसलमान सुन्नी इस्लाम के हनफी स्कूल को मानते हैं।
पिछले साल भारत ने भी ट्रिपल तलाक को प्रतिबंधित कर मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने की कोशिश की है। लेकिन, सच्चाई यह भी है कि इन मुद्दों पर जमकर राजनीति भी अब शुरू हो गई है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए अब ट्रिपल तलाक का मुद्दा वोटबैंक का मुद्दा बन चुका है।
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इसी बजट सत्र में ही लोकसभा ने मुस्लिम वुमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइटस ऑन मैरेज) बिल 2019 पारित कर दिया। इस मुद्दे पर विपक्ष की एक न चली। लोकसभा में बिल पारित होने के बाद राज्यसभा में इस बिल को पारित कराना सत्ता पक्ष की बहुत बड़ी चुनौती होगी।